Saturday, December 31, 2022

लव, सेक्स और मर्डर

बेटियां परम्पराएं तोड़ रही है 
लिव इन रिलेशन जी रही है,
                  
                   बिना किसी कमिटमेंट के 
                 क्वाँरी कोख जन्म दे रही है। 
  
शर्मों - हया खत्म हो रही है 
हैवानों के जाल फंस रही है,
                
                 मान - इज्जत  ताक में रख 
                रिश्ते-नाते सब तोड़ रही है। 

जीवन दांव पर लगा रही है
अपना धर्म भी छोड़ रही है,    
               
                प्यार का  बुख़ार उतरते ही 
               घर से बेघर होती जा रही है।  

आबरू कलंकित हो रही है 
ऐसिड से जलाई जा  रही है
              36 टुकड़ों में कटने का दर्द 
               कलम लिख नहीं पा रही है। 



Thursday, December 29, 2022

व्याकुल आँखें

व्याकुल आँखें
आज भी देख रही है 
राह तुम्हारी 

बिस्तर में 
हर करवट निकल रही है 
आह तुम्हारी 

व्यथित मन 
आज भी चाह रहा है 
छांव तुम्हारी 

यादों के सागर में 
बिन पतवार चल रही है 
नाव तुम्हारी 

जीवन की राह में 
हर ठोकर पर याद आ रही है 
बाँह तुम्हारी। 


Tuesday, December 20, 2022

शुभ आशीर्वाद

सुख समृद्धि से भरा 
दाम्पत्य जीवन हो सदा 
प्रभु की कृपा बनी रहे 
नील - पूनम पर सदा। 

तन भले ही दो ही हो
मगर दोनों एक जान हो 
एक दूजे के लिए प्रभु का 
सुन्दर एक वरदान हो। 

दो कुलों से जुड़े हो तुम 
उन दोनों की शान हो
एक दूजे के पूरक हो तुम 
हम सब का अभिमान हो। 

उल्लास - उमंगों से भरा 
तुम दोनों का जीवन हो 
अनुकरण करने जैसा 
तुम दोनों का प्यार हो। 

मनोकामना सभी पूर्ण हो 
जीवन में खुशहाल रहो 
आनंद ओ उत्साह के संग 
सदा स्वस्थ निरोग रहो ।  

जीवन के हर पल में 
दोनों हर्षित रहो सदा 
प्रभु की कृपा बनी  रहे 
नील- पूनम पर सदा। #

# नील- पूनम की शादी की पच्चीसवीं वर्षगांठ पर। 





मुझे तुम्हारा साथ चाहिए

रात की मदहोशी 
नींद से जब जगु 
इन्तजार में राह निहारती
तुम्हारी पलकें चाहिए 
मुझे तुम्हारा साथ चाहिए। 

सुबह मॉर्निंग वाक करके 
जब मैं घर लौटू 
नज़रों के सामने मुझे 
तुम्हारा खिलता चेहरा चाहिए 
मुझे तुम्हारा साथ चाहिए। 

दिन भर काम कर के 
थका हारा जब घर लौटू 
दरवाजे पर इन्तजार करती 
तुम्हारी शरबती आँखें चाहिए 
मुझे तुम्हारा साथ चाहिए। 

जीवन के सुरम्य पथ में 
हर कदम- कदम पर 
तुम्हारी खिलती प्राणमयी 
मुस्कान चाहिए 
मुझे तुम्हारा साथ चाहिए। 

थोड़ी सी शराररत 
थोड़ी सी तकरार  
थोड़ा तुम्हारे नरम हाथों का 
स्पर्श चाहिए  
मुझे तुम्हारा साथ चाहिए। 






Thursday, December 8, 2022

सारी बातें खत में लिखना

कैसा है चौमासा - खत में लिखना 
तालतलैया भर जाए  - तब लिखना 
हाँ, लिखना - क्या बोया है खेतों में 
सारी बातें लिखना खत में ।  

गैया कब बछड़ा देगी - खत में लिखना 
गुनगुनाए धान की कोठी - तब लिखना 
हाँ, लिखना - कितना साहूकार ले गया 
सारी बातें लिखना खत में ।  

बातें दादी की - खत में लिखना 
ससुराल से आए बड़की - तब लिखना 
हाँ, लिखना - कैसी है फुलकी बहना 
सारी बातें लिखना खत में ।  

गौना कब होगा - खत में लिखना 
कक्का फ़ौज से आए - तब लिखना 
हाँ, लिखना - कैसी है माँ की कमरिया 
सारी बातें लिखना खत में ।  

गांव की ख़बरें - खत में लिखना
मनरेगा में काम मिले - तब लिखना 
हाँ, लिखना - कितना लेता है पटवारी  
सारी बातें लिखना खत में ।  

Wednesday, November 23, 2022

हल्की गुलाबी ठण्ड

हल्की गुलाबी ठण्ड 
दस्तक देने लगी है 
स्वेटर, मफलर, कोट 
बाहर निकलने लगे हैं। 

ठंडी-ठंडी सुबह संग 
कंपकंपी रातें आई हैं 
हवा भी रंग दिखाने 
साजिस रचने लगी है। 

पेड़ों के पुराने पत्ते 
झर-झर गिरने लगे हैं 
रंग-बिरंगे फूल अब 
घरों में खिलने लगे हैं। 

आलू, मटर के परांठे 
थाली में सजने लगे हैं 
गाजर का हलवा भी 
खुशबू बिखेरने लगा है। 

गजक, मूंगफली, रेवड़ी 
घरों में आने लगी हैं  
चाय की प्यालियाँ भी 
होठों को छूने लगी हैं। 

ताजा गाजर, मूली भी 
बाजार में आने लगी है 
दुपहरिया में खाने का 
अब मजा देने लगी है। 

शाम होते ही घरों में 
सिगड़ी जलने लगी है 
धुंध  में  लिपटी  रातें
रजाई में घुसने लगी हैं । 
 




घरों के किंवाड़

परिंदों की 
पहली उड़ान संग 
चले जाते हैं खेतों में 

पेड़ों को देख 
भूल जाते हैं थकान 
लग जाते हैं काम में 

भीगे खेत देख 
भूल जाते हैं उदासी 
फूटते हैं स्वर अलगोजे में 

आसमान में 
चाँद देख खो जाते 
भविष्य के सपनों में 

वापसी के बाद भी
गांव पक रहा है 
मेरे सपनों में 

याद आते हैं 
रोहिड़ा खेत 
समलाई नाड़ी 
गांव का गुवाड़

लौट कर 
आने वालो के लिए 
गांव सदा खुले रखता है 
अपने किंवाड़। 






मैं रहा अकेला राहों में

सुख गया जीवन उपवन, रहा कभी जो हरा-भरा
सारे मौसम लगते फीके, मैं रहा अकेला राहों में।

तुम थी मेरी जीवन साथी, तुम थी जीवन आधार
मूरत बैठी मन मंदिर में, मैं रहा अकेला राहों में।

मैंने आँखों में डाला, जीवन सपनों का काजल
कारवां तो गुजर गया, मैं रहा अकेला राहों में।

सातों कसमें खाकर, तुम साथ निभाने को आई
बीच राह में वादा तोड़ा, मैं रहा अकेला राहों में।

दुःख मेरा क्या बतलाऊँ, दिल रोता है रातों में
यादों की बैसाखी संग, मैं रहा अकेला राहों में।

गीत अधूरे छूटे मेरे, अब क्या ग़मे बयान करूँ
सरगम टुटा जीवन का, मैं रहा अकेला राहों में।

Saturday, November 19, 2022

कैसे उसका हिसाब लिखूँ ?

नारी ने घर का काम किया 
वहाँ क्या खोया-क्या पाया  
क्या सुख-दुःख भोगा लिखूँ  
कैसे उसका हिसाब लिखूँ ? 

कितनी बार चूल्हा जलाया 
कितनी रोज रोटियाँ बेली 
क्या बच्चों के टिफिन लिखूँ 
कैसे उसका हिसाब लिखूँ ? 

कितनी बार खाना परोसा 
कितना ठंडा-बासी खाया
क्या पानी भरने का लिखुँ
कैसे उसका हिसाब लिखूँ ?  

कितनी बार झाड़ू लगाया 
कितना बर्तन साफ़ किया 
क्या कपड़ों का धोना लिखुँ
कैसे उसका हिसाब लिखूँ ? 

कितना बिस्तर रोज लगाया
कितने जन रूठों को मनाया 
क्या बच्चे जन्म पीड़ा लिखूँ 
कैसे उसका हिसाब लिखूँ ? 
  
कितना उसका वेतन लिखूँ 
कितना ओवरटाइम लिखूँ 
क्या दाम्पत्य का मोल लिखूँ 
कैसे उसका हिसाब लिखूँ ? 


Tuesday, November 15, 2022

ध्यान की नई पद्धति

आप अपने 
आप से हट कर 
दूसरे के बारे में सोचें 
पूरी तरह से दूसरे में 
रुचि ले। 

उस पर 
तरह- तरह से शक करें 
शक की निगाह से देखें 
शक को पैदा करें। 

थोड़ी देर बाद 
आप देखेंगे कि आप 
अपने आप से दूर हो गए 

आप का मन 
इस समय पूरी तरह से 
दूसरे में रूचि ले रहा है 

अब आप
आनंद का अनुभव 
कर रहे हैं 
आप जब तक चाहे 
इस अवस्था में बैठे रहें 

जब आप को 
समाधि से उठना हो 
आप अपने आप से कहें 
"जाने दो अपना क्या लिया"

और इसके साथ 
अपने दोनों हाथों की 
हथेलियों को रगड़ कर 
अपनी आँखों पर रख लें 

आप अनुभव करेंगे 
कि आप का मन 
अखंड आनंद से 
अभिभूत हो गया है। 


  



Monday, November 14, 2022

आकाश उसी का होता है

आकाश उसी का होता है 
जो वहाँ उड़ान भरता है, 
समुद्र उसी का होता है  
जो वहाँ दोहन करता है। 

सूरज उसी का होता है 
जो उससे ऊर्जा लेता है, 
चाँद उसी का होता है 
जो वहाँ तक पहुंचता है। 

सौरभ उसी की होती है 
जो उसे ग्रहण करता है, 
आनंद उसी का होता है 
जो उसे अनुभव करता है। 

स्वप्न उसी का होता है 
जो उसको देखता है,
मंजिल उसी की होती है 
जो वहाँ पहुँचता है।   


Friday, November 11, 2022

चौकड़ी भरती

चौकड़ी भरती 
चली आती तुम्हारी यादें 
कस्तूरी मृग की तरह। 

मार छलाँग 
गुम हो जाता चैन 
खरगोश की तरह। 

फुर्र हो जाती नींद 
चिड़ियों की तरह। 

यादों संग 
धड़कता दिल 
मेघों की तरह।  

शब्दों से परे 
मन में उमगते भाव 
सरिता की तरह। 

महक उठती 
प्यार भरी यादें 
खुशबू की तरह। 

उमड़ पड़ता 
निश्छल प्रेम 
लहरों की तरह। 

दिल में बसी  
प्यारी मुस्कराहट 
खुशबू की तरह। 

काश ! 
तुम ही चली आती 
चौकड़ी भरती
यादों की तरह। 




Saturday, October 15, 2022

छपने के लिए भेजें

मैंने समाचार पत्र में
एक कविता भेजी 
सधन्यवाद के साथ -
संपादक महोदय ने लिखा-
आप की कविता प्रकाशन 
योग्य नहीं। 

भेजना हो तो चटपटा 
समाचार लिख कर भेजें। 
सनसनी खोज खबर भेजें
जो सुबह चाय के साथ 
गरम मसाले का काम करे। 
आज कल कविताएं पढ़ता कौन है? 

आप लिखेंगे देश प्रेम पर 
देश की ख़ुशहाली पर 
वीर रस, भक्ति रस या 
श्रृंगार रस पर। 
इन सबसे समाचार नहीं बनते। 
छपने के लिए सनसनी फैलाएं।
मसलन 
पेड़ पर लटकता शव
टुकड़ों में कटी लाश 
बम धमाके से मरा व्यक्ति  
ऐसी घंटनाएं ढूंढे 
इन्हें सनसनीखेज बना 
छपने के लिए भेजें। 

बेटे ने की पिता की हत्या 
दहेज़ के लिए बहू की हत्या 
नाबालिका की रेप के बाद हत्या 
ऐसी घटनाएं खोजें  
इन्हें दर्दनाक बना 
छपने के लिए भेजें। 

गायों की तस्करी
मादक पदार्थों की जब्ती 
आतंकियों की गिरफ्तारी 
ऐसी जासूसी खबरें खोजें 
इन्हें रहस्यमय बना कर 
छपने के लिए भेजें। 

पूजा स्थलों में तोड़-फोड़ 
दो साम्प्रदायों में लड़ाई 
विस्फोटक बरामद 
ऐसी ख़बरों को खोजें 
नमक मिर्च लगा कर 
छपने के लिए भेजें। 

समाचार बनाने वालों का 
पीछा करते रहें 
नहीं मिले तो उनकी तलाश करें 
उन्हें उकसाएं 
जैसे ही कोई खबर बने 
छपने के लिए तत्काल भेजें। 

कविता को अभी विराम दें 
पहले थोड़ी नफरत बांट दें। 





इस देश को अब फिर से, विश्व गुरु बनाओ।

अहंकार को त्याग कर, भक्ति  भाव जगाओ।
मर्यादा को अपना कर, मानव -धर्म निभाओ। 
स्वार्थ-भाव को दूर कर, जन सेवा अपनाओ। 
युवाओं को राह दिखा कर, राष्ट्रभक्त बनाओ। 
इस देश को अब फिर से, विश्व गुरु बनाओ। 

लोभ-लालच दूर कर, देश को समर्थ बनाओ।
क्लेश -कटुता दूर कर, स्वदेशी भाव जगाओ।   
उत्साह संग आगे बढ़, देश का मान बढ़ाओ।
सर्वे भवन्तु सुखिनः संग, सबको सुखी बनाओ। 
इस देश को अब फिर से,  विश्व गुरु बनाओ। 
 
भोगवाद को दूर कर,सदाचार को अपनाओ।          
आत्म निर्भरता प्राप्त कर,सम्पन देश बनाओ। 
अनुशासन का पालन कर,आगे बढ़ते जाओ। 
वसुधा कुटुम्बकम कह, सबको गले लगाओ।          
इस देश को अब  फिर से, विश्व गुरु बनाओ। 

भेद - भाव को दूर कर, शिक्षा दीप जलाओ।                          
मोह-वासना त्याग कर, नैतिकता अपनाओ। 
सेवा में समरस होकर, परहित भाव जगाओ।
सभी सुखी हो सभी निरोगी,ऐसा देश बनाओ। 
इस देश को अब फिर से, विश्व गुरु बनाओ।


Saturday, July 23, 2022

मोबाईल सागै सगळा नै टेम ( राजस्थानी कविता )

पेळी लोग 
टैम पास करण खातर 
बातां किया करता 

कर कळैवो सगळा 
चूंतरी पर बैठ ज्यांवता  
चिलम रे सपीड़ा सागै 
सगळी बातां करता 

रोटी खावण ने 
घर मायं आंवता जणा 
लुगायां सागै घर-बिद की
सगळी बातां करता 

दुपारी में पोली 
मायं आडा हुवंता जणा 
पड़ोस्यां सागै दुःख-सुख की 
सगळी बातां करता 

रात पड़्या गुवाड़ी मांय 
मांचा ढाळ' र बैठ ज्यांवता 
बुड्ढा-बडेरा धरम-करम री 
सगळी बातां करता 

पण अबै  बातां करणे रो 
कोई कनै भी नीं है  टैम
नीं थाने टैम नीं म्हाने टैम 
पण इण मोबाईल सागै 
सगळा नै है टेम ही टैम। 

Thursday, July 21, 2022

एक बार तो गांव आयां सरसी ( राजस्थानी कविता )

गांव री गळ्यां  थारी जौवे बाट  
घर री थळी करे थारी अडीक,  
इयां परदेसी बण्या कियां हुसी 
एक बार तो गांव आयां सरसी। 

धोरां वाळा काकड़ी र मतीरा 
अगुण खेत री बाजरी रा सिट्टा,
आरों सुवाद भुलाया कियां हुसी  
एक बार तो गांव आयां सरसी। 

खेजडल्यां रा  लड़ालूम खोखां 
झड़का रा मिश्री मगरा बोरिया,  
आरों सुवाद भुलाया कियां हुसी  
एक बार तो गांव आयां सरसी। 

केशरिया बानां पहरयां रोहीड़ा 
खेत रे सींवांण फोग' र खेजड़ा,
आं रुखां नै बिसरायां कियां हुसी 
एक बार तो गांव आयां सरसी। 

कबुतरां री मेड़ी माथै गटरकगुं 
कमेड़ी री ड़ोळी माथै टमरकटूं,
आं पंछ्या न भुलाया कियां हुसी  
एक बार तो गांव आयां सरसी। 

खीरा हेठै सेक्योड़ी ताती रोटी  
काचरा, फली, मतीरी रो साग,
आरों सुवाद भुलाया कियां हुसी  
एक बार तो गांव आयां सरसी। 

तारा स्यूं नितरा मुळकतो आभो 
मिनखां स्यूं मुळकती गाँव गळी, 
आं बाता नै भुलायां कियां हुसी  
एक बार तो गांव आयां सरसी। 


जुगनू राजा जी लाए बरात

आसमान में बादल गरजे 
उमड़-घुमड़ नभ में छाए,
रिमझिम बूँदें लगी बरसने 
बादल आए,  बादल आए।

बिजली चमकी चम-चम
गाज गीरी तड़-तड़ कर,
सात समुद्र से पानी लाए 
बरसे ओले टप-टप कर।

गली-गली में बहता पानी 
बच्चों ने मिल नाव चलाई, 
ताल-तलैया भर गई सारी 
इंद्रधनुष भी दिया दिखाई। 

बरसा पानी दिन भर आज 
ढलने लगी अब भीगी रात,
स्वागत दीप जले पेड़ों पर 
जुगनू राजा की आई बरात। 

Monday, July 11, 2022

अपना काम आप करें और स्वस्थ रहें

हमारी गृहणियों, जिनके पति सवेरे आफिस चले जाते हैं और शाम को घर पर लौटते हैं, उनको अपने कमरे साफ कराने के लिये महरी चाहिए ? घर मे एक गिलास पानी लाने के लिए नौकर चाहिए। दरअसल हमारे यहाँ काम को सिर्फ बोझ समझा जाता है चाहे वो नौकरी में हो या निजी जिंदगी में हो। जिस देश मे कर्मप्रधान गीता की व्यख्या इतने ब्यापक स्तर पर होती है वहाँ कर्महीनता से समाज सराबोर है। हम काम मे मज़ा नही ढूंढते, सीखने का आनंद नही जानते, कुशलता का फायदा नही उठाते!

वज़न घटाने के लिए सलाद के पत्ते खाना मंज़ूर है। जिम में घण्टो ट्रेड मिल पर हांफना मंज़ूर है, लेकिन घर का काम करना मंजूर नहीं। जो नौकरानियां हमारे घरों को साफ करने आती हैं उनके भी परिवार होते हैं बच्चे होते हैं, ना उनके घरों में कोई खाना बनाने आता है ना ही कोई कपड़े धोने। जब वो इतने घरों का काम करके अपनी पारिवारिक जिम्मेदारी को निभा लेती हैं तो हम अपने परिवार का पालन पोषण करने में क्यों थक जाते हैं?

