Tuesday, December 24, 2019

पोती की विदाई

पोती को विदा करने के बाद
जब मैं उसके कमरे में गया
तो देखा कुछ सूखे फूल
इधर-उधर बिखरे पड़े थे

इतने में उसके भाई की
आवाज आई -
दीदी का पीछे कुछ
रह तो नहीं गया है ?

मैंने मन में सोचा
दीदी लेकर ही क्या गई है
सभी कुछ तो यहीं छोड़ गई है

२५ साल तक लाड -प्यार से
जिस नाम से आवाज देते थे
वह नाम तक तो यहीं छोड़ कर गई है

उसके नाम के आगे
गर्व से जो "राणा" लगाता था
वो भी तो यही रह गया है

वो क्या लेकर गई है
सभी कुछ तो यहीं छोड़ कर
चली गई है।



बलात्कारी को फाँसी

ऋषियों की यह पावन धरा  
आज शर्म से डूब रही,
हर गली और नुक्कड़ पर 
औरत सतायी जा रही। 

पांच साल की बच्ची भी

हवस का शिकार हो रही,
सभ्यता और मर्यादा की
देश में धज्जियां उड़ रही ,

बलात्कार फिर ह्त्या
दोहरे जुल्म हो रहे, 
बर्बरता की सारी हदे
दरिंदें पार कर रहें। 

कब तक हमारी निर्भया 
इस तरह मरती रहेगी, 
कब तक वो शैतानों की 
दरिन्दगी सहती रहेगी। 

हैवानियत को देख कर 
मानवता अब काँप रही, 
बलात्कारी को फाँसी दो 
आम जनता मांग रही।  

( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )









सच्चा आनन्द

किसी घाट पर बैठ कर
आनन्द है, आनन्द है कहने से
आनन्द की प्राप्ति नहीं होती। 

आनन्द का मतलब
उस ख़ुशी से है,
जिसे हम सब मिल कर
आपस में बाँटते हैं
उसे महसूस करते हैं। 

घनश्याम के लड़के का
टीम में चुनाव हुवा, 
शिवपाल के लॉटरी में
मकान उठा, 
मोहल्ले में लड्डू बँट रहे हैं
यह है सच्चा आनन्द। 

रमेश की सरकारी
नौकरी लग गई,
अखिलेश की लड़की ने
आई. ऐ. अस. में टॉप कर लिया,
मोहल्ले में लड्डू बँट रहे हैं
यह है सच्चा आनन्द। 
 
बसेसर की बहु के
आज बेटा हुवा,
लछमन की बेटी ने
कुश्ती प्रतियोगिता में
गोल्ड मैडल जीत लिया, 
मोहल्ले में लड्डू बँट रहे हैं
यह है सच्चा आनन्द। 


मणिकर्णिका घाट

मेरे जीवन के नक़्शे से
ताजमहल निकल गया
ताजमहल ही क्यों
अजंता और ऐलौरा
भी तो कट गया
बचा है केवल
पवित्र गंगा किनारे
मणिकर्णिका घाट
जिसमें एक का तर्पण
हो चुका है
और एक का होना बाकी है।  

Monday, December 23, 2019

सबका प्यारा है खरगोश

सफ़ेद रंग और आँखें लाल
प्यारा लगता है खरगोश,
लम्बे-लम्बे कान है इसके
उछल-कूद करता खरगोश।

नरम-नरम और गुदगुदा
बच्चों का प्यारा खरगोश,
अपनी प्यारी पूंछ उठा कर
पल में छुप जाता खरगोश।

झाड़ियों में लुकता-छिपता
हरी दुब खाता खरगोश,
रेशम जैसे बाल है इसके
सबका प्यारा है खरगोश।


Wednesday, December 11, 2019

चाय जरुरत भर

जीवन की तमाम
चिंताओं से मुक्त हो कर
जीवन संगीनी के संग बैठ 
चाय की चुस्कियों के बीच
बीते पलों को फिर से जीना
पुरानी यादों को फिर से बाँटना
मेरे जीवन का अब सपना बन गया। 

जीवन संगिनी की अब केवल 
यादें ही बची है मेरे पास 
बदल गया है अब
मेरी जिन्दगी का अर्थ
अब अकेले बैठ कर चाय पीने से 
मन में नहीं घुलती कोई मिठास
चाय अब केवल एक
जरुरत भर रह गई है



  ( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )





Monday, December 2, 2019

एक पेड़ का ढहना

कल एक पेड़ ढह गया 
नए ज़माने की हवा 
उसे रास नहीं आई

बूढ़े पेड़ को तो 
एक न एक दिन 
ढहना ही था 
 
मगर खेद यह है 
कि पेड़ की छाँव तले 
पली नयी पौध 
नए ज़माने की हवा पाकर  
ज्यादा ही इठलाने 
खिलखिलाने और 
झूमने लग गई 

तूफ़ान झेलना पड़ा 
अकेले खड़े पेड़ को 
बूढ़े कन्धे नहीं सह सके 
हवा के थपेड़ों को 

रात के अँधेरे में 
पेड़ ने किया था चीत्कार 
नहीं सूना किसी ने 

सुबह देखा 
पेड़ धराशाही हो चुका था
बीच राह अपनी यात्रा को 
विराम दे चुका था।


( भावभीनी  श्रद्धांजलि मेरे सहपाठी कमल तोषनीवाल को, जिसने असमय ही मौत को गले लगा लिया।  )


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )