Tuesday, May 14, 2019

तब और अब

तब
घर जाते ही माँ कहती
खाना खा लो

अब
घर में कहना पड़ता है
खाना दे दो

तब
पंगत में बैठ कर
मनुहार से खाना खाते

अब
हाथ में प्लेट ले कर
रोटी दो,रोटी दो चिल्लाते

तब
अधिकार से कहते
कल मैंने चाय पिलाई
आज तुम पिलाओ

अब
होटलों में झगड़ते
पैसे मैं दूंगा, पैसे मैं दूंगा

तब
और अब में
कितना कुछ
बदल गया

अब
रिश्तों को जीना
रिश्तों को निभाने में
बदल गया।

जगह बदल गई

                                                                                शादी में 
अग्नि के सात फेरों ने
हम दोनों की  दूरियाँ
सदा-सदा के लिए
मिटा दी 

चिता की 
अग्नि के तीन फेरों ने
हम दोनों की दूरियाँ
सदा-सदा के लिए
बढ़ा दी

दोनों जगह
अग्नि में घी डाला गया 
फूल सजाये गए 
रिश्तेदार भी आये 

 केवल जगह बदल गई 
एक शादी का मंडप था
दूसरा शमशान का घाट था

एक में डोली सजी 
दूसरे में अर्थी सजी। 



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

Saturday, May 4, 2019

सफर अच्छा रहा

जीवन के
राहे-सफर में
एक अनोखे साथी ने
साथ दिया

मन मोह कर
दिल जीत लिया
दोस्ती को परवान
चढ़ा दिया

पचास वर्ष तक
साथ निभा
एक दिन अचानक
विदा हो गया

सफर अच्छा रहा
अगले जन्म में
फिर मिलेंगे
कह कर चला गया।


वैधव्य का जीवन

एक दिन
बातों ही बातों में
तुमने कहा -
अब सदा सुहागन का
आशीर्वाद रहने दो 
मैंने पूछा क्यों-
तो तुमने मुझे
हँसकर कहा-
मुझे पता है
तुम मेरे बिना
एक पल भी
नहीं रह पाओगे
इसलिए मुझे
वैधव्य का जीवन जीना पड़े
तो कोई बात नहीं
लेकिन मैं तुम्हें दुःखी
नहीं देखना चाहती।




लौट आने का इन्तजार

दिन जाता है
रात आती है 

रात जाती है 
दिन आता है 

इन्तजार 
कहीं नहीं जाता 

बना रहता है 
हर समय इन्तजार 

तुम्हारे लौट आने का 
इन्तजार। 


अकेलापन

अकेलापन
क्या हमेशा
जीवन को जी पाया है
सुख और चैन से

अकेलेपन को चाहिए
एक जीवन साथी
जो साथ दे उसका
जीवन पथ पर

कदम-कदम
साथ चलता
सुख दुःख में
साथ निभाता

आँसू पोंछता
उमंग जगाता
दो बातें कहता
दो बातें सुनता

अकेलेपन को
साथी चाहिए।