Friday, July 31, 2020

उसका चेहरा देखने लायक था

जीवन में कुछ घटनाएं 
ऐसी भी होती है 
जो सदा याद रहती है 

अमेरिका की सुसाईड हिल
सुशीला झुक कर पहाड़ी की
गहराई को देख रही थी
मैंने पीछे से हल्का धक्का दिया
वो कांप उठी
चहरे पर खौप झलक उठा 
मैंने पीछे से उसे अपनी 
बाँहों में जकड लिया  
उसका चेहरा देखने लायक था।

दार्जिलिंग की पहाड़ी
श्याम-राजू पहाड़ी की ढलान पर
उतरते हुए दौड़ रहे थे
दोनों बच्चों के पांव उखड़ गए
वो रुक नहीं पा रहे थे
सामने गहरी खाई थी
सुशीला भय से कांप उठी 
मैंने दौड़ कर बच्चों को पकड़ा 
उसका चेहरा देखने लायक था।

हम यमुनोत्री से  
दर्शन कर लौट रहे थे 
हनुमान चट्टी पार करके 
आगे बढे तो खबर मिली 
लैंड स्लाइड से आगे का 
रास्ता बंद हो गया है 
गाड़ियों का लम्बा जाम लग गया 
न पीछे जाना संभव न आगे बढ़ना
शाम ढल गई, अन्धेरा छाने लगा
सुशीला घबरा गई 
देर रात थोड़ा रास्ता बना 
हमारी गाड़ी निकलते समय
खाई की तरफ फिसल गई
उसका चेहरा देखने लायक था।




Thursday, July 30, 2020

बुढ़ापे में तुम्हारा सहारा

तुम अपने बेटे-बेटियों को
क्यों भेज देते हो अमेरिका
क्या वहाँ सोने की खान है
जो तुम्हारे देश में नहीं है ?

लाड-प्यार से पाले अपने
जिगर के टुकड़े को भेज देते हो
सात समुद्र पार
पता नहीं फिर वो वहाँ से
कब लौट कर आएगा ?

क्यों भेज देते हो इतनी दूर 
कि सिसकियाँ भी सुनाई नहीं पड़ें 
डबडबाई आँखें भी नहीं देख सको 

खो जायेंगे वहाँ
डालर की चकाचौंध में
बसा लेंगे अपना घर किसी
अमेरिकन या चाइनीज के संग
तुम बुढ़ापे में, देखते ही रहोगे
उनके लौट आने की राह

मत दिखाओ उन्हें ज्यादा सब्जबाग 
जुड़े रहने दो देश की धरती से 
ताकि उन्मुक्त होकर जी सके अपना जीवन 
बन सके बुढ़ापे में तुम्हारा सहारा। 



Wednesday, July 15, 2020

मेरा मन आज उदास हो गया

मेरा मन आज उदास हो गया
बैठे-बैठे तुम्हारे ख्यालों में खो गया।
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तुम्हारी बदरी सी जुल्फें
तुम्हारा हँसता हुवा चेहरा
तुम्हारे आँचल का मुझे छूना, याद आ गया
मेरा मन तुम्हारी चुहलबाजी की
यादों में खो गया
मेरा मन आज उदास हो गया।
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मेरा रूठना और तुम्हारा
कनखियों से देख कर हँसना
तुम्हारा अंतर का भोलापन, मुझे याद आ गया
मेरा मन तुम्हारी आँखों के सहज
सलोनापन में खो गया
मेरा मन आज उदास हो गया।
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तुम्हारे संग हँसी के कहकहे लगाना
थक कर तुम्हारी बाँहों को थामना
तुम्हारा बारिश में भीगना, मुझे याद आ गया
मेरा मन तुम्हारे मृदु हाथों के स्पर्श की
सुखद अनुभूति में खो गया
मेरा मन आज उदास हो गया।
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गांव के घर में टिचकारी से बुलाना
इशारों में ही सब कुछ समझाना
तुम्हारे मुखड़े का लंबा घूंघट, मुझे याद आ गया
मेरा मन तुम्हारे नर्म अहसासों की
सिहरन में खो गया
मेरा मन आज उदास हो गया।
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मेरा मन आज उदास हो गया
बैठे-बैठे तुम्हारे ख्यालों में खो गया।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )




Monday, July 6, 2020

पोल्की की अँगूठी

खेत के रास्ते में
पोल्की*तोड़
तुमने एक अंगूठी बना
मुझे पहनाई थी।

वो अंगूठी
आज भी मेरी
अनामिका में हरी है।

तुम्हारे जाने के बाद
मैंने उसे अपने
आंसुओं से सींचा है।

उसकी जड़ें
मेरे दिल तक
चली गई है।

उसकी जड़ों ने
बाँध दिया है
मेरी आत्मा को
जन्म जनमानतार तक
तुम्हारे संग।


*पोल्की एक नरम घास होती है। 

 ( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

दो दिन का बस मेला है


शिव शंभू आओ धरती पर
हे जग के विषपायी
एक वायरस ने दुनियाँ को
कर दिया धराशायी

सभी घरों में कैद हो गए
कैसी यह लाचारी है
कैसा महासंक्रमण आया 
कैसी यह महामारी है

रोज रोज गिरती है लाशें
कौन करे अब गिनती
यमराज से कह कर थक गए
नहीं सुनते वो विनती

एक मास्क में सिमट गई
साँसें सारे जीवन की
नहीं मिली है दवा आज तक
इस व्याधि के उपचार की

थम रहा जीवन पृथ्वी पर
छाई संध्या बेला है
जीवन तो लगता है जैसे
दो दिन का बस मेला है।


( यह कविता स्मृति मेघ में प्रकाशित हो गई है। )