बसंत आया
[ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]
छा रहा कलियों में
प्यार का नशा।
चली बयार
झरने लगे पुष्प
दिन गुलाबी।
बसंत रंग
बजे मन मृदंग
सदा अनूठा।
गुलाबी फिजा
रिमझिम के गीत
गायें भंवरे।
रंग बसन्ती
छाया धरती पर
सृजन खिला।
खेतो में अब
गदराई सरसों
मन मगन।
आया बसंत
उड़ने लगा मन
पिया अनाड़ी।
कोयल कूके
बसंती उपवन
नाचै मयूर।
बौराये आम
मदमस्त महुआ
दहका टेसू।
दिन बसंती
तन मन गुलाबी
हंसी फागुनी।
पीली सरसों
रंग बिरंगे फूल
झूमा बसंत।