Monday, April 29, 2019

सावन के मेघा आये

पुरवाई की पवन चली, अब वारