Tuesday, December 24, 2019

पोती की विदाई

पोती को विदा करने के बाद
जब मैं उसके कमरे में गया
तो देखा कुछ सूखे फूल
इधर-उधर बिखरे पड़े थे

इतने में उसके भाई की
आवाज आई -
दीदी का पीछे कुछ
रह तो नहीं गया है ?

मैंने मन में सोचा
दीदी लेकर ही क्या गई है
सभी कुछ तो यहीं छोड़ गई है

२५ साल तक लाड -प्यार से
जिस नाम से आवाज देते थे
वह नाम तक तो यहीं छोड़ कर गई है

उसके नाम के आगे
गर्व से जो "राणा" लगाता था
वो भी तो यही रह गया है

वो क्या लेकर गई है
सभी कुछ तो यहीं छोड़ कर
चली गई है।



बलात्कारी को फाँसी

ऋषियों की यह पावन धरा  
आज शर्म से डूब रही,
हर गली और नुक्कड़ पर 
औरत सतायी जा रही। 

पांच साल की बच्ची भी

हवस का शिकार हो रही,
सभ्यता और मर्यादा की
देश में धज्जियां उड़ रही ,

बलात्कार फिर ह्त्या
दोहरे जुल्म हो रहे, 
बर्बरता की सारी हदे
दरिंदें पार कर रहें। 

कब तक हमारी निर्भया 
इस तरह मरती रहेगी, 
कब तक वो शैतानों की 
दरिन्दगी सहती रहेगी। 

हैवानियत को देख कर 
मानवता अब काँप रही, 
बलात्कारी को फाँसी दो 
आम जनता मांग रही।  

( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )









सच्चा आनन्द

किसी घाट पर बैठ कर
आनन्द है, आनन्द है कहने से
आनन्द की प्राप्ति नहीं होती। 

आनन्द का मतलब
उस ख़ुशी से है,
जिसे हम सब मिल कर
आपस में बाँटते हैं
उसे महसूस करते हैं। 

घनश्याम के लड़के का
टीम में चुनाव हुवा, 
शिवपाल के लॉटरी में
मकान उठा, 
मोहल्ले में लड्डू बँट रहे हैं
यह है सच्चा आनन्द। 

रमेश की सरकारी
नौकरी लग गई,
अखिलेश की लड़की ने
आई. ऐ. अस. में टॉप कर लिया,
मोहल्ले में लड्डू बँट रहे हैं
यह है सच्चा आनन्द। 
 
बसेसर की बहु के
आज बेटा हुवा,
लछमन की बेटी ने
कुश्ती प्रतियोगिता में
गोल्ड मैडल जीत लिया, 
मोहल्ले में लड्डू बँट रहे हैं
यह है सच्चा आनन्द। 


मणिकर्णिका घाट

मेरे जीवन के नक़्शे से
ताजमहल निकल गया
ताजमहल ही क्यों
अजंता और ऐलौरा
भी तो कट गया
बचा है केवल
पवित्र गंगा किनारे
मणिकर्णिका घाट
जिसमें एक का तर्पण
हो चुका है
और एक का होना बाकी है।  

Monday, December 23, 2019

सबका प्यारा है खरगोश

सफ़ेद रंग और आँखें लाल
प्यारा लगता है खरगोश,
लम्बे-लम्बे कान है इसके
उछल-कूद करता खरगोश।

नरम-नरम और गुदगुदा
बच्चों का प्यारा खरगोश,
अपनी प्यारी पूंछ उठा कर
पल में छुप जाता खरगोश।

झाड़ियों में लुकता-छिपता
हरी दुब खाता खरगोश,
रेशम जैसे बाल है इसके
सबका प्यारा है खरगोश।


Wednesday, December 11, 2019

चाय जरुरत भर

जीवन की तमाम
चिंताओं से मुक्त हो कर
जीवन संगीनी के संग बैठ 
चाय की चुस्कियों के बीच
बीते पलों को फिर से जीना
पुरानी यादों को फिर से बाँटना
मेरे जीवन का अब सपना बन गया। 

जीवन संगिनी की अब केवल 
यादें ही बची है मेरे पास 
बदल गया है अब
मेरी जिन्दगी का अर्थ
अब अकेले बैठ कर चाय पीने से 
मन में नहीं घुलती कोई मिठास
चाय अब केवल एक
जरुरत भर रह गई है



  ( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )





Monday, December 2, 2019

एक पेड़ का ढहना

कल एक पेड़ ढह गया 
नए ज़माने की हवा 
उसे रास नहीं आई

बूढ़े पेड़ को तो 
एक न एक दिन 
ढहना ही था 
 
मगर खेद यह है 
कि पेड़ की छाँव तले 
पली नयी पौध 
नए ज़माने की हवा पाकर  
ज्यादा ही इठलाने 
खिलखिलाने और 
झूमने लग गई 

तूफ़ान झेलना पड़ा 
अकेले खड़े पेड़ को 
बूढ़े कन्धे नहीं सह सके 
हवा के थपेड़ों को 

रात के अँधेरे में 
पेड़ ने किया था चीत्कार 
नहीं सूना किसी ने 

सुबह देखा 
पेड़ धराशाही हो चुका था
बीच राह अपनी यात्रा को 
विराम दे चुका था।


( भावभीनी  श्रद्धांजलि मेरे सहपाठी कमल तोषनीवाल को, जिसने असमय ही मौत को गले लगा लिया।  )


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )





Saturday, November 23, 2019

विस्थापित होते हिन्दी शब्द

नमस्कार'अब 'हैलो' हुआ 
'बधाई' 'कांग्रेट्स' हो गया, 
'सुप्रभात का 'गुड मॉर्निंग' 
जन्मदिन 'बर्थडे' हो गया।  

गुलाबी रंग 'पिंक' हुआ
नीला 'ब्लू' हो गया,  
सेंव को 'एप्पल' कहते
आम 'मेंगों' हो गया।

परेशान करना 'टेंशन' हुआ  
भोजन 'डिनर' हो गया, 
दोस्त को अब 'फ्रैंड्' कहते 
प्रेमी 'बॉयफ़्रेंड' हो गया।  

दिल टूटना 'ब्रेकअप' हुआ
क्षमा का 'सॉरी' हो गया,
शादी को 'मैरिज' कहते
प्यार का 'लव' हो गया। 


Friday, November 22, 2019

गरीबी को मिटाया जाय


 झारखण्ड के                                                            
आदिवासी इलाके में
भूख से परिवार की मौत। 

बिहार में 
कड़ाके की ठण्ड से 
सात लोगों की मौत। 

चिकित्सा के
अभाव में नवजात की
असामयिक मौत। 

समाचार पत्र में
इन खबरों का शीर्षक
सही नहीं लिखा गया था। 

परिवार की
मौत भूख से नहीं
गरीबी से हुई थी। 

उनके पास 
अनाज खरीदने के लिए
पैसे नहीं थे। 

सात लोगों 
की मौत ठण्ड से नहीं
गरीबी से हुई थी। 

उनके पास 
कपड़े खरीदने के लिए
पैसे नहीं थे। 

नवजात की मौत
बीमारी से नहीं
गरीबी से हुई थी। 

उनके पास 
दवा खरीदने के लिए
पैसे नहीं थे। 

यदि हम चाहते हैं कि
इस तरह की घटनाएं
 नहीं घटे तो हमें 
 गरीबी को मिटाना होगा। 

रुपये किलो
चावल बांटने या
मुफ्त में साइकिल
देने से काम नहीं चलेगा। 

हर हाथ को
काम देना होगा
देश में काम करने का
वातावरण बनाना होगा। 

घर बैठे पैसे दे कर
मुफ्त में अनाज बांट कर
वोट बैंक तो बनाया जा सकता है
मगर गरीबी नहीं मिटाई जा सकती। 

अकर्मण्य बनाने से अच्छा है
उन्हें कर्म करने के लिए
प्रेरित किया जाय
हाथों को काम देकर
गरीबी को मिटाया जाय। 


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। ) 


Tuesday, November 12, 2019

प्रमाण - पत्र का होना

तुम भारत के नागरिक हो
क्या इसका तुम्हारे पास
कोई प्रमाण-पत्र है ?

यदि तुम्हारे पास
तुम्हारा फोटो लगा
प्रमाण-पत्र है तभी तुम
भारत के नागरिक हो
अन्यथा तुम हो कर भी नहीं हो।

तुम्हें अपने आप को
प्रमाणित करना होगा,
अन्यथा तुम्हें आतंकवादी,
नक्शलवादी, बांग्लादेशी, रोहिंग्या
कुछ भी करार दिया जा सकता है।

तुम्हारे ऊपर मुकदमा
चलाया जा सकता है,
तुम्हें जेल में डाला जा सकता है
तुम्हें डिपोर्ट किया जा सकता है।

यह प्रमाण - पत्र तुम
जाति-कार्ड, राशन कार्ड,
वोटर कार्ड,आधारकार्ड,
पैनकार्ड आदि किसी भी रूप में
दिखा कर तुम अपने आप को
प्रमाणित कर सकते हो।

तुम्हारे होने का मतलब है
तुम्हारा प्रमाण-पत्र का होना।










Wednesday, October 16, 2019

प्रभु ! रास रचाने आ जाओ

काली घटा छाई हो
बादल गरज रहे हो
बरखा बरस रही हो
प्रभु ! गोवर्धन उठाने आ जाओ।

चांदनी रात हो
जमुना का घाट हो
किनारे कदम का पेड़ हो
प्रभ! चीर चुराने आ जाओ।

मंजिल दूर हो
पांव थक कर चूर हो
किसी का साथ न हो
प्रभु! बंशी बजाते आ जाओ।

आँखों में नींद हो
ख्वाबों में आप हो
मटकी भरा माखन हो
प्रभु! माखन खाने आ जाओ।

मौसमें बहार हो
कोयल कूक रही हो
मौर नाच रहे हो
प्रभु! रास रचाने आ जाओ।



@@@@@@@@###########2

Thursday, July 25, 2019

मैं कैसे सो जाऊं

कभी भी चली आती है, उसकी यादें
वापिस जाती नहीं, मैं कैसे सो जाऊं।

सितारे रात भर जगते, मेरा साथ देने
वो जागते रहते हैं, मैं कैसे सो जाऊं।

मेरी पलकों में छाई, यादों की बदली
छलकती है यादें,  मैं कैसे सो जाऊं।

बहुत याद आते हैं, साथ बिताऐ लम्हें
आँखें राह देखती है, मैं कैसे सो जाऊं।

सपने में देखा, वह बदल रही है करवटे
उसे नींद नहीं आती, मैं कैसे सो जाऊं।

पचास वर्ष का, संग-सफर था हमारा
तन्हाई में याद आए, मैं कैसे सो जाऊं।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। ) 

मेरा प्रेम-पत्र

मैं चाहता हूँ तुम्हें
एक बार फिर से लिखूँ 
खुशबु और प्यार भरा
एक प्रेम-पत्र

तुम गली के मोड़ पर
फिर से खड़ी हो कर 
करो इन्तजार डाकिये का
लेने मेरा प्रेम-पत्र

बंद कर दरवाजा
फिर पढ़ो चुपके-चुपके
मेरा प्रेम-पत्र

तकिये पर सिर रख
चौंको किसी आहट पर
पढ़ते हए मेरा प्रेम-पत्र

पसीने से तर-बतर
झूमते तन-मन से
बार-बार पढ़ो 
तुम मेरा प्रेम-पत्र

मेरे प्यार का
तुम्हें एक बार फिर से
अहसास दिलाएगा
मेरा यह प्रेम-पत्र।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। ) 

Monday, July 15, 2019

कागज की कश्ती

अब नहीं रहा
बच्चों का बचपन
हमारे जमाने जैसा  

अब डेढ़ बरस में
प्लेग्रुप और ढाई में तो
स्कूल चले जाते हैं बच्चे। 

बँट चुका है
उनका बचपन अब
स्कूल और क्रैच में। 

सुबह जाते हैं स्कूल
शाम ढले मम्मी संग
आते हैं क्रैच से। 

दोस्तों की शैतानियाँ 
मेडम की बातें
अपनी हरकतें अब वो 
नहीं कहते मम्मी से। 

अब उनका बचपन
न तो मुस्कराता और
नहीं इठलाता है

खो गई है उनकी
मासूमियत भरी मस्ती
अब पानी में नहीं तैरती
उनकी कागज की कश्ती।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

Friday, June 28, 2019

तुम हो मेरे जीवन साथी

तुम हो मेरे जीवन साथी 
साथ - साथ चलते रहना,
अगर कहीं मैं थक जाऊं 
हाथ पकड़ बढ़ते रहना। 

मैं हूँ नादां समझ नहीं है 
तुम  थोड़ा  समझा देना, 
अगर कहीं मैं भूल करूँ 
तुम अनदेखी कर देना। 

जैसे चन्दन में सुगंध बसे 
मेरे जीवन में तुम बसना, 
कभी न छूटे साथ हमारा 
स्वप्न सलोने बुनते रहना। 

एक ही मंजिल है दोनों की 
मुश्किल में हिम्मत रखना,
प्यार भरा रिश्ता है अपना
जीवन भर साथ निभा देना। 


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। ) 






Monday, June 24, 2019

थोड़ी मृत्यु मुझे भी आई है,

सूर्य का प्रकाश
कमरे से लौट रहा है
शाम का धुंधलका
अपने पांव पसार रहा है

मैं अकेला कमरे में
लौट आया हूँ
तुम्हारे संग बिताए
लम्हों को ढूंढ रहा हूँ

तुम्हें याद करते ही
आँखों से अश्रु छलक आते हैं
तुम्हारी एक झलक पाने को
मेरे नयन तरस जाते हैं

तुम्हारी यादों की नदी
मेरे अंदर बहुत गहरी बहती है
मधुर स्मृतियों की लहरें
मेरे विरह के घावों को
सहलाती रहती है

मैं तुम्हारी यादों के छोरों को
अपने संग जोड़ता रहता हूँ
रात के सन्नाटे में
टुकड़े - टुकड़े सोता हूँ

मेरी जिंदगी की सारी खुशियां
तुम्हारे संग चली गई
तुम्हारी मृत्यु के साथ
थोड़ी मृत्यु मुझे भी आई है।



( यह कविता "कुछ अनकही। ....... "नामक पुस्तक में प्रकाशित हो गई है।  )

Saturday, June 22, 2019

ढलते मौसम के साथ

काश!
तुम मिलो फिर से
किसी राह पर
किसी मोड़ के बाद

हो सके तो चलो
फिर से एक बार
मेरे साथ जिंदगी के
बचे सफर में

मौसम को देख
कुछ आशाएं
कुछ इच्छाएं
उठती है मेरे दिल में

जैसे ठूँठ में
फूटती है कोंपले
बदलते मौसम के साथ।

 

( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। ) 

Tuesday, May 14, 2019

तब और अब

तब
घर जाते ही माँ कहती
खाना खा लो

अब
घर में कहना पड़ता है
खाना दे दो

तब
पंगत में बैठ कर
मनुहार से खाना खाते

अब
हाथ में प्लेट ले कर
रोटी दो,रोटी दो चिल्लाते

तब
अधिकार से कहते
कल मैंने चाय पिलाई
आज तुम पिलाओ

अब
होटलों में झगड़ते
पैसे मैं दूंगा, पैसे मैं दूंगा

तब
और अब में
कितना कुछ
बदल गया

अब
रिश्तों को जीना
रिश्तों को निभाने में
बदल गया।

जगह बदल गई

                                                                                शादी में 
अग्नि के सात फेरों ने
हम दोनों की  दूरियाँ
सदा-सदा के लिए
मिटा दी 

चिता की 
अग्नि के तीन फेरों ने
हम दोनों की दूरियाँ
सदा-सदा के लिए
बढ़ा दी

दोनों जगह
अग्नि में घी डाला गया 
फूल सजाये गए 
रिश्तेदार भी आये 

 केवल जगह बदल गई 
एक शादी का मंडप था
दूसरा शमशान का घाट था

एक में डोली सजी 
दूसरे में अर्थी सजी। 



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

Saturday, May 4, 2019

सफर अच्छा रहा

जीवन के
राहे-सफर में
एक अनोखे साथी ने
साथ दिया

मन मोह कर
दिल जीत लिया
दोस्ती को परवान
चढ़ा दिया

पचास वर्ष तक
साथ निभा
एक दिन अचानक
विदा हो गया

सफर अच्छा रहा
अगले जन्म में
फिर मिलेंगे
कह कर चला गया।


वैधव्य का जीवन

एक दिन
बातों ही बातों में
तुमने कहा -
अब सदा सुहागन का
आशीर्वाद रहने दो 
मैंने पूछा क्यों-
तो तुमने मुझे
हँसकर कहा-
मुझे पता है
तुम मेरे बिना
एक पल भी
नहीं रह पाओगे
इसलिए मुझे
वैधव्य का जीवन जीना पड़े
तो कोई बात नहीं
लेकिन मैं तुम्हें दुःखी
नहीं देखना चाहती।




लौट आने का इन्तजार

दिन जाता है
रात आती है 

रात जाती है 
दिन आता है 

इन्तजार 
कहीं नहीं जाता 

बना रहता है 
हर समय इन्तजार 

तुम्हारे लौट आने का 
इन्तजार। 


अकेलापन

अकेलापन
क्या हमेशा
जीवन को जी पाया है
सुख और चैन से

अकेलेपन को चाहिए
एक जीवन साथी
जो साथ दे उसका
जीवन पथ पर

कदम-कदम
साथ चलता
सुख दुःख में
साथ निभाता

आँसू पोंछता
उमंग जगाता
दो बातें कहता
दो बातें सुनता

अकेलेपन को
साथी चाहिए।


Monday, April 29, 2019

सावन के मेघा आये

पुरवाई की पवन चली, अब वारिद आएंगे,   
        बिजली के संग गरजेंगे, अम्बर में छायेंगे,  
                 प्यास बुझेगी धरती की, अमृत बरसाएंगे, 
                            सावन के मेघा आए, बरसात लाएंगे। 

बागों में सावन के झूले, फिर से डालेंगे, 
          फूल खिलेंगे बागों में, पपीहारा गायेंगे, 
                  प्यास बुझेगी चातक की, मयूर नाचेंगे,  
                          सावन के मेघा आए, बरसात लाएंगे। 

इन्द्रधनुष के सातों रंग, अम्बर में छाएंगे, 
        चमचमाते जुगनू, रातों में  दीप जलाएंगे, 
                हल चलेंगे खेतों में, नव अंकुर निकलेंगे,
                           सावन के मेघा आए, बरसात लाएंगे। 

बच्चे नाचेंगे पानी में, किलकारी मारेंगे,
        टर्र - टर्राते मेंढक, पोखर में उछलेंगे, 
                  ताल-तलैया, बावड़ी, सब भर जाएंगे, 
                         सावन के मेघा आए, बरसात लाएंगे। 


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )


Saturday, April 27, 2019

यह अहसास कराउंगा

सब कुछ सुनना
और कुछ नहीं बोलना
सब कुछ देखना
और कुछ नहीं देखना
यह है मृत्यु का पर्याय
मैं ऐसा जीवन नहीं जीऊंगा
मैं अभी ज़िंदा हूँ
यह अहसास कराउंगा

किसी नापसंद बात पर
मेरा चौंक जाना
या कुछ अनसुनी बात पर
मेरा नाराज होना
यह है जीवन का पर्याय
मेरे अंदर अभी जीवन है
यह अहसास कराउंगा।

NO

इतिहास बनना

मेरी साधना की अवधि
अब पूरी हो रही है

मैं पल-पल
बढ़ता जा रहा हूँ
इतिहास बनने की ओर

मैं बाँचा तो जाऊंगा
इतिहास बनने के बाद भी
लेकिन जी नहीं पाऊंगा

मैं अपना इतिहास बनना
अब रोक नहीं पाऊंगा

मेरी साधना की अवधि
अब पूरी हो रही है।

NO 

Saturday, April 6, 2019

ठगिनी बयार

बसंत आया मन हर्षाया
प्रकृति करे सोलह सिंगार,
धानी चुनरिया ओढ़े धरती
मद्धम - मद्धम बहे बहार। 

बागों में अमुआ बौराया
झूम उठी सरसों कचनार,
महुआ का भी तन गदराया
लाया बसंत अनन्त बहार। 

 पायल थिरके चुनर लहरे 
मचली फागुन की फगुआर,
कुहू -कुहू बोले कोयलियाँ 
बागों में छाई बसंत बहार। 

तन गदराया मन अकुलाया 
प्रकृति करे प्रणय मनुहार,
मधुकर चूमे कलियों को
ठगिनी बहने लगी बयार।


 ( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

Tuesday, March 26, 2019

जसोदा बैन ( राजस्थानी कविता )

घणी फूठरी ही जसोदा बैन
अड़ोस- पड़ोस हाळा केंवता
छोरी ने घर स्यूं  बारै 
मत काढ्या करो
नजर लाग ज्यावेळी 

दो बरस री कौनी हुई 
बडोड़ी माता निकली 
ळैगी माता मावड़ी 

जे रेंवती 
तो दोन्यूं भाई-बैन 
सागै खेलता
अर करता धूमस
कदैई रूंठ ज्यांवता 
कदैई मनांवता  

बडी हुंवती 
जणा करता ब्याव 
सासरे जांवती जणा 
जांवतो पुगावण ने 

पण हुणी ने 
कुण टाळ सकै है 
आज आवै है याद 
ओळूं में बैव आंसूड़ा 

जसोदा बैन आ सकै तो
एक बार पाछी आज्या 
खेळा सागै भाई-बैन 
करा थोड़ी रमझोल।  


Friday, March 8, 2019

धरती का स्वर्ग कश्मीर

धरती का  स्वर्ग कश्मीर, माने सारा  जहाँ 
अमरनाथ ओ वैष्णो देवी, दर्शन होते यहाँ। 

सोनमर्ग,गुलमर्ग देखने, सैलानी आते यहाँ
मन प्रफुलित हो जाता,देख के नज़ारे यहाँ।

ठंडी-ठंडी हवा बहे, केशर के हैं खेत यहाँ
शालीमार, निशात जैसे, फूलों के बाग़ यहाँ।

अखरोट, सेव, चैरी, ताजे फल मिलते यहाँ
झेलम,चिनाब,इंडस, नदियाँ सदा बहे यहाँ।

पाईन, देवदार, चिनार, पेड़ों की शोभा यहाँ
खूबसूरत पहाड़ियों में, हसीन वादियाँ यहाँ।

केशर, जाफरान,ट्यूलिप, सभी होते हैं यहाँ
पश्मीना, रेशम यहाँ का, पसंद करती जहाँ। 

मन भावन सुन्दर शिकारे, झीलों में तैरते यहाँ
झेलम के हाउस बोटों में, फ़रिश्ते बसते यहाँ।


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )





Tuesday, February 26, 2019

फ़िर से बचपन लौटा लाए

छोटी-छोटी बातें ही जब
मन में संशय जगा जाए
आपसी विश्वास टूटे
रिश्ते-नाते मिट जाए।

धन का झूठा लालच जब
मन में स्वार्थ जगा जाए
आत्मीयता के बन्धन सारे
पल भर में बिखर जाए।

धन तो शायद मील जाए
जीवन सुकून चला जाए
कौन आए समझाने फिर
कौन मन का भ्र्म मिटाए।

खुशियाँ निकले जीवन से
भाईचारा बिखर जाए
अकेलेपन का दर्द सताए
तन्हाई जीवन में छाए।

बातों की चबाती चुप्पी
मन में ढेरों संशय जगाए
फिर शब्द सारे मौन हो
हर भावना भी सो जाए

तुम भी वही हम भी वही
आपस में क्यों चुप्पी छाए
आओ मिल कर साथ रहें
फ़िर से बचपन लौटा लाए।




( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )





Monday, February 25, 2019

तुम्हारी आहटें आज भी जिन्दा है

कहाँ है वो काली जुल्फें
जिन्हें देख भँवरे भी गुनगुनाते हैं

कहाँ है वो माथे की बिंदियाँ
जिसे देख तारे भी झिलमिलाते हैं

कहाँ है वो शरबती आँखें
जिन्हें देख खंजन भी शर्माते हैं 

कहाँ है वो नरम-नाजुक होंठ
जिन्हें देख गुलाब भी शर्माता है

कहाँ हैं वो रेशमी हथेलियाँ
जिन्हें छू मेंहन्दी भी शुर्ख हो जाती है

कहाँ है वो हसीन पांव
जहाँ बैठ पायल भी छम-छमाती है

मेरे मन की चादर पर 
तुम्हारी आहटें आज भी जिन्दा है। 



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )



Monday, February 18, 2019

जन्नत में हूर के लिए मर गया

पहला ज्यादा खाने से मर गया
दूसरा बेचारा भूख से मर गया
तीसरा जहरीली शराब पीकर मर गया
चौथा पत्थर तोड़ते-तोड़ते मर गया
पांचवा प्यार में धोखा खाकर मर गया
छठा चल्लू भर पानी में डूब कर मर गया
सातवां मंहगाई की मार से मर गया
आठवां मरने की फुर्सत नहीं थी, इसलिए मर गया
नवां जीने की चाह नहीं रही, इसलिए मर गया
दसवां जन्नत में हूर मिलेगी, इसलिए मर गया।

NO 

Tuesday, February 12, 2019

कहो ना ! बिन तुम .....

कितने बरस बीत गए
कितने सावन निकल गए
रीत रहा है तन-मन
याद आ रहे हैं वो दिन
जब साथ थी तुम।

गांव का घर
माटी पुती दीवारें
गोबर लिपे आँगन
चूल्हे से उठता धुँवा
रोटी की महक और
घूँघट में झांकती तुम।

जाड़ों की रातें
रजाई में जग कर
धीरे-धीरे करते बातें
दूर जा कर लिखते खत
आँखें भिगोती तुम।

खेतों के बीच  छुपते
खेला करते आँख-मिचौली
चुपके से मुझे बुलाने
टिचकारी मारती तुम।

हिमालय की वादियाँ
गीता भवन का घाट
गंगा की ठंडी लहरें
शाम ढले बैठते नौका में
पानी उछालती तुम।

यादों में खोया
किस घर लौटूं !
कहो ना ! बिन तुम  ..... ।


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

Monday, February 11, 2019

रोबोट

मनुष्य ने किया है
एक नया आविष्कार
एक नया निर्माण
जिसका नाम है रोबोट
यह मनुष्य से बुध्दि या स्फूर्ति में
कहीं भी कम नहीं होगा
एक बटन दबा कर
मनुष्य अपना सारा काम
इससे ही करायेगा

आने वाले दिनों में
स्कूल - कॉलेज जाने की
जरुरत नहीं पड़ेगी
बच्चे घर बैठ पढाई करेंगे
न कक्षायें लगेगी न अध्यापक होगें
परीक्षाएं भी बच्चे घर बैठे
लेपटॉप पर ही दिया करेंगे

मनुष्य की अभिलाषा
कभी पूर्ण नहीं होगी
वो नित नए आविष्कार करता रहेगा
वह आलसी बन सुख ढूंढता रहेगा।


NO



संयमित जीवन

१६ फरवरी, २०२१ 
मैं चौहत्तर वर्ष का हो गया 
मैं अभी स्वस्थ और निरोग हूँ। 

सुबह नियमित एक घंटा
घूमने जाता हूँ
आसन और प्राणायाम भी
नित्य करता हूँ। 

सुबह नास्ते में 
तीन-चार फल लेता हूँ
दोपहर के खाने में 
दो चपाती, दो सब्जी
एक कटोरी दही लेता हूँ। 

शाम को आधा घंटा 
घूम कर आता हूँ 
खाने में उबली हुई  
सब्जी लेता हूँ  
रात में खजूर के साथ
शहद और च्यवनप्राश लेता हूँ।

सुबह साढ़े चार बजे उठना 
रात में दस बजे सोना
मेरी दिनचर्या का भाग है। 

मैं शतायु होना नहीं चाहता 
मागर स्वस्थ और निरोग 
रह कर जीना चाहता हूँ।  


( यह कविता स्मृति मेघ में प्रकाशित हो गई है। )









Friday, February 8, 2019

हाथ की सफाई है

अस्पतालों का करोड़ों में,  बजट बनता है
अस्पताल जाओ तो, मिलती नहीं दवाई है।

स्कूल -कॉलेज चलाना, व्यापर बन गया है
  लाखों डोनेशन में लेते, महंगी हुई पढाई है।

देश  का अन्नदाता, आज भी  भूखा रहता है
कौन समझेगा दर्द, जिनके फटे न बिवाई है।

अब तो चुनावों में, बाहुबल-पैसा चलता है
   पैसा खरचो  चुनाव जीतो, यही सच्चाई है। 

कुर्सी मिलते ही, करोड़ों में बटोरने लगते हैं 
क्या करेगा कानून, चोर-चोर मौसेरे भाई हैं। 

भ्रस्टनेता देश को लूट, डकार तक नहीं लेते
  अच्छा मदारी जो कहता, हाथ की सफाई है।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

Thursday, February 7, 2019

फिर क्यों अपनापन बांटा ?

