Friday, January 31, 2020

इस धरती की रक्षा करना है

हवा -पानी जहरीला हो रहा 
भूगर्भ खजाना खली हो रहा 
धरती का तापमान बढ़ रहा  
विशाल ग्लेशियर पिघल रहा। 

समुद्र धरती को निगल रहा 
मौसम का चक्र बिगड़ रहा 
बाढ़-सूखा चीत्कार कर रहा  
ओजोन कवच अब टूट रहा। 

प्रदूषण दुनियां में फ़ैल रहा 
परमाणु का खतरा बढ़ रहा 
भूकम्प, सुनामी कम्पा रहा 
अकाल मृत्यु दस्तक दे रहा। 

यह महा-प्रलय की आहट है 
सम्पूर्ण जैविकता खतरे में है 
हमें  मिल कर इसे बचाना है 
इस धरती की रक्षा करना है। 


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )


Tuesday, January 7, 2020

बचपन की सौगात

मेरे पोते पोतियाँ अब
बड़े हो गये हैं 
वो कॉलेजो में पढ़ते हैं

अब वो मुझे कहानी सुनाने 
बाहर घुमने ले जाने
कागज़ की नाव बनाने 
की जिद्द नहीं करते 

अब वो मुझे कहते हैं 
चलिए दादा जी आइस्क्रीम 
खाकर आते हैं 

मेरे मना करने पर कहते हैं
ठीक है फिर कल आपके संग 
स्टारबक्स में कॉफी पीकरआते हैं 

बिजी हो कर भी 
वो मेरे लिए समय 
निकाल लेते हैं 

वो मेरा ख्याल रखते हैं 
मेरी जरूरतों को भी 
समझते हैं 

शाम ढले मेरे पास बैठ
मेरी यादों की पिटारी
खोल लेते हैं

बातों ही बातों में
वो मेरे बचपन को
ढूँढ लाते हैं

और मुझे मेरे बचपन की
सौगात एक बार फिर से
देकर चले जाते हैं।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )