Friday, January 25, 2019

बंद कमरे में रोया था

स्वर्गलोक तुम चली गई, मैं तो यहाँ अकेला था
मेरे आँसूं किसने देखे,  मैं गम के मारे रोया था।

बिना कहे तुम चली गई, मैं तो दौड़ा आया था
 अब मैं कहाँ ढूँढने जाऊं, राहों से अनजाना था।

जीवन की राहों में मैंने, तुमको मीत  बनाया था
बीच राह तुम छोड़ गई, मंजिल अभी तो दूर था। 

हाय मृत्यु को दया न आई, कैसे झपटा मारा था
लेकर तुम को चली गई, मेरा जीवन बिछड़ा था।

सुख - दुःख में हम साथी थे, प्यार भरा जीवन था 
पल भर के एक झोंके ने,मेरा सब कुछ छीना था।

बीत गई थी आधी रात, सारा जग जब सोया था  
याद तुम्हारी कर-कर मैं,  बंद कमरे में रोया था।





( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

Monday, January 21, 2019

बरखा आई, बरखा आई

दादुर का टर-टर
कोयल की कू-कू
मोर का नाच
बरखा आई, बरखा आई।

दामिनि की दमक
धरती की महक
बादल की गरज
बरखा आई, बरखा आई।

निर्झर का झर-झर
पत्तों का मर्मर
बूंदों का रिम-झिम
बरखा आई, बरखा आई।

सरिता का कल-कल
अलि का गुन-गुन
पक्षी का कलरव
बरखा आई, बरखा आई।


NO 

Saturday, January 19, 2019

तन्हाई संग रात बिताए

नींद उचट जाती रातों में
        सुख की नींद नहीं सोया
               फिर मिलने की चाह लिए
                       मैं रातों सपनों में खोया।

                        दिल में बैठी प्रीत तुम्हारी
                               अब  भी प्यार वही है तुमसे
                                        उसमें कमी न आई कोई
                                               मेरा प्रेम चिरंतन तुमसे।

                                                रूप तुम्हारा इतना सोणा
                                                      अब तक आँखें नहीं भरी
                                                               बचपन से था संग हमारा
                                                                        बीच  राह  फूटी   गगरी।

                                                                          याद तुम्हारी मुझे सताए 
                                                                                 बिना तुम्हारे रहा न जाए 
                                                                                        शाम ढले तेरी यादों में 
                                                                                                तन्हाई संग रात बिताए। 



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

Friday, January 18, 2019

अपनी प्रेम कहानी

इश्क तड़फ मेरा रोया,  बहता आँखों से पानी
बिना तुम्हारे कैसे जीवूंगा, मेरे सपनों की रानी।

यादों की क्या बतलाऊँ, हर पल आए हिचकी
मेरे प्यार को नजर लगी, कैसे बताऊँ किसकी।

दूध मिश्री की तरह घुली थी,अपनी प्रेम कहानी
बीच राह तुम चली गई, जैसे बादल बरसे पानी।

दिल काबू में नहीं रहता, यादें तेरी सदा सताती
मेरे सपनों में आकर,  तेरी तस्वीर सदा बनाती।

छोड़ गई झाँझर बेला में, क्या कहूँ अपनी बीती
जीवन में सब सुख हो कर भी, मेरी गागर रीती।

संग तुम्हारे पीया सोमरस, आज हाथ मेरे पानी
मेरे जीवन का सम्बल होगी, अपनी प्रेम कहानी।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। ) 

Tuesday, January 15, 2019

घणा दिना रे बाद (राजस्थानी कविता )


  • घणा दिना रे बाद
  • अबकाळै म्हैं उडाइ
  • खेत मांय गोफ्या स्यूं चिड़कळ्यां

  • घणा दिना रे बाद
  • अबकाळै म्हैं सेक्या
  • खेत मांय बाजारी रा सिट्टा

  • घणा दिना रे बाद
  • अबकाळै म्हैं फोड्या     
  • खेत मांय खुणी स्यूं मतीरा

  • घणा दिना रे बाद
  • अबकाळै म्हैं तोड़्या
  • खेत मांय झाड़का स्यूं बोरिया

  • घणा दिना रे बाद
  • अबकाळै म्हैं खाया
  • खेत मांय काकड़ी र काचरा

  • घणा दिना रे बाद
  • अबकाळै म्हैं बजायो
  • खेत मांय धोरा ऊपर अळगोजो

  • घणा दिना रे बाद
  • अबकाळै म्हैं काढ्यो 
  • खेत मांय बाजारी रो खळो। 

Thursday, January 10, 2019

मेरा नाम बदल देना

वो हर बात पर
मुझे यही कहता-
मेरी बात झूठ निकले तो 
मेरा नाम बदल देना 

मैंने भी आज कह दिया-
तुम्हारी बात सच निकली तो 
मैं अपना नाम बदल कर 
तुम्हारा नाम रख लूंगा

उसके बाद उसने
मुझे कभी नहीं कहा कि 
मेरा नाम बदल देना। 


Tuesday, January 8, 2019

कृष्णा को बारंबार बधाई

आज तुम्हारे जन्म-दिवस की
शुभ घड़ी फिर आई
कृष्णा को बारंबार बधाई

जीवन के इस नये बरस में
नित आनंद मनाओ,
सदा सुखी रहो तन-मन से
अपना यश फैलाओ

तुम्हें सहज ही मिल जाएं
सब चीजें मन-भाई
कृष्णा को बारंबार बधाई।

NO 

Monday, January 7, 2019

वह खुशनुमा सफर

वह चली गई चाँद-सितारों के देश में 
अब उसके पास सन्देश नहीं पहुंचेगा।


                                    उसके जाने के बाद नहीं आई खबर 
                                    सफर कैसा रहा अब कौन बताएगा। 

वह बैठी रहती मैं उसे निहारता रहता             
अब मेरा चाँद धरती पर नहीं उतरेगा।  

                                     वह सुनती थी मेरे दुःख -सुख की बातें
                                     अब कौन पास बैठ मेरे मन की सुनेगा। 
       

उसका हाथ पकड़ मैं पूरी दुनिया घुमा
अब इस जीवन में कौन मेरा साथ देगा।            

                                     हँसी-ख़ुशी जीवन जीया मैंने उसके संग
                                     वह खुशनुमा सफर तो सदा याद रहेगा।

                                       

( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। ) 


     

Saturday, January 5, 2019

ख्वाब अधूरा रह गया

तोड़ गई वो वादा अपना, सात फेरों के संग किया
चली गई वो स्वर्गलोक में, बिच राह में छोड़ दिया।

खुशियाँ रूठ गई जीवन की,जीवन मेरा बिखर गया
  किश्ती डूबी मेरे जीवन की, बीच भंवर में फंस गया।

रंग उड़ा मेरे जीवन का, आँखों से सपना बह गया
खुशियाँ डूबी जीवन की,  बासंती मौसम रीत गया।

किस से दिल की बात कहूँ, मन का मीत चला गया
अंतहीन है विरह वेदना,  प्यार में  जीवन छला गया।

जब जब मैंने याद किया, नयनों में नीर उतर आया
ठण्डी पड़ गई मेरी साँसें, जीवन चापल्य रीत गया।

\सदियों जैसा दिन लगता है, मेरा जीवन ठहर गया
  रात गुजरती आँखों में अब, ख्वाब अधूरा रह गया। 




( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )