Thursday, March 31, 2022

तो भी क्या दिया ?

अगर तुमको 
मेरे पास बैठना है
तो अभी आकर बैठो,
मरने के बाद 
अर्थी पास आकर बैठे
तो भी क्या बैठे ?

अगर तुमको 
कोई  उपहार देना है 
तो अभी लाकर दो,  
मरने के बाद 
अर्थी पर फूल चढ़ाये 
तो भी क्या चढ़ाये ?

अगर तुमको 
जीवन में साथ चलना है 
तो अभी साथ चलो, 
मरने के बाद 
अर्थी के साथ चले 
तो भी क्या चले  ?

अगर तुमको 
जीवन में आदर देना है
तो अभी हाथ बढ़ाओ, 
मरने के बाद 
अर्थी को कन्धा दिया 
तो भी क्या दिया  ?



Wednesday, March 30, 2022

सोचा शायद तुम आ रही हो

कल शाम, छत पर सोया मैं गुनगुना रहा था।  
एक तारा टूटा, सोचा शायद तुम आ रही हो।। 

रिमझिम बरसात, मैं खिड़की से देख रहा था। 
बिजली चमकी, सोचा शायद तुम आ रही हो। 

सुबह का समय, मैं विक्टोरिया में घूम रहा था।  
खुशबू का झोंका, सोचा शायद तुम आ रही हो। 

होली का त्योंहार, मैं तुम्हारी यादों में खोया था।  
गुलाबी रंग उड़ा,  सोचा शायद तुम आ रही हो। 

हरसिंगार के निचे,  मैं कविता गुनगुना रहा था। 
फूल महकने लगे, सोचा शायद तुम आ रही हो। 



Sunday, March 27, 2022

हमारी वाणी कैसी हो ?

हमारी वाणी में,
मधुरता,
शालीनता,
निर्मलता और 
गंभीरता होनी चाहिये। 

हमारी वाणी में,
मृदुलता, 
सरसता, 
विमलता और 
पवित्रता होनी चाहिये। 

हमारी वाणी में, 
शीतलता, 
सज्जनता, 
सरलता और  
विनम्रता होनी चाहिये। 

हमरी वाणी में,
सकारात्मकता,
बोधगम्यता 
शिष्टता और 
कोमलता होनी चाहिये।  



Thursday, March 24, 2022

संबन्धों की खुशहाली सदा बनाये चलो

बिछुड़ने के बाद किस से शिकवा होगा, 
केवल कुछ  यादों का सिलसिला  होगा,  
दो दिन की जिंदगी है  हँस बोल जी लो, 
एक दिन तो सबको बिछुड़ जाना होगा। 

सभी संग आत्मीयता भरा जीवन जी लो, 
अहंकार को मन से निकाल दूर कर लो,
गलतियाँ दूसरों की नहीं अपनी को देखो,
स्वजनों  के संग प्यार से रहना सीख लो। 

तुम्हारी पहचान तुम्हारे  व्यवहार से होगी,
अपनों से सम्बन्ध ही जीवन की पूंजी होगी, 
किसी को कभी भी कड़वे बोल मत बोलो,
वरना दिये ग़मों पे एक दिन शर्मिंदगी होगी।

प्रत्येक के साथ प्रेम का भाव लेकर चलो, 
परिवार संग अपना स्वार्थ छोड़ कर चलो, 
आपसी रिश्तों के लिए झुकना पड़े झुको, 
मगर संबन्धों की खुशहाली  बनाये चलो। 

Thursday, March 17, 2022

बीना तुम्हारे कैसी होली ?

मैं अब किसके रंग लगाऊँ,
किसके गाल गुलाल चुराऊँ,
किसके संग करूँ ठिठोली,
बिना तुम्हारे  कैसी  होली?

रिमझिम रंगों की बरसातें,
रंग सब पिचकारी में डालें,
मैं किसके संग खेलूं  होली,
बिना तुम्हारे  कैसी  होली?

जब भोली भाली सूरत ने,
मुझे रँगा था अपने रँग में,
भूला नहीं वो हसीन होली,
बिना तुम्हारे कैसी होली?

एक बार आ जाओ सजनी, 
मिल कर खेलें प्यारी होली,
आलिंगन की चाह  हठीली,
बिना  तुम्हारे  कैसी होली?

