Friday, January 15, 2021

दीवार पर टँगा हुआ चित्र

तुमसे बिछुड़ कर 
मैंने पहली बार अनुभव किया है कि 
बिना जान भी जिया जा सकता है
और मैं तनहाई में जिन्दा हूँ। 

मेरे जीवन में 
कोई अस्तित्व का पल नहीं 
जो तुमने छुवा न हो 
कोई सांस नहीं जिसमें 
तुम्हारा अहसास न हो 
कोई याद नहीं जिस पर 
तुम्हारा हस्ताक्षर न हो। 

असीम आनन्द था तुम्हारे सानिध्य में 
जहां भी जाता सदा तुम्हारी 
खुशबू मेरे साथ रहती 
अब मेरा कहने को कुछ नहीं बचा है ?

मेरी यादों का घूँघट भी 
अब धुंधला होता जा रहा है
तुम होती तो क्या होता पता नहीं 
बस खो जाता बाँहों में
निहारता रहता आसमान में चाँद को 

अब तो मैं एक खाली कमरे जैसा हूँ 
या शायद दीवार पर टँगा हुआ चित्र। 




 ( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )


Wednesday, January 13, 2021

तुम्हारी यादों के संग सफर

छुट्टियों के बाद 
मेरा कॉलेज में पढ़ने के लिए जाना 
तुम्हारी आँखों में बादलों का उमड़ना 
आज भी याद आता है। 

मेरे कॉलेज से लौटने पर 
दरवाजे पर आँखों का टकराना 
दिलों में प्यार का उमड़ना 
आज भी याद आता है। 

घर की छत पर 
लम्बे बालों को संवारना 
अप्रतिम सौन्दर्य कोबिखेरना   
आज भी याद आता है।  

हिमालय की वादियों में 
एक हाथ में तुम्हारा हाथ पकड़ना 
दूसरा बादलो के कंधे पर रख घूमना 
आज भी याद आता है। 

गीता भवन के घाट पर 
गंगा की लहरों संग खेलना 
नाव में बैठ पानी को उछालना  
आज भी याद आता है। 

सागर के किनारे 
नंगे पांव लहरों के संग दौड़ना 
ढेर सारी सीपियाँ चुन कर लाना 
आज भी याद आता है। 

पार्क में घूमते हुए 
हलके से उंगलियों को दबाना 
मेरा अल्हड़ आँखों में झांकना 
आज भी याद आता है। 





  ( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )