Thursday, March 19, 2020

एक टुकड़ा रोटी

एक टुकड़ा रोटी
आदमी को कितना
मजबूर कर देता है
घर से बाहर निकलने के लिए
चाहे अमीर हो या गरीब
चाहे सर्दी हो या गर्मी
चाहे वर्षात हो या तूफ़ान
श्रम -परिश्रम के लिए
बाहर निकलना ही होगा
कोरोना वायरस जान लेवा है
घर बहुत सुरक्षित है
फिर भी इन्शान मजबूर है
बाहर निलने के लिए
एक टुकड़ा रोटी के हाथों।


ओ मेरी सहृदय !

एक, दो, तीन नहीं
पूरे छः साल हो गए तुम्हें बिछुड़े हुए
उस दिन के बाद आज तक 
नहीं देखा तुम्हारा चेहरा 

लगी है तुम्हारे साथ की
एक तस्वीर कमरे में
   सोचता हूँ कभी 
   हम भी साथ थे

कितना मधुर जीवन था 
दिलो में रहता 
एक दूजे के प्रति प्यार 
और अनुराग 

दो धड़कनों ने 
एक सुर में गीत गया था 
जीवन उस राग की 
मधु लहरियों में खो गया था 

आज मैं अकेला हूँ 
जीवन तो जीना पडेगा 
मगर नयनों में नीर भर 
अब पीर को भी गाना पडेगा 

प्रतिबद्धता की यह कविता 
तुम्हीं को समर्पित है 
ओ मेरी सहृदय ! 





( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )



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Friday, March 13, 2020

सगळा री आस ( राजस्थानी कविता )

आज म्हारी आंख्यां
तरसती रही थारे मुखड़े री
मुळक देखण ताईं 

आज म्हारा होठ
तरसता रिया तनै
दिल रो दरद बताणे ताईं

आज म्हारा कान
तरसता रिया थारा
मीठा बोल सुणणे ताईं

आज म्हारो तन
तरसतो रियो तनै हैत स्यूं
गळे लगाण ताईं

आज म्हारो मन
तरसतो रियो थार सागै
प्यार री दो बातां करणे ताईं

पण थूं तो
गया बाद पाछी
बावड़ी ही कोनी

काश !
थूं ऐकर आ ज्यांवती
तो सगळा री आस
पूरी हो ज्यांवती।





Saturday, March 7, 2020

बड़ा बेशर्म है

एक बार मैं 
साले की शादी में 
सीकर बारात में गया। 

शहर से पत्नी के लिए 
कुछ लेकर जाऊं 
मन में आया। 

घर में किसी को 
पता नहीं लगे 
इसलिए छुपा कर भी 
ले जाना था। 

छोटी आइटम हो 
और पॉकेट में आ जाय 
यह भी ध्यान रखना था। 

मैं दुकानदार से 
जाकर बोला 
भैया एक चोली देना। 

दूकानदार बोला
साईज़ बताइये और 
किस कलर की देना। 

मेरे बगल में ही 
दो लड़कियाँ खड़ी थी 
मैंने इशारे से कहा
इनकी साईज़ दे देना।  

लड़कियाँ मेरी तरफ 
देख कर बोली 
बड़ा बेशर्म है। 

मेरी समझ में 
कुछ नहीं आया 
मैं चोली लेकर 
गांव चला आया। 

बहुत वर्षों बाद 
एक दिन मैंने 
इस बात को अपनी 
पत्नी को बताया। 

वो मेरी नादानी पर 
हँस कर बोली 
और इस रहस्य को 
समझाया। 

तब मेरी समझ में आया 
कि उन लड़कियों ने मुझे 
बेशर्म क्यों बताया। #


# सत्तरह वर्ष की उम्र में ही शादी हो गई थी। पत्नी की उम्र साढ़े तरह वर्ष की थी। गांवों में रहते थे। शादी का क्या अर्थ होता है, वो भी नहीं समझते थे। एक लड़की साथ खेलने घर में आएगी, वो साथ में पढ़ेगी, बस यही शादी का अर्थ था। आज जब भी यह घटना याद आती है, मैं अपने पर हँसने लगता हूँ।     

एक नया अर्थ

सूरज तो आज भी निकला है
फूल आज भी खिलें हैं
हवा आज भी चली है
मगर आज तुम नहीं हो 

यह सूरज की लालिमा
यह फूलों का खिलाना
यह हवा का चलना
मेरे लिए आज एक
नया अर्थ लेकर आया है 

कल की सुबह
और आज की सुबह में
कितना अंतर है
यह मेरा मन समझता है।


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )