Thursday, February 25, 2021

कलात्मक सृजनता


ताल 
कानाताल 
पौड़ी गढ़वाल का 
सुन्दर, शांत इलाका 
छोटा -सा बाजार। 

दो दिन से लगातार 
हो रहा है हिमपात 
लगता है जैसे काश के 
फूलों को बिछा दिया
गया है चहुँ ओर 

पहाड़ों पर छितरे हैं 
दूर-दूर तक मकान 
छतों पर पड़ी हिम 
चमक रही है धूप में 

देवदार के पेड़ 
क्रिसमस ट्री बन गए हैं
झर रही है हिम रुई की तरह 
हवा के हल्के झोंके से 

हिम से ढके पहाड़ 
चमक रहे हैं सूर्योदय 
के समय सोने की तरह 

पर्यटकों का मन मोह रहे हैं 
बर्फीली वादियों के नज़ारे 
चाँदी से गुलज़ार हो गए 
देवभूमि के पर्वत 

प्रकृति ने एक सफ़ेद चादर 
चांदनी की तरह ओढ़ रखी है 
जैसे चाँद अपनी चांदनी 
को छोड़ गया हो 

चारों ओर बिखरा पड़ा है 
प्रकृत्ति का अनुपम सौन्दर्य 
मन को मोह लेती है यहॉं की 
कलात्मक सृजनता। 

( कानाताल में रहते हुए चार फ़रवरी, २०२१ )

( यह कविता स्मृति मेघ में प्रकाशित हो गई है। )

Thursday, February 11, 2021

युग बीत गया

घर की छत पर सोने 
टूटते तारों को देखने 
चांदनी में नहाने को 
मन तरस गया 
एक युग बीत गया। 

झाड़ी से बेरों को तोड़ने 
नीम की छाँव तले बैठने 
अलगोजा सुनने को 
मन तरस गया 
एक युग बीत गया।  

बणीठणी पणिहारी देखने
शादियों में टूंटिया देखने
मेले में घूमने को 
मन तरस गया 
एक युग बीत गया।

गोधूलि में घुंघरु सुनने
मौर का नाच देखने
ऊँट पर चढ़ने को
मन तरस गया 
एक युग बीत गया।  

पायल की छमछम सुनने 
घूँघट से टिचकारी सुनने  
चूड़ियों से पानी पीने को  
मन तरस गया 
एक युग बीत गया।