हम अपने घर को मेहरी से साफ कराते हैं। 
खाना कुक से बनवाते हैं। 
झूठे बर्तन नौकर से धुलवाते हैं। 
कपडे दया से धुलवाते हैं। 
कपड़े धोबी से प्रेस करवाते हैं। 
बाथरूम स्वीपर से साफ़ कराते हैं। 
सब्जी, दूध वाला घर लाकर देता है। 
बच्चे आया से पलवाते हैँ। 
बच्चों को ट्यूटर से पढ़ाते है। 
गाड़ी ड्राइवर से धुलवाते हैं। 
बगीचा माली से लगवाते हैं। 
तो फिर सोचिये हम अपने घर के लिये क्या करते हैं? 

कितने शर्म की बात है एक दिन अगर महरी छुट्टी कर जाये तो कोहराम मच जाता है, फ़ोन करके अडोस पड़ोस में पूछा जाता है। जिस दिन खाना बनाने वाली ना आये तो होटल में आर्डर होता है या फिर मेग्गी बनता है। घरेलू नौकर अगर साल में एक बार छुट्टी मांगता है तो भी हमे बुखार चढ़ जाता है। होली दिवाली व त्योहारों पर भी हम नौकर को छुट्टी देने से कतराते हैं। 

जो महिलाएं नौकरीपेशा हैं उनका नौकर रखना वाज़िब बनता है किंतु जो महिलाएँ सिर्फ घर में रहकर अपना समय TV देखने या FB और whats app करने में बिताती हैं,  उन्हें भी हर काम के लिए नौकर चाहिये ? सिर्फ इसलिए क्योंकि वो पैसा देकर काम करा सकती हैं ?  लेकिन बदले में कितनी बीमारियों को दावत देती हैं यह शायद वो नही जानती। आज 35 वर्ष से ऊपर की महिलाओं को ब्लड प्रेशर ,मधुमेह, घुटनों के दर्द, कोलेस्ट्रॉल, थायरॉइड जैसी बीमारियां घेर लेती हैं जिसकी वजह सिर्फ और सिर्फ लाइफस्टाइल है।

यदि 2 घण्टे घर की सफाई की जाये तो 320 कैलोरी खर्च होती है। 45 मिनट बगीचे में काम करने से 170 कैलोरी खर्च होती हैंन। एक गाड़ी की सफाई करने में 67 कैलोरी खर्च होती है।  खिड़की दरवाजो को पोंछने से कंधे,हाथ, पीठ व पेट की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। आटा गूंधने से हाथों में आर्थ्राइटिस नही आता। कपड़े निचोड़ने से कलाई व हाथ की मानपेशियाँ मजबूत होती हैं।  20 मिनट तक रोटियां बेलने से फ्रोजन शोल्डर होने की संभावना कम हो जाती है। ज़मीन पर बैठकर काम करने से घुटने जल्दी खराब नही होते।

लेकिन हम इन सबकी ज़िम्मेदारी नौकर पर छोड़कर खुद डॉक्टरों से दोस्ती कर लेते हैँ। फिर शुरू होती है खाने मे परहेज़, टहलना, जिम, या फिर सर्जरी। कितना आसान है इन सबसे पीछा छुड़ाना यदि हम अपने घर के काम को खुद करें और स्वस्थ रहे। पश्चिमी देशों में अमीर से अमीर लोग भी अपना सारा काम खुद करते हैं और इसमें उन्हें कोई शर्म नही लगती। लेकिन हम मर जायेंगे पर काम नही करेंगे।

किसी भी तरह की निर्भरता कष्ट का कारण होती है फिर वो चाहे शारीरिक हो, भौतिक हो या मानसिक हो। अपने काम दूसरों से करवा करवा कर हम स्वयं को मानसिक व शारीरिक रूप से पंगु बना लेते हैं और नौकर ना होने के स्थिति में अपने आप को असहाय महसूस करते हैं। ये एक दुखद स्थिति है। 

यदि हम काम को बोझ ना समझ कर,उसका आंनद ले तो वो बोझ नही बल्कि एक दिलचस्प एक्टिविटी लगेगा।जिम से ज्यादा बोरिंग कोई जगह नही,  उसी की जगह जब आप अपने घर को रगड़ कर साफ करते हैं तो शरीर से "एंडोर्फिन हारमोन" निकलता है जो आपको अपनी मेहनत का फल देखकर खुशी की अनुभूति देता है।

अच्छा खाना बनाकर दूसरों को खिलाने से "सेरोटॉनिन हार्मोन" निकलता है जो तनाव को दूर करता है। जब काम करने के इतने फायदे हैं तो फिर ये मौके क्यों छोड़े जाय। ज़रा सोचिये अपना काम स्वयं करके हम ना सिर्फ अपने स्वास्थ्य को बनाये रखते हैं बल्कि पैसे भी बचाते हैं और दूसरे की निर्भरता से भी बचते हैं।

Saturday, July 9, 2022

पहली शिकायत

तुमने आज पहली बार 
शिकायत की 
कि आपका दिन-रात 
काम में लगे रहना 
मुझसे अब सहा नहीं जाता 

मैं सहम उठा 
काम- काज में इतना व्यस्त रहा 
की मैंने कभी सोचा भी नहीं 
कि तुम घर -परिवार के बीच 
मुझे इस तरह मिस करती होगी 

उचित तो यह था कि 
मैं अपने परिश्रम पर खुश होता 
मगर तुम्हारी बात सुन कर 
मैं दुःखी हो गया 
जरूर तुमने सहने के 
अंतिम छोर पर पहुँच कर ही 
यह बात कही होगी 

मैंने कहा 
चलो मैं तुम्हारी बात को 
मान लेता हूँ 
में तुम्हारे सामने बैठा हूँ 
तुम जो कहोगी मुझे मंजूर है 

मेरी बात पर तुम हँस पड़ी 
मुझे लगा तुमने अपनी 
शिकायत वापिस ले ली 

और अगले दिन 
मैं फिर निकल पड़ा 
रोज की तरह 
तुम्हें फिर सोचते और 
सहते छोड़ कर। 



गांव की गळ्या (राजस्थानी कविता )

गांव की गळ्या 
पतळी अर संकड़ी हुया करती
पण बे जोड़ती एक दूजा ने 
ले जाती गुवाड़ मांय 
नाडी कानी अर खेता मांय 
गळी मुड़ ज्याती कोई न 
कोई के आंगणा कानी 
जठै खेलता मिलता बायळा 
अर खावण ने मिळ ज्याती 
राबड़ी अर रोटी। 

Tuesday, June 28, 2022

हार तो मानवता की ही होगी।


क्या रूस यह 
समझ रहा है कि यूक्रेन  के 
कुछ शहरों पर अधिकार होने से 
वह विश्व विजयी बन जाएगा ?

क्या रूस यह 
समझ रहा है कि यूक्रेन में 
जनसंहार से शांति का लक्ष्य
प्राप्त हो जाएगा ?

रूस के शासक का 
यह जुनून, उन्माद आज 
मानवता के लिए बहुत बड़ा 
खतरा बन गया है।

यूक्रेन में चारों तरफ 
चीख-पुकार मची हुई है 
दिन-रात रूसी मिसाइलों से 
रॉकेट दागे जा रहें हैं। 

गोलो की बमबारी में 
ज़िंदा लाशें जल रही है 
लाखों लोग बेघर हो गये 
सैंकड़ों बच्चे मर गये हैं। 

हर तरफ विध्वंस 
का मंजर दिख रहा है 
जलती इमारते, घरों में 
सिसकियां, आँखों में डर है। 

शहर पूरी तरह से 
वीरान और खंडहर हो रहें हैं 
सड़कों पर सायरन और  
हवा में बारूद की गंध है। 

देखा जाय तो 
युद्ध किसी समस्या का 
समाधान नहीं है। 

वार्ता की मेज पर 
बैठ कर हर समस्या का 
समाधान निकाला जा सकता है। 

इस युद्ध का भी 
एक दिन अन्त जरूर होगा 
जीत चाहे किसी की भी हो 
हार तो मानवता की ही होगी। 







 




नदियों को प्रदूषण मुक्त करना होगा

नदियों के किनारे
कभी होते थे तीर्थ 
जहाँ ऋषि - मुनि 
करते थे तपस्या 

नदियों के किनारे 
बसते थे गांव 
जहाँ गूंजता था
मछुवारों का आलाप 

नदियों के घाटों पर 
बहते थे घी के दीये 
जहाँ गूंजते थे आरतियों 
ऋचाओं के मधुर स्वर 

आज मिटने लगी है 
नदियों की अस्मिता 
भरने लगी है कारखानों 
के अपशिष्ट पदार्थों से 

गिरने लगे हैं 
सीवरों के गंदे नाले 
हो रहा है रंगी-पुती
मूर्तियों का विसर्जन 

अगर धरती पर 
हवा और पानी ही 
दूषित हो गया तो 
जीवन बचेगा कैसे ?

हम सब को मिल कर  
प्रयास करना होगा 
हर हाल में नदियों को 
प्रदूषण मुक्त करना होगा।  



 


Monday, June 27, 2022

तुम्हारा मेरे पास आना

तुम्हारा मेरे पास आना 
गंगा किनारे ठंडी हवा 
का झोंका है 

तुम्हारा मेरे पास आना 
सावन की बरखा की 
पहली फुंहार है 

तुम्हारा मेरे पास आना 
सूखे ठूँठ में कोपलें  
फूटना है 

तुम्हारा मेरे पास आना 
गहन अन्धकार में 
ज्योतिपुंज है 

तुम्हारी यादों संग 
मेरे पास उड़ने लगते हैं 
गीतों के कुछ बोल 

जिनकी गुनगुनाहटों में 
झांक जाती हो तुम 
निभाने अपना कोल। 

Wednesday, June 22, 2022

बोलो क्या करूँ ?

 तुम मुझे बिना कहे, अमरलोक चली गई।
मैं यहाँ अकेला रह गया, बोलो क्या करूँ ?
                                 
                                       जब तक साथ थी, अरमान मचलते थे।  
                                      अब तो सूना जीवन है,  बोलो क्या करूँ ?
                                     
तुम्हारी बातें, तुम्हारी हँसी, याद आती है। 
नहीं निकलती दिल से,  बोलो क्या करूँ ?
                                           
                                           रातों में तनहा बैठा, तुम्हें याद करता हूँ। 
                                           उजाड़ गया मेरा चमन, बोलो क्या करूँ ?
      
कैसे बुझाऊँ मैं,  बिछोह की आग को। 
दिल बात नहीं मानता,  बोलो क्या करूँ ?

                                          साथ जीने-मरने का वादा  किया था तुमने।   
                                         तुम तोड़ गई अपना वादा,  बोलो क्या करूँ ? 


 
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )






मैं कविता ही लिखता रहूँ

तन्हाई के दिनों में
हमसफ़र का काम
कविता करती है।

ठंडी रातों में
गर्माहट का काम
कविता करती है। 

दुःखों के सागर में
पतवार का काम
कविता करती है। 

किसी की यादों को
गुदगुदाने का काम
कविता करती है। 

डगमगाते कदमों को
सहारा  देने का काम
कविता करती है। 

बहते आँसुओं को
पोंछने का काम
कविता करती है। 

निराशा की धुंध में
आशा का संचार
कविता करती है। 

सोते हुए को
जगाने का काम
कविता करती है। 

मैं चाहता हूँ
जीवन के अवसान तक
कविता लिखता रहूँ।


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )



Wednesday, June 15, 2022

चार मुक्तक

मेरे गांव की चहल -पहल गुमसुम बैठी है, 
पनघट के पांवों की पायल उदास बैठी है,
गांवों में स्वार्थ  का एक ऐसा दौर चला है, 
भाई से भाई की  बोली रूठ कर बैठी है। 

पूर्णिमा की उस रात चाँद अमृत रसा था, 
चांदी सी किरणों संग सोना भी बरसा था, 
तारों भरी रात स्वागत करने को आई थी, 
सूरज भी उसे देखने सारी रात तरसा था। 

नेता की गाड़ी को हर कोई राह देता है,
धरती की क्या बात, अम्बर राह देता है,
बुरा-भला कुछ भी करे,सौ खून माफ़ है,                                                                                    
जरुरत पड़े तो,सागर भी गवाही देता है। 

खुले आम घूम रहें, सडकों पर व्यभिचारी,
नहीं धरा, नहीं गर्भ में, सुरक्षित अब नारी, 
आँखें बंद कानून की, क्या करे अब नारी,
युग - युगांतर से सदा, लुटती रही है नारी।









