Sunday, March 28, 2021

गांव बदल गया है

बाजरी की रोटी
      दूध भरा कटोरा 
            कहीं खो गया है
                  गांव शहर चला गया है। 

चौपाल की बैठक 
       चिलमों का धुँवा 
             कहीं खो गया है 
                     गांव शहर चला गया है। 

गौरी की चितवन 
       गबरू का बांकापन 
              कहीं खो गया है 
                     गांव शहर चला गया है। 

होली की घीनड़ 
      गणगौर का मेला 
            कहीं खो गया है 
                   गांव शहर चला गया है। 

बनीठनी पनिहारिन 
       ग्वाले का अलगोजा 
               कहीं खो गया है 
                      गांव शहर चला गया है। 
आँगन में मांडना 
       सावन में झूला 
             कहीं खो गया है 
                     गांव शहर चला गया है। 


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )















Saturday, March 13, 2021

सुनहरी यादें

याद आती बचपन की बातें 
प्यार भरी वो सुनहरी  यादें। 

बारिश के पानी में उछलना
मेंढक को देख चीखें लगाना   
कटी पतंगों के पीछे दौड़ना 
दीपक की रौशनी में पढ़ना। 

थैला लेकर स्कूल को जाना 
थूक लगा स्लेट साफ़ करना 
नई किताबों पर गते चढ़ाना
पहाड़े बोल कर याद करना। 

दोस्तों के साथ कंचा खेलना 
फूल पर से तितली पकड़ना
अपने भाई को घोड़ा बनाना 
दादी से  रोज कहानी सुनना। 

होली में सबको रंग लगाना 
सावन में खूब झूले झूलना 
तीज पर मेला देखने जाना 
दिवाली पर पटाखें छोड़ना। 

याद आती बचपन की बातें 
प्यार भरी वो सुनहरी  यादें। 


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )