Saturday, July 31, 2021

कविताएँ उदास क्यों हैं' ?

वह आज मेरे सपने में आई
उसने मेरी तरफ देख पूछा -
'तुम्हारी कविताएँ
इतनी उदास क्यों हैं' ? 

मैंने एक फीकी मुस्कान के साथ
उसकी ओर देखा 
उसने अपनी नजरे घुमा ली 

मेरी कविताओं की पुस्तक 
हाथ में लेकर 
अपनी लरजती अँगुलियों से 
सहलाने लगी

मेरा नया कविता संग्रह 
"स्मृति मेघ" था। 





Thursday, July 29, 2021

स्नेहिल आँचल को नमन

जीवन के मझधार समय 
आया एक तूफ़ान प्रबल, 
जीवन साथी बिछुड़ गया 
टूट गया जीवन सम्बल। 

पतझड़ आया जीवन में 
मधुमासी सपने रंग धुले, 
रूठ  गई  चाँदनी  रातें 
तम सधन के पंख खुले। 

विरह वेदना मन में छाई 
अश्क झरे फिरआँखों से 
जीवन सपने चूर हो गए 
उसके एक चले जाने से। 

भारी मन की गीली आँखें 
मन में है अनजानी तपन,
उपकारों की याद शेष है 
स्नेहिल आँचल को नमन। 
 

Saturday, July 17, 2021

रुबाइयाँ

चार दिनों के जीवन में तुम भी कुछ कर लो।
चार दिनों  की रात  चाँदनी  प्यार से भर लो।
चार दिनों का सारा खेल सबको गले लगालो,
दुनिया तुमको  याद करे  ऐसा कुछ कर लो।

दिन सुबह उगता है शाम को ढल जाता है।
सूर्य आता है सुबह शाम को फिर जाता है।
फ़लसफ़ा इस जीवन का  बस इतना ही है,
जीवन  आता है  और आ के चला जाता है। 

घर में घु सता हूँ घर से बाहर निकलता हूँ।
करने के  लिए अब मैं कुछ नहीं करता हूँ।
रोज अखबार के पन्नों को पलट कर पढ़ते, 
वक़्त को काटता हूँ उम्र को हल करता हूँ।

सभी  कुछ  होकर भी अपना कुछ नहीं है।
जिन्दगी  मौत पर अपना कोई  बस नहीं है।
तुम जितना  चाहो जोड़ कर रख लो घर में,
साथ में जाना तुम्हारे एक दमड़ी भी नहीं है।

Wednesday, July 14, 2021

प्रजातंत्र और नेताजी

नेताजी बड़े सरल-सजन लगते हैं, गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं। 
देश आज इन्हीं से चलता है, विकास दौड़े नहीं यही ध्यान रखते हैं। 

नेताजी सोच-समझ योजना बनाते, देश भलाई का ध्यान रखते हैं। 
देश का भला हो या नहीं हो, अपना भला सात पीढ़ी तक करते हैं। 

राजनीति करना धंधा बन गया, अब ईमानदार लोग नहीं करते हैं। 
जो करते हैं वो भी एक करोड़ खर्च करके,एक सौ करोड़ बनाते हैं। 

पुलिस, सरकारी कर्मचारी नेताओं की,  वसूली का काम करते हैं 
किसके यहाँ से कितना वसूलना, यह सब नेताजी बताया करते हैं। 

रैलियों के लिए भीड़ जुटाने का काम, आज कल ठेकेदार करते हैं 
किस को कितनी भीड़ चाहिए, उसका इंतजाम मिनटों में करते हैं।

देखो प्रजातंत्र का देश में कैसा हाल है, मार के आगे सब बेहाल है। 
विपक्ष में नारे लगाने वाले भी, लौट कर जीत के खेमे में आ जाते हैं।*

* बंगाल के चुनाव में अभी यही हुवा है।  


Friday, July 9, 2021

फिर भी मैं चलता रहा

उसकी शरारतें याद कर, रात भर जागता रहा। 
उसकी हँसी ओ दिल्लगी से, मन बहलाता रहा।। 

मैं तो अब लम्बी जिंदगी नहीं, मौत मांग रहा। 
मौत के बाद, उसके दीदार की हसरत मांग रहा।  

मैं उससे लड़ता रहा, लड़के हारता भी रहा। 
मगर हार करके भी, उसी से फिर लड़ता रहा।।

आँखें बंद किये मैं रात भर, ख्वाब देखता रहा। 
ख़्वाब में मिलने आएगी, यही आश लगाए रहा।।   

मुड़ मुड़ जो देखती थी, उसका संग नहीं रहा। 
मैं भी उसे भूलते-भुलाते, वक्त को काटते रहा।।   
           
दिल में यादें संजोए, आँखों में पानी भरता रहा। 
न मंजिल न हमसफ़र, फिर भी मैं चलता रहा।। 



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )


Thursday, July 8, 2021

तभी धड़कनें बढ़ती हैं

यदि जोश है उमंग है, तो कायनात तुम्हारी है। 
जिन्दादिली के आभाव में, जीना भी बेकार है।। 

प्यार अंधा प्यार गूंगा और प्यार बहरा होता है। 
शोख़ उमर क्या-क्या कर बैठे कौन जानता है।। 

बचपन की उम्र तो, शोखियों में निकल जाती है। 
जवानी की गाँठ लगते ही, चाल बदल जाती है।।  

आँखों में हैं स्वप्न मेरे, यादों में कविता ढलती है। 
कहीं दूर से आती आवाज़, जैसे अभी बुलाती है।। 

चाहे जितने दुःख आए, जिंदगी नहीं रुकती है। 
जवानियाँ आती रहती है, और जाती रहती है।। 

जब भी बिजली कड़कती है, हिचकी आती है। 
बात कुछ तो है कहीं, तभी धड़कनें बढ़ती हैं।। 




( यह कविता "स्मृति मेघ" में छप गई है। )