Tuesday, June 14, 2022

मुझको याद सताये

आसमान में बिजुरी चमके 
गरजे बादल घोर,
याद तुम्हारी मुझे सताऐ 
तड़पे करती शोर। 

कामदेव धरती पर आया 
खींची पुष्प कमान, 
चारों ओर बसंत लहराया 
यादें हुई जवान। 

रिमझिम कर बरखा आई 
नील गगन को घेरा,
विरही गीत चातक ने गाया   
उदास हुवा मन मेरा। 

धानी चुनरियाँ धरा ने ओढ़ी
खिलने लगे पलाश,
कुहू तान कोकिल ने छेड़ी 
करती मुझे उदास। 

डाल - डाल पर झूले डाले 
सखियाँ कजरी गाये,
मोर-पपीहा छम छम नाचे 
मुझको याद सताये। 


Monday, June 13, 2022

आपसी शौहार्द और भाईचारा

नूपुर शर्मा ने 
पैगम्बर के बारे में  
कुरान में लिखी 
बात क्या कह दी 
भड़क उठे शोले 
चमचमाने लगी तलवारें 
रास्ते हो गए जाम 
फेंके जाने लगे पत्थर
जलने लगी गाड़ियां 
केंसिल हो गई ट्रेनें 
बंद हो गए हाइवे। 

दंगों की चपेट में आये 
राहगीर और आमजन
एम्बुलेंस में लेटे बीमार 
घायल हुए पुलिस कर्मी 
देश की जली सम्पति। 

उठने लगा शोर 
नूपुर शर्मा को 
पार्टी प्रवक्ता से हटाओ 
उसे पार्टी से निकालो 
उसे गिरफ्तार करो
उसका गला काट दो 
उसकी जीभ काट दो 
उसे फांसी की सजा दो। 

चारों ओर से 
मिलने लगी धमकियाँ 
देखते ही देखते 
खत्म हो गया आपसी 
शौहार्द और भाईचारा। 


Sunday, June 12, 2022

खिड़की पर खड़ी इन्तजार करती मेरी माँ।

शाम चार बजते ही रास्ते में देखती रहती माँ 
स्कूल से आने वाले बच्चों में ढूंढती रहती माँ 
जब तक मैं नहीं दिख जाता  खड़ी रहती माँ  
खिड़की पर खड़ी इन्तजार करती मेरी माँ। 

मेरे कपड़े सीधे कर बिस्तर निचे दबाती माँ 
मेरी किताबों को ठीक से थैले में सजाती माँ 
मेरे टिफिन बॉक्स में अचार- पूड़ी रखती माँ
खिड़की पर खड़ी इन्तजार करती मेरी माँ। 

रोज रात को सोते समय कहानी सुनाती माँ 
मेरे सोने पर प्यार से बालो को सहलाती माँ 
सुबह लौरी गाकर मुझे नींद से  जगाती माँ 
खिड़की पर खड़ी इन्तजार करती मेरी माँ। 

मेरे बीमार पड़ने पर देवता को मनाती माँ 
छींक आने पर रात-रात जागती रहती माँ 
मेरी सिसकी-हिचकी सुन दौड़ी आती माँ 
खिड़की पर खड़ी इन्तजार करती मेरी माँ।

मेरे सुख - दुःख का सदा ध्यान रखती माँ 
हर समय  अपनी बाहें  फैलाये रखती माँ 
मुझे अपने पास देख सदा मुस्कराती  माँ
खिड़की पर खड़ी इन्तजार करती मेरी माँ।  





 


Friday, June 10, 2022

अब प्यार की कस्ती सजा

बचपन सारा रीत गया 
यौवन साथ छोड़ गया
जीवन साथी संग बैठ कर 
अब प्यार की कस्ती सजा। 

ऑफिस कुर्सी छोड़ कर 
घर के सिंहासन पर बैठ 
लॉन में मधुर संगीत सुन 
अब दिल के शौक सजा। 

चुनौतियों का बीता दौर 
उपलब्धियों को याद कर
चाय की चुस्कियों के संग 
अब जीत का सेहरा सजा।

मन के झरोखे खोल कर 
बीते दिनों को याद कर 
नेह की शबनम चुरा कर 
अब अधूरे ख्वाब सजा। 

मधुमय है जीवन बेला 
मस्ती से मन को बहला
साँझ की शीतल हवा संग 
अब चैन की बंसी बजा।  

देश-विदेश भ्रमण कर
अरमानों को पूरा कर
चांदनी में संग बैठ कर 
अब जीवन में रंग सजा। 

हमसफ़र से बातें कर 
हसीन लम्हें याद कर 
प्रीत को फिर से गुदगुदा 
अब विजय उत्सव सजा। 










Monday, May 16, 2022

जल ही जीवन है

तब रेतीला पानी 
मुट्ठी से छितरा जाता था 
अब हमने बोतलों में बंद करना 
सीख लिया है। 

तब नदी समुद्र में जाकर 
अपना अस्तित्व खो देती थी 
अब हमने नहरें निकालना 
सीख लिया है। 

तब नदियों में बाढ़ का पानी 
तबाही मचा देता था 
अब हमने बाँध बनाना 
सीख लिया है। 

तब वर्षात का जल 
प्रदूषित हो कर बह जाता था 
अब हमने जल संरक्षण करना 
सीख लिया है। 

तब हम पानी के 
महत्त्व को नहीं समझते थे 
अब हमने इसके महत्त्व को 
समझ लिया है। 





मेरे श्वासों की सरगम पर

मेरे श्वासों की सरगम पर 
राग बसंती गाती हो, 
जीवन के टूटे तारों पर 
गूंज बने लहराती हो। 

मेरी यादों में बस कर 
सम्बल मेरा बनती हो,  
मेरे सपनों में आकर
अधरों से प्यार बहाती हो। 

सौलह श्रृंगार सजा कर 
नवकुसुम सी खिलती हो,
ख्वाबों में मेरे आकर 
मुझ से प्यार जताती हो। 

अँधियारी सूनी रातों में 
स्मृति दीप जलाती हो,
मेरे मन की पीड़ा पर 
बादल बन छितराती हो। 

सर्द सुबह धुंध में लिपटी 
गर्म अहसास कराती हो, 
जीवन की सूनी राहों में 
खुशियाँ तुम बरसाती हो। 




Sunday, May 8, 2022

सरगोशियाँ करने को हवाएं आती है

सरगोशियाँ करने को हवाएं आती है, 
खुद बैठ कर परिवार तोड़ जाती है। 

जो अपने रिश्तों को निभा सकते नहीं 
वो दूसरों को रिश्ता निभाने देते नहीं। 

किसी का परिवार टूटता है टूटता रहे, 
वो तो अपना स्वार्थ साधने में लगे रहे। 

अपने ही जब तोड़ने लगे तो क्या करें,
अपनों की शिकायत भी किससे करें।  

दिल में रहने वाले ही दिल तोड़ देते हैं,
भरोसे की आस्था को झकझोर देते हैं। 

मैं आँखों के अश्क खुद पोंछ लेता हूँ 
चुप रह कर सिसकियाँ  रोक लेता हूँ। 




Monday, April 25, 2022

हमने शमा को जल-जल पिघलते देखा है

हम छत पर खुले आकाश नीचे सोते थे,
हमने तारों भरी रात का नजारा देखा है।
.
हम छुप कर प्यार भरे खत लिखते थे,
हमने उनमें विरह के दर्द को देखा है।
.
हम बड़ों के सामने कभी बोलते नहीं थे,
हमने घूंघट की टिचकारी को सुना है।
.
हम समद्र के किनारे नगें पांव घूमेते थे,
हमने सागर की लहरों का संगीत सुना है।
.
हम एक दूजे की सांसों में समा जाते थे,
हमने रातरानी में गंध को समाते देखा है।
.
हम मिलने के इन्तजार में बेताब रहते थे,
हमने शमा को जल-जल पिघलते देखा है


Saturday, April 23, 2022

लालच की झाड़ियाँ उग आई

जिसके मन में लालच की झाड़ियाँ उग आई,
वह परिवार के सुख को भला समझेगा क्या ?

जिसकी अक्ल स्वार्थ की तिजोरी में बंद हो, 
वह भाइयों के प्यार को कभी समझेगा क्या ?

बातों के गड़े मुर्दे उखाड़ कर मिलेगा क्या, 
आपस में बैर ही तो बढ़ेगा प्यार रहेगा क्या ? 

बाप के सामने भी जो बेटा बोलने लग गया,
वह भाईयों और परिवार को समझेगा क्या ?

जो जिंदगी में दूसरों के ही दोष देखता रहा,
वह कभी अपने गिरेबान में भी झांकेगा क्या ?

जिसमें अहम् और घमंड का नशा भरा हो, 
वह अपनी गलती को स्वीकार करेगा क्या ?

रिश्ते सारे खोखले हो रहें पैसों के लालच में, 
बचपन में बाँट - बाँट खाते याद करोगे क्या ? 









Monday, April 4, 2022

वृद्धाश्रम में

बेटे के जन्म पर 
माँ-बाप बाँटते हैं मिठाइयाँ 
ख़ुशी की खबर देने के लिये। 

मंदिरों में 
भगवान से करते हैं प्रार्थना 
बेटे की लम्बी उम्र के लिये। 

बीमार पड़ने पर 
रातों जागते रहते हैं 
बेटे को दवा देने के लिये। 

सब तकलीफें 
सहकर खुशियाँ ढूँढते हैं 
बेटे के उज्ज्वल भविष्य के लिये। 

एक-एक पाई जोड़ 
बेटे को विदेश भेजते हैं 
अच्छी पढाई करने के लिये। 

पढ़-लिख बेटा 
लग जाता हैं वहाँ नौकरी 
कर लेता है किसी से शादी 
घर बसाने के लिये। 

फिर माँ - बाप 
तरसते ही रह जाते हैं 
बेटे-बहु का मुँह देखने के लिये। 

बुढ़ापा में ढूँढते है 
कोई अच्छा वृद्धाश्रम
अपना बुढ़ापा काटने के लिये। 

Sunday, April 3, 2022

आत्मीयता

मेरे भाषण के बाद 
मुख्य अध्यापिका ने अपना 
धन्यवाद भाषण दिया 

थोड़ी देर में ही 
सामने लगी टेबलों पर 
नाश्ते की प्लेटें सजा दी गई

गाँव वाले जो नीचे 
दरी पर बैठे हुए थे
उनके सामने भी नाश्ता 
लगा दिया गया  

मैं उठा और 
प्लेट लेकर गाँव वालों के 
बगल में जाकर बैठ गया 

मुझे नीचे बैठा देख 
सभी मेरे पास चले आये और 
मुझ से हाथ मिलाने लगे

प्लेटों से मिठाई उठा 
अपने हाथों से खिलाने लगे 
उनकी आत्मीयता देख 
मैं भाव-विभोर हो गया 

मैं उनसे बहुत देर तक 
बातें करता रहा 
परिवार, खेती, बच्चों की 
जानकारी लेता रहा 
कुछ नई बातें बताता रहा 

सभी प्रेमातुर होकर मेरे माथे 
पीठ पर हाथ फिराने लगे 
कहने लगे आज तक किसी ने 
इस तरह पास बैठ कर 
इतनी बातें नहीं की 

तुम तो अपने ही हो 
गांव आते रहा करो 
अच्छा लगता है 
कोई आकर हमारे से 
इस तरह की बातें करे

हमारे शहरों में आज 
धरती से जुड़े ऐसे 
गाँव - गिराँव के सीधे-सादे 
भोले मन के लोग कहाँ मिलते हैं ?






 

Friday, April 1, 2022

बीच राह में

मैं तुम्हें ढूँढता -ढूँढता 
चाँद तक पहुँच गया,
लेकिन तुम मुझे वहाँ 
नहीं मिली

तुम्हारे पाँवों के निशान 
देखते - देखते मैं 
मंगल ग्रह तक पहुँच गया 
लेकिन तुम वहाँ भी नहीं मिली

मैंने जा कर सितारों से पूछा- 
उन्होंने बताया कि 
तुम बहुत दूर निकल गई हो 

मैंने सितारों से कहा कि 
वे तुम्हें खबर कर दे 
मैं यहाँ इन्तजार कर रहा हूँ 

मैं इतनी दूर चला आया 
अब थोड़ी दूर 
तुम चली आओ। 

बिलकुल वैसे ही 
जैसे हम तुम
पहली बार मिले थे 
दोनों तरफ से आकर 
बीच राह में। 






Thursday, March 31, 2022

तो भी क्या दिया ?

अगर तुमको 
मेरे पास बैठना है
तो अभी आकर बैठो,
मरने के बाद 
अर्थी पास आकर बैठे
तो भी क्या बैठे ?

अगर तुमको 
कोई  उपहार देना है 
तो अभी लाकर दो,  
मरने के बाद 
अर्थी पर फूल चढ़ाये 
तो भी क्या चढ़ाये ?

अगर तुमको 
जीवन में साथ चलना है 
तो अभी साथ चलो, 
मरने के बाद 
अर्थी के साथ चले 
तो भी क्या चले  ?

अगर तुमको 
जीवन में आदर देना है
तो अभी हाथ बढ़ाओ, 
मरने के बाद 
अर्थी को कन्धा दिया 
तो भी क्या दिया  ?



Wednesday, March 30, 2022

सोचा शायद तुम आ रही हो

कल शाम, छत पर सोया मैं गुनगुना रहा था।  
एक तारा टूटा, सोचा शायद तुम आ रही हो।। 

रिमझिम बरसात, मैं खिड़की से देख रहा था। 
बिजली चमकी, सोचा शायद तुम आ रही हो। 

सुबह का समय, मैं विक्टोरिया में घूम रहा था।  
खुशबू का झोंका, सोचा शायद तुम आ रही हो। 

होली का त्योंहार, मैं तुम्हारी यादों में खोया था।  
गुलाबी रंग उड़ा,  सोचा शायद तुम आ रही हो। 

हरसिंगार के निचे,  मैं कविता गुनगुना रहा था। 
फूल महकने लगे, सोचा शायद तुम आ रही हो। 



Sunday, March 27, 2022

हमारी वाणी कैसी हो ?

हमारी वाणी में,
मधुरता,
शालीनता,
निर्मलता और 
गंभीरता होनी चाहिये। 

हमारी वाणी में,
मृदुलता, 
सरसता, 
विमलता और 
पवित्रता होनी चाहिये। 

हमारी वाणी में, 
शीतलता, 
सज्जनता, 
सरलता और  
विनम्रता होनी चाहिये। 

हमरी वाणी में,
सकारात्मकता,
बोधगम्यता 
शिष्टता और 
कोमलता होनी चाहिये।  



Thursday, March 24, 2022

संबन्धों की खुशहाली सदा बनाये चलो

बिछुड़ने के बाद किस से शिकवा होगा, 
केवल कुछ  यादों का सिलसिला  होगा,  
दो दिन की जिंदगी है  हँस बोल जी लो, 
एक दिन तो सबको बिछुड़ जाना होगा। 

सभी संग आत्मीयता भरा जीवन जी लो, 
अहंकार को मन से निकाल दूर कर लो,
गलतियाँ दूसरों की नहीं अपनी को देखो,
स्वजनों  के संग प्यार से रहना सीख लो। 

तुम्हारी पहचान तुम्हारे  व्यवहार से होगी,
अपनों से सम्बन्ध ही जीवन की पूंजी होगी, 
किसी को कभी भी कड़वे बोल मत बोलो,
वरना दिये ग़मों पे एक दिन शर्मिंदगी होगी।

प्रत्येक के साथ प्रेम का भाव लेकर चलो, 
परिवार संग अपना स्वार्थ छोड़ कर चलो, 
आपसी रिश्तों के लिए झुकना पड़े झुको, 
मगर संबन्धों की खुशहाली  बनाये चलो। 

Thursday, March 17, 2022

बीना तुम्हारे कैसी होली ?

मैं अब किसके रंग लगाऊँ,
किसके गाल गुलाल चुराऊँ,
किसके संग करूँ ठिठोली,
बिना तुम्हारे  कैसी  होली?

रिमझिम रंगों की बरसातें,
रंग सब पिचकारी में डालें,
मैं किसके संग खेलूं  होली,
बिना तुम्हारे  कैसी  होली?

जब भोली भाली सूरत ने,
मुझे रँगा था अपने रँग में,
भूला नहीं वो हसीन होली,
बिना तुम्हारे कैसी होली?

एक बार आ जाओ सजनी, 
मिल कर खेलें प्यारी होली,
आलिंगन की चाह  हठीली,
बिना  तुम्हारे  कैसी होली?

Monday, March 7, 2022

बचपन के खेल खेलते हैं

उम्र की  ऐसी  की तैसी 
आओ बचपन खेलते हैं। 
बल्ला-गेंद लेकर आओ 
चौके - छक्के लगाते हैं। 

पहले मिल खो-खो खेलें 
फिर लम्बी रेल बनाते हैं। 
कागज़  की  पतंग  बना 
आसमान  में  उड़ाते है।

तुम छुप जाओ मैं ढ़ुँढ़ुगा 
छुपन - छुपाई खेलते हैं। 
छोटे-छोटे पत्थर लाकर 
गुटियों का खेल खेलते हैं। 

गिल्ली डंडा चोर सिपाही 
मिल कर आज खेलते हैं। 
टायर, गिप्पा,लंगड़ी टांग 
लट्टू,  गुलेल  चलाते हैं। 

मारम-पिट्टी, सांप-सीढी 
उसको भी आजमाते हैं। 
भोली सी शैतानियों संग 
थोड़ी नादानियाँ करते हैं।

गोली और कंचों के संग  
खनकते खेल  खेलते हैं। 
कुछ हारेंगे कुछ जीतेंगे 
बचपन के खेल खेलते हैं। 



Saturday, March 5, 2022

हमें अपने आसपास

हमें अपने आसपास 
सदा रखने चाहिए ऐसे 
पारिवारिक लोग 
जो हमें बचा सके 
भटकाव से,
हमें याद दिला सके 
हमारे कर्तव्य,
हमारी योजनायें,
हमारा लक्ष्य 
और सदा दिखाते रहें 
द्वेष रहित, स्वार्थ रहित  
प्यार भरी राहें। 

लेकिन हमने तो आज
पाल रखी है 
खुद को श्रेष्ठ समझे 
जाने की बीमारी, 
जिसके चलते 
हम नहीं किसी की 
सुनना चाहते और 
नहीं किसी को 
सम्मान देते। 

हमारे इर्द-गिर्द 
घूमते रहते हैं कुछ 
चापलूस और चाटुकार 
जो सदा भरते रहते हैं
हमारी हाँ में हाँ
तुष्टी करते रहते हैं 
हमारे अहम् की। 

बनाते रहते हैं  
बिमारी को असाध्य 
और कालांतर में 
हमें कर देते हैं 
अपनों से ही विमुख,
खत्म हो जाता है 
आपस का प्यार और 
राख हो जाती है 
सम्बन्धों की। 

कितना कुछ 
बंधन था बचपन में 
साथ-साथ जीने का
साथ-साथ रहने का  
सारा तिल-तिल कर 
बिखर जाता है, 
कभी उम्मीदें टूटती 
कभी विश्वास टूटता 
बचता है तो केवल 
सन्नाटा। 

क्या सन्नाटों में 
फिर से गुंजन 
नहीं लाई जा सकती ?
प्रयास तो किया ही 
जा सकता है।