Monday, March 7, 2022

बचपन के खेल खेलते हैं

उम्र की  ऐसी  की तैसी 
आओ बचपन खेलते हैं। 
बल्ला-गेंद लेकर आओ 
चौके - छक्के लगाते हैं। 

पहले मिल खो-खो खेलें 
फिर लम्बी रेल बनाते हैं। 
कागज़  की  पतंग  बना 
आसमान  में  उड़ाते है।

तुम छुप जाओ मैं ढ़ुँढ़ुगा 
छुपन - छुपाई खेलते हैं। 
छोटे-छोटे पत्थर लाकर 
गुटियों का खेल खेलते हैं। 

गिल्ली डंडा चोर सिपाही 
मिल कर आज खेलते हैं। 
टायर, गिप्पा,लंगड़ी टांग 
लट्टू,  गुलेल  चलाते हैं। 

मारम-पिट्टी, सांप-सीढी 
उसको भी आजमाते हैं। 
भोली सी शैतानियों संग 
थोड़ी नादानियाँ करते हैं।

गोली और कंचों के संग  
खनकते खेल  खेलते हैं। 
कुछ हारेंगे कुछ जीतेंगे 
बचपन के खेल खेलते हैं। 



Saturday, March 5, 2022

हमें अपने आसपास

हमें अपने आसपास 
सदा रखने चाहिए ऐसे 
पारिवारिक लोग 
जो हमें बचा सके 
भटकाव से,
हमें याद दिला सके 
हमारे कर्तव्य,
हमारी योजनायें,
हमारा लक्ष्य 
और सदा दिखाते रहें 
द्वेष रहित, स्वार्थ रहित  
प्यार भरी राहें। 

लेकिन हमने तो आज
पाल रखी है 
खुद को श्रेष्ठ समझे 
जाने की बीमारी, 
जिसके चलते 
हम नहीं किसी की 
सुनना चाहते और 
नहीं किसी को 
सम्मान देते। 

हमारे इर्द-गिर्द 
घूमते रहते हैं कुछ 
चापलूस और चाटुकार 
जो सदा भरते रहते हैं
हमारी हाँ में हाँ
तुष्टी करते रहते हैं 
हमारे अहम् की। 

बनाते रहते हैं  
बिमारी को असाध्य 
और कालांतर में 
हमें कर देते हैं 
अपनों से ही विमुख,
खत्म हो जाता है 
आपस का प्यार और 
राख हो जाती है 
सम्बन्धों की। 

कितना कुछ 
बंधन था बचपन में 
साथ-साथ जीने का
साथ-साथ रहने का  
सारा तिल-तिल कर 
बिखर जाता है, 
कभी उम्मीदें टूटती 
कभी विश्वास टूटता 
बचता है तो केवल 
सन्नाटा। 

क्या सन्नाटों में 
फिर से गुंजन 
नहीं लाई जा सकती ?
प्रयास तो किया ही 
जा सकता है। 






 











Thursday, March 3, 2022

हाल-ए-दिल किसी को सुनाता भी नहीं

मैं अपने विछोह का दर्द कैसे बयाँ करू?
ऐसे स्वर और व्यंजन वर्णमाला में भी नहीं। 
मेरे दर्द को जो सदा के लिए दूर कर सके, 
ऐसा शिक्षक भी किसी पाठशाला में नहीं। 

मैं जहाँ गया सदा तुम्हें साथ लेकर गया, 
मैंने तो कभी तुम्हें अकेला छोड़ा भी नहीं।  
मेरे समर्पण में  क्या कोई कमी रह गई ?
जो तुम मुझे अपने साथ लेकर गयी नहीं। 

तुम्हारे बिना जीवन में पतझड़ छा जायेगा,
कैसे बसन्त खिलेगा तुमने सोचा भी नहीं। 
जीवन का अधूरा गीत कैसे सम्पूर्ण होगा,
प्यार की थाह को तुमने समझा भी नहीं। 

कैसे मन के भावों को तुम तक पहुँचाऊँ?
सन्देश वाहक मेघदूतों  की प्रथा रही नहीं। 
बगैर तुम्हारे तन्हा जिंदगी में दर्द तो बहुत है,
पर हाल-ए-दिल किसी को सुनाता भी नहीं।



Tuesday, March 1, 2022

तुम मुझ से इतनी दूर गयी

तुम मुझ से इतनी दूर गयी,
अब तक लौट न पायी हो। 
जीवन सफर में संग नहीं,
पर मन में सदा समाई हो। 

सूरज की किरणों के सँग-सँग 
तुम रोज सुबह को आती हो। 
जीवन के इस पतझड़ को तुम,
सावन बन कर महकाती हो। 

सर्द हवा के झोंकों के संग,
तुम मन को ठंडक देती हो। 
हो जाता रोम-रोम पुलकित,
हर सांस को तुम छू जाती हो। 

कविता के हरेक छन्द के संग,
मैं तुम्ही को लिखता रहता हूँ। 
यादों की सरगम के सँग-सँग 
हर राह पे चलता रहता हूँ।