Sunday, August 18, 2013

भलाई का काम


आओ बंधु !
घर से बाहर निकलो
कब तक कमरे में बैठे टी. वी.
देखते रहोगे ?

ईश्वर ने हमें
मानव तन दिया है
क्या इस से कोई भलाई का
काम नहीं करोगे ?

देखो कितना सुहाना मौसम है
ठंडी-ठंडी बयार चल रही है
आओ निकलो बाहर
आज कोई अच्छा काम कर आएं

किसी रोते हुए बच्चे को हंसाएं
किसी भूखे को दो रोटी खिलाएं
और नहीं तो किसी बीमार को
थोड़ी दवा ही पीला आएं

देखो ! दुःखो का अंत तो
एक दिन सभी का होना है
हर अँधेरी रात के बाद
सूर्य को निकलना है

हमें तो इश्वर ने एक मौका दिया है
क्यों नहीं हम उसका लाभ उठाये
हमें तो करना भी  उतना ही है
जितना सामर्थ्य से होता है

आओ निकलो बाहर
चलो मेरे साथ
करते है आज मिल कर
एक भलाई का काम।



 [ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]







Wednesday, August 14, 2013

गर्व है तुम्हारे ऊपर


अनजाना देश
अनजाने लोग
अनजानी भाषा
गजब की हिम्मत
तुमने दिखाई

हम सब को गर्व है
तुम्हारे ऊपर कि तुमने
इतनी हिम्मत दिखाई

नर्सो की बात को
समझना और उनको
वापिस उत्तर देना तुम्हारे
लिए रोजमर्रे की बात थी

नर्सो के साथ
उनके घर - परिवार की
सुख -दुःख की बात करना
तुम्हारे लिए सहज बात थी

नर्स से तुम रोज
उनके गीत सुनती
अपने गीत उन्हें सुनाती
अफ्रीकी नर्स तो रोज डांस करती

तुम डाक्टर को
अपने बारे में बताती
उनसे सब कुछ पूछती
तुम निःसंकोच बात करती

इतनी बड़ी अस्पताल में
स्वयं जांच करवाने जाती
अकेली रुम में रहती

हमें गर्व है तुम्हारे ऊपर
अनजाने देश में भी तुम
बेधड़क रहती।

NO




















Wednesday, August 7, 2013

गर्मी रो दिन (राजस्थानी कविता )

जेठ-असाढ़ रै महीना में
घड़ी-दो घड़ी दिन कौनी चढ़ै
जताने तो तपबानै
लाग जावै सूरज


दस बज्यां ही घर सूं बारै
निकळबो होज्या मुसकिल
आभा सूं बरसावण लागै
खीरा सूरज


दोफारी मांय चालै लूवां
गली में बैठा कुता हुळक ज्यावै
अर सड़कां पर पड्यो डामर
पिघल ज्यावै।

बळतो बायरो चैपै
ताता चींपिया डील माथै
गाभा करण लाग ज्यावै चप-चप
पसेवो बैवै जाणै  न्हार निकल्यो हुवै


दिन आंथै कौनी
बिउं पैली आ ज्यावै
बाळणजोगी आँधी अर
करद्ये टापरा रो सत्यानाश


रात बापड़ी ठंडी हुवै
जणा जा"र थोड़ी शांती मिलै
पण दिन उगता ही सूरज फेरूं
तपबाने लागज्यावै लगाद्ये गळपांश।


[यह कविता "एक नया सफर" नामक पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]



Monday, August 5, 2013

चौपड़ (राजस्थानी कविता )

आ भायळा  चोपड़ खेलां
टाबर पण का खेल खेलां
                धरम चबूतर चोपड़ खेलां
                 सगळा  साथी सागै खेलां

पैळी जाजम ल्याय बिछावां
पछ चौपड़ ल्याय जमावां
               च्यार जणा नै भिड़ी बाँटा
               काली-पीळी गोट्या छाँटा

हरी हरावे, लाल जितावै
काली पीली पासो ल्यावै
                कोड्या फैंका पासो ल्यावा
                 दाँव-दाँव पर होड़ लगावां

मन चायो पासो  ल्यावां
पौ बारा पच्चीस लगावां
                   एक दूजा के ळारै भागा
                   पीछ पड़ कर गौटी मारा

जमा गोटियाँ तोड़ करावां
काढ बावळी खेल बढावां
                 प्यारो खेल खेलता जावां
                 हार-जीत पर सौर मचावां।



[यह कविता "एक नया सफर" नामक पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]