बिछुड़ने के बाद किस से शिकवा होगा,
केवल कुछ यादों का सिलसिला होगा,
दो दिन की जिंदगी है हँस बोल जी लो,
एक दिन तो सबको बिछुड़ जाना होगा।
सभी संग आत्मीयता भरा जीवन जी लो,
अहंकार को मन से निकाल दूर कर लो,
गलतियाँ दूसरों की नहीं अपनी को देखो,
स्वजनों के संग प्यार से रहना सीख लो।
तुम्हारी पहचान तुम्हारे व्यवहार से होगी,
अपनों से सम्बन्ध ही जीवन की पूंजी होगी,
किसी को कभी भी कड़वे बोल मत बोलो,
वरना दिये ग़मों पे एक दिन शर्मिंदगी होगी।
प्रत्येक के साथ प्रेम का भाव लेकर चलो,
परिवार संग अपना स्वार्थ छोड़ कर चलो,
आपसी रिश्तों के लिए झुकना पड़े झुको,
मगर संबन्धों की खुशहाली बनाये चलो।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२५-०३ -२०२२ ) को
'गरूर में कुछ ज्यादा ही मगरूर हूँ'(चर्चा-अंक-४३८०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जी, धन्यवाद आपका।
Deleteरिश्तों में प्रेम हो तो जीवन विकसित होता है, अति सुंदर रचना!
ReplyDeleteआभार आपका।
Deleteबढ़िया रचना
ReplyDeleteधन्यवाद सरिता जी।
Deleteरिश्तों की बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteवाह
धन्यवाद ज्योति जी।
Deleteसुंदरतम भावों की सुंदर रचना।
ReplyDeleteआभार आपका।
ReplyDelete