Wednesday, November 23, 2022

हल्की गुलाबी ठण्ड

हल्की गुलाबी ठण्ड 
दस्तक देने लगी है 
स्वेटर, मफलर, कोट 
बाहर निकलने लगे हैं। 

ठंडी-ठंडी सुबह संग 
कंपकंपी रातें आई हैं 
हवा भी रंग दिखाने 
साजिस रचने लगी है। 

पेड़ों के पुराने पत्ते 
झर-झर गिरने लगे हैं 
रंग-बिरंगे फूल अब 
घरों में खिलने लगे हैं। 

आलू, मटर के परांठे 
थाली में सजने लगे हैं 
गाजर का हलवा भी 
खुशबू बिखेरने लगा है। 

गजक, मूंगफली, रेवड़ी 
घरों में आने लगी हैं  
चाय की प्यालियाँ भी 
होठों को छूने लगी हैं। 

ताजा गाजर, मूली भी 
बाजार में आने लगी है 
दुपहरिया में खाने का 
अब मजा देने लगी है। 

शाम होते ही घरों में 
सिगड़ी जलने लगी है 
धुंध  में  लिपटी  रातें
रजाई में घुसने लगी हैं । 
 




घरों के किंवाड़

परिंदों की 
पहली उड़ान संग 
चले जाते हैं खेतों में 

पेड़ों को देख 
भूल जाते हैं थकान 
लग जाते हैं काम में 

भीगे खेत देख 
भूल जाते हैं उदासी 
फूटते हैं स्वर अलगोजे में 

आसमान में 
चाँद देख खो जाते 
भविष्य के सपनों में 

वापसी के बाद भी
गांव पक रहा है 
मेरे सपनों में 

याद आते हैं 
रोहिड़ा खेत 
समलाई नाड़ी 
गांव का गुवाड़

लौट कर 
आने वालो के लिए 
गांव सदा खुले रखता है 
अपने किंवाड़। 






मैं रहा अकेला राहों में

सुख गया जीवन उपवन, रहा कभी जो हरा-भरा
सारे मौसम लगते फीके, मैं रहा अकेला राहों में।

तुम थी मेरी जीवन साथी, तुम थी जीवन आधार
मूरत बैठी मन मंदिर में, मैं रहा अकेला राहों में।

मैंने आँखों में डाला, जीवन सपनों का काजल
कारवां तो गुजर गया, मैं रहा अकेला राहों में।

सातों कसमें खाकर, तुम साथ निभाने को आई
बीच राह में वादा तोड़ा, मैं रहा अकेला राहों में।

दुःख मेरा क्या बतलाऊँ, दिल रोता है रातों में
यादों की बैसाखी संग, मैं रहा अकेला राहों में।

गीत अधूरे छूटे मेरे, अब क्या ग़मे बयान करूँ
सरगम टुटा जीवन का, मैं रहा अकेला राहों में।

Saturday, November 19, 2022

कैसे उसका हिसाब लिखूँ ?

नारी ने घर का काम किया 
वहाँ क्या खोया-क्या पाया  
क्या सुख-दुःख भोगा लिखूँ  
कैसे उसका हिसाब लिखूँ ? 

कितनी बार चूल्हा जलाया 
कितनी रोज रोटियाँ बेली 
क्या बच्चों के टिफिन लिखूँ 
कैसे उसका हिसाब लिखूँ ? 

कितनी बार खाना परोसा 
कितना ठंडा-बासी खाया
क्या पानी भरने का लिखुँ
कैसे उसका हिसाब लिखूँ ?  

कितनी बार झाड़ू लगाया 
कितना बर्तन साफ़ किया 
क्या कपड़ों का धोना लिखुँ
कैसे उसका हिसाब लिखूँ ? 

कितना बिस्तर रोज लगाया
कितने जन रूठों को मनाया 
क्या बच्चे जन्म पीड़ा लिखूँ 
कैसे उसका हिसाब लिखूँ ? 
  
कितना उसका वेतन लिखूँ 
कितना ओवरटाइम लिखूँ 
क्या दाम्पत्य का मोल लिखूँ 
कैसे उसका हिसाब लिखूँ ? 


Tuesday, November 15, 2022

ध्यान की नई पद्धति

आप अपने 
आप से हट कर 
दूसरे के बारे में सोचें 
पूरी तरह से दूसरे में 
रुचि ले। 

उस पर 
तरह- तरह से शक करें 
शक की निगाह से देखें 
शक को पैदा करें। 

थोड़ी देर बाद 
आप देखेंगे कि आप 
अपने आप से दूर हो गए 

आप का मन 
इस समय पूरी तरह से 
दूसरे में रूचि ले रहा है 

अब आप
आनंद का अनुभव 
कर रहे हैं 
आप जब तक चाहे 
इस अवस्था में बैठे रहें 

जब आप को 
समाधि से उठना हो 
आप अपने आप से कहें 
"जाने दो अपना क्या लिया"

और इसके साथ 
अपने दोनों हाथों की 
हथेलियों को रगड़ कर 
अपनी आँखों पर रख लें 

आप अनुभव करेंगे 
कि आप का मन 
अखंड आनंद से 
अभिभूत हो गया है। 


  



Monday, November 14, 2022

आकाश उसी का होता है

आकाश उसी का होता है 
जो वहाँ उड़ान भरता है, 
समुद्र उसी का होता है  
जो वहाँ दोहन करता है। 

सूरज उसी का होता है 
जो उससे ऊर्जा लेता है, 
चाँद उसी का होता है 
जो वहाँ तक पहुंचता है। 

सौरभ उसी की होती है 
जो उसे ग्रहण करता है, 
आनंद उसी का होता है 
जो उसे अनुभव करता है। 

स्वप्न उसी का होता है 
जो उसको देखता है,
मंजिल उसी की होती है 
जो वहाँ पहुँचता है।   


Friday, November 11, 2022

चौकड़ी भरती

चौकड़ी भरती 
चली आती तुम्हारी यादें 
कस्तूरी मृग की तरह। 

मार छलाँग 
गुम हो जाता चैन 
खरगोश की तरह। 

फुर्र हो जाती नींद 
चिड़ियों की तरह। 

यादों संग 
धड़कता दिल 
मेघों की तरह।  

शब्दों से परे 
मन में उमगते भाव 
सरिता की तरह। 

महक उठती 
प्यार भरी यादें 
खुशबू की तरह। 

उमड़ पड़ता 
निश्छल प्रेम 
लहरों की तरह। 

दिल में बसी  
प्यारी मुस्कराहट 
खुशबू की तरह। 

काश ! 
तुम ही चली आती 
चौकड़ी भरती
यादों की तरह।