Saturday, March 5, 2022

हमें अपने आसपास

हमें अपने आसपास 
सदा रखने चाहिए ऐसे 
पारिवारिक लोग 
जो हमें बचा सके 
भटकाव से,
हमें याद दिला सके 
हमारे कर्तव्य,
हमारी योजनायें,
हमारा लक्ष्य 
और सदा दिखाते रहें 
द्वेष रहित, स्वार्थ रहित  
प्यार भरी राहें। 

लेकिन हमने तो आज
पाल रखी है 
खुद को श्रेष्ठ समझे 
जाने की बीमारी, 
जिसके चलते 
हम नहीं किसी की 
सुनना चाहते और 
नहीं किसी को 
सम्मान देते। 

हमारे इर्द-गिर्द 
घूमते रहते हैं कुछ 
चापलूस और चाटुकार 
जो सदा भरते रहते हैं
हमारी हाँ में हाँ
तुष्टी करते रहते हैं 
हमारे अहम् की। 

बनाते रहते हैं  
बिमारी को असाध्य 
और कालांतर में 
हमें कर देते हैं 
अपनों से ही विमुख,
खत्म हो जाता है 
आपस का प्यार और 
राख हो जाती है 
सम्बन्धों की। 

कितना कुछ 
बंधन था बचपन में 
साथ-साथ जीने का
साथ-साथ रहने का  
सारा तिल-तिल कर 
बिखर जाता है, 
कभी उम्मीदें टूटती 
कभी विश्वास टूटता 
बचता है तो केवल 
सन्नाटा। 

क्या सन्नाटों में 
फिर से गुंजन 
नहीं लाई जा सकती ?
प्रयास तो किया ही 
जा सकता है। 






 











2 comments:

  1. बहुत सुंदर। सच का आईना दिखाती हुई कविता।

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  2. आपका आभार मीना जी।

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