Thursday, October 29, 2020

आओ पेड़ लगाए

देता पेड़ सभी को छाँया 
       जो भी इनके पास आया 
             नहीं भेद है इनके मन में 
                    कोई नहीं इनको पराया। 

झूमझूम कर ये लहराते 
       मानसून के बादल लाते  
              सूरज का ये ताप मिटाते
                     प्राण वायु हमको दे जाते। 

लेकिन आज खड़े ब्यापारी 
       लेकर हाथों में सब आरी 
              शहर गांव में कहीं देखलो 
                      पेड़ों के कटने की तैयारी।  

आओ हम संकल्प करें 
        पर्यायवरण की रक्षा करें 
               पेड़ों को कटने नहीं देंगें 
                      जन-जन में यह बात करें। 

पेड़ों को हम मित्र बनाए 
       नए-नए अब पेड़  लगाए 
              प्रदूषण चिंता का विषय है 
                     पेड़ लगा कर दूर भगाए। 


( यह कविता स्मृति मेघ में प्रकाशित हो गई है। )




Friday, October 16, 2020

कुछ यादें और कुछ अहसास

देखते ही देखते
कितना कुछ बदल गया 
एक छोटी सी गुड्डिया 
जो सदा हमारे साथ खेलती थी 
आज सात समुद्र पार चली गई। 

उसके बचपन की ढेरों सौगातें 
बसी है हमारे दिलों में 
आँगन में पैंजन की रुनझुन 
तोतले बोलो की मीठी सरगम 
किलकारियों से घर का गूंजना 
खिलखिला कर हँसना 
अँगुली पकड़ कर चलना 
लगता है जैसे कल की बातें हैं। 

सत्तरह वर्ष की उम्र में 
चली गई अमेरिका पढाई करने 
आज कर रही है वहाँ जॉब 
कुछ वर्षों में हो जाएगी शादी 
चली जाएगी अपने ससुराल 
एक नया संसार बसाने
रह जाएगी सदा- सदा  के लिए 
हमारे संग उसकी कुछ यादें 
और कुछ अहसास। 


( यह कविता स्मृति मेघ में प्रकाशित हो गई है। )
 












Tuesday, October 13, 2020

चिन्ता छोड़ो और खुश रहो

चिन्ता छोड़ो और खुश रहो
शान्ति-सदभाव बढ़ाते चलो
दुखियारों के दर्द मिटा कर
सुधा - श्रोत  बहते  चलो। 

चाहे कितना कठिन पथ हो 
हँसते और मुस्कराते चलो  
नफरत की दीवार हटा कर 
सबको  गले  लगाते चलो। 

अधिकारों की अंधी दौड़ में
अपना कर्तब्य निभाते चलो
परोपकार का जीवन जी कर 
खुशियाँ सब में बाँटते चलो। 

सारा जग हो रहा  प्रदूषित 
पर्यायवरण को बचाते चलो
स्वच्छता का हाथ थाम कर 
प्रकृति की रक्षा करते चलो। 

मानवता की जय करने को 
संयम-समता के संग  चलो 
जीवन से आडम्बर हटा कर 
धरा  को  स्वर्ग बनाते चलो। 




( यह कविता स्मृति मेघ में प्रकाशित हो गई है। )




 

Sunday, October 11, 2020

श्रद्धा ही श्राद्ध है

मैंने श्राद्ध पक्ष में 
जिन कौओं को खीर खिलाई 
वो ब्राह्मण थे या नहीं,मुझे नहीं पता 

मैंने श्राद्ध पक्ष में 
जिन्ह गायों को हलवा-पूड़ी खिलाई 
वो ब्राह्मण थी या नहीं, मुझे नहीं पता 

मैंने श्राद्ध पक्ष में 
जिस भूखे को भोजन कराया 
वो ब्राह्मण था या नहीं, मुझे नहीं पता 

लेकिन मैंने  
जो कुछ भी किया 
श्रद्धा और निष्ठा से किया 

और पितरों के प्रति 
श्रद्धा और निष्ठा से किया 
हर कार्य श्राद्ध होता है। 



 ( यह कविता स्मृति मेघ में प्रकाशित हो गई है। )