तुम मुझ से इतनी दूर गयी,
अब तक लौट न पायी हो।
जीवन सफर में संग नहीं,
पर मन में सदा समाई हो।
सूरज की किरणों के सँग-सँग
तुम रोज सुबह को आती हो।
जीवन के इस पतझड़ को तुम,
सावन बन कर महकाती हो।
सर्द हवा के झोंकों के संग,
तुम मन को ठंडक देती हो।
हो जाता रोम-रोम पुलकित,
हर सांस को तुम छू जाती हो।
कविता के हरेक छन्द के संग,
मैं तुम्ही को लिखता रहता हूँ।
यादों की सरगम के सँग-सँग
हर राह पे चलता रहता हूँ।
आभार आपका। धन्यवाद।
ReplyDeleteकिसी अपने की याद मिटा पाना असंभव है।
ReplyDeleteयादों में टिस रहती है समाई।
खूबसूरत सृजन।
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