बचपन कितना सुन्दर था, ढेरों प्यार जताते थे 
बड़े हुए सब भूल गए, आपस में मन को बांटा।

अहंम का ओजार बना कर,  भाई ने भाई को बांटा
 नहीं किसी ने दर्द को बांटा, केवल सन्नाटे को बांटा।

हाथों से खाना सिखलाया,  बाँहों में झूला  झुलवाया
उसी बाप की नजरों के संग, घर के चूल्हे को बांटा।

आँखें फेरी, लहजा बदला, घर की इज्जत को बांटा 
चौखट भी उदास हो गई, घर के आँगन को बांटा।

प्यार - मुहब्बत भाई जैसा, और कहाँ तुम पावोगे
जन्नत है भाई का रिश्ता, जिसको भी तुमने बांटा।

                                                   कहना सुनना गृहस्थी में, चलता ही तो रहता है                                                       छोटी-छोटी बातों पर, तुमने घर को क्यों बांटा। 

धन-दौलत, जमीं-जायदाद, सभी छोड़ कर जाओगे
साथ नहीं जाएगी कोड़ी, फिर क्यों अपनापन बांटा।




( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

Wednesday, February 6, 2019

भरोसा नहीं करके

हजारों नियामतों के संग
प्रभु का दिया
सब कुछ है मेरे पास

पैनी दृष्टि सम्पन्न आँखें
ताकतवर हाथ
क्षमतावान पांव
तेज दिमाग
सभी गुणों से भरी
हाथ की लकीरें

सब कुछ करने की
सामर्थ्य रखते हुए भी
मैं अपने आप को
कमजोर कर लेता हूँ
केवल अपने आप पर
भरोसा नहीं करके।


Monday, February 4, 2019

एक बार लौट आओ

क्या तुम्हें याद है
हम जाते थे प्रति वर्ष
हिमालय की वादियों में घूमने ?

जहाँ होते थे
कास के फूलों से उड़ते बादल
सैलानी हवा से झूमते जंगल

दूध धुले हिमशिखर
नदी की बहती तेज धाराएं
ढलानों पर तराशी खेतियाँ

कितना कुछ जीया था
हम दोनों ने साथ-साथ
घूमते जंगल और पहाड़ों में

हिमालय की वादियाँ तो
आज भी वैसी ही है,
लेकिन आज तुम नहीं हो

मेरा मन तो आज भी
उन फिजाओं में तुम्हारे संग
घूमना चाहता है

उन बहारों में
एक बार फिर से तुम्हें
बाँहों में भरना चाहता है

तुम आओ ना
कोई बहाना बना कर
एक बार लौट आओ।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

Friday, January 25, 2019

बंद कमरे में रोया था

स्वर्गलोक तुम चली गई, मैं तो यहाँ अकेला था
मेरे आँसूं किसने देखे,  मैं गम के मारे रोया था।

बिना कहे तुम चली गई, मैं तो दौड़ा आया था
 अब मैं कहाँ ढूँढने जाऊं, राहों से अनजाना था।

जीवन की राहों में मैंने, तुमको मीत  बनाया था
बीच राह तुम छोड़ गई, मंजिल अभी तो दूर था। 

हाय मृत्यु को दया न आई, कैसे झपटा मारा था
लेकर तुम को चली गई, मेरा जीवन बिछड़ा था।

सुख - दुःख में हम साथी थे, प्यार भरा जीवन था 
पल भर के एक झोंके ने,मेरा सब कुछ छीना था।

बीत गई थी आधी रात, सारा जग जब सोया था  
याद तुम्हारी कर-कर मैं,  बंद कमरे में रोया था।





( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

Monday, January 21, 2019

बरखा आई, बरखा आई

दादुर का टर-टर
कोयल की कू-कू
मोर का नाच
बरखा आई, बरखा आई।

दामिनि की दमक
धरती की महक
बादल की गरज
बरखा आई, बरखा आई।

निर्झर का झर-झर
पत्तों का मर्मर
बूंदों का रिम-झिम
बरखा आई, बरखा आई।

सरिता का कल-कल
अलि का गुन-गुन
पक्षी का कलरव
बरखा आई, बरखा आई।


NO 

Saturday, January 19, 2019

तन्हाई संग रात बिताए

नींद उचट जाती रातों में
        सुख की नींद नहीं सोया
               फिर मिलने की चाह लिए
                       मैं रातों सपनों में खोया।

                        दिल में बैठी प्रीत तुम्हारी
                               अब  भी प्यार वही है तुमसे
                                        उसमें कमी न आई कोई
                                               मेरा प्रेम चिरंतन तुमसे।

                                                रूप तुम्हारा इतना सोणा
                                                      अब तक आँखें नहीं भरी
                                                               बचपन से था संग हमारा
                                                                        बीच  राह  फूटी   गगरी।

                                                                          याद तुम्हारी मुझे सताए 
                                                                                 बिना तुम्हारे रहा न जाए 
                                                                                        शाम ढले तेरी यादों में 
                                                                                                तन्हाई संग रात बिताए। 



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

Friday, January 18, 2019

अपनी प्रेम कहानी

इश्क तड़फ मेरा रोया,  बहता आँखों से पानी
बिना तुम्हारे कैसे जीवूंगा, मेरे सपनों की रानी।

यादों की क्या बतलाऊँ, हर पल आए हिचकी
मेरे प्यार को नजर लगी, कैसे बताऊँ किसकी।

दूध मिश्री की तरह घुली थी,अपनी प्रेम कहानी
बीच राह तुम चली गई, जैसे बादल बरसे पानी।

दिल काबू में नहीं रहता, यादें तेरी सदा सताती
मेरे सपनों में आकर,  तेरी तस्वीर सदा बनाती।

छोड़ गई झाँझर बेला में, क्या कहूँ अपनी बीती
जीवन में सब सुख हो कर भी, मेरी गागर रीती।

संग तुम्हारे पीया सोमरस, आज हाथ मेरे पानी
मेरे जीवन का सम्बल होगी, अपनी प्रेम कहानी।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। ) 

Tuesday, January 15, 2019

घणा दिना रे बाद (राजस्थानी कविता )


  • घणा दिना रे बाद
  • अबकाळै म्हैं उडाइ
  • खेत मांय गोफ्या स्यूं चिड़कळ्यां

  • घणा दिना रे बाद
  • अबकाळै म्हैं सेक्या
  • खेत मांय बाजारी रा सिट्टा

  • घणा दिना रे बाद
  • अबकाळै म्हैं फोड्या     
  • खेत मांय खुणी स्यूं मतीरा

  • घणा दिना रे बाद
  • अबकाळै म्हैं तोड़्या
  • खेत मांय झाड़का स्यूं बोरिया

  • घणा दिना रे बाद
  • अबकाळै म्हैं खाया
  • खेत मांय काकड़ी र काचरा

  • घणा दिना रे बाद
  • अबकाळै म्हैं बजायो
  • खेत मांय धोरा ऊपर अळगोजो

  • घणा दिना रे बाद
  • अबकाळै म्हैं काढ्यो 
  • खेत मांय बाजारी रो खळो। 

Thursday, January 10, 2019

मेरा नाम बदल देना

वो हर बात पर
मुझे यही कहता-
मेरी बात झूठ निकले तो 
मेरा नाम बदल देना 

मैंने भी आज कह दिया-
तुम्हारी बात सच निकली तो 
मैं अपना नाम बदल कर 
तुम्हारा नाम रख लूंगा

उसके बाद उसने
मुझे कभी नहीं कहा कि 
मेरा नाम बदल देना। 


Tuesday, January 8, 2019

कृष्णा को बारंबार बधाई

आज तुम्हारे जन्म-दिवस की
शुभ घड़ी फिर आई
कृष्णा को बारंबार बधाई

जीवन के इस नये बरस में
नित आनंद मनाओ,
सदा सुखी रहो तन-मन से
अपना यश फैलाओ

तुम्हें सहज ही मिल जाएं
सब चीजें मन-भाई
कृष्णा को बारंबार बधाई।

NO 

Monday, January 7, 2019

वह खुशनुमा सफर

वह चली गई चाँद-सितारों के देश में 
अब उसके पास सन्देश नहीं पहुंचेगा।


                                    उसके जाने के बाद नहीं आई खबर 
                                    सफर कैसा रहा अब कौन बताएगा। 

वह बैठी रहती मैं उसे निहारता रहता             
अब मेरा चाँद धरती पर नहीं उतरेगा।  

                                     वह सुनती थी मेरे दुःख -सुख की बातें
                                     अब कौन पास बैठ मेरे मन की सुनेगा। 
       

उसका हाथ पकड़ मैं पूरी दुनिया घुमा
अब इस जीवन में कौन मेरा साथ देगा।            

                                     हँसी-ख़ुशी जीवन जीया मैंने उसके संग
                                     वह खुशनुमा सफर तो सदा याद रहेगा।

                                       

( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। ) 


     

Saturday, January 5, 2019

ख्वाब अधूरा रह गया

तोड़ गई वो वादा अपना, सात फेरों के संग किया
चली गई वो स्वर्गलोक में, बिच राह में छोड़ दिया।

खुशियाँ रूठ गई जीवन की,जीवन मेरा बिखर गया
  किश्ती डूबी मेरे जीवन की, बीच भंवर में फंस गया।

रंग उड़ा मेरे जीवन का, आँखों से सपना बह गया
खुशियाँ डूबी जीवन की,  बासंती मौसम रीत गया।

किस से दिल की बात कहूँ, मन का मीत चला गया
अंतहीन है विरह वेदना,  प्यार में  जीवन छला गया।

जब जब मैंने याद किया, नयनों में नीर उतर आया
ठण्डी पड़ गई मेरी साँसें, जीवन चापल्य रीत गया।

\सदियों जैसा दिन लगता है, मेरा जीवन ठहर गया
  रात गुजरती आँखों में अब, ख्वाब अधूरा रह गया। 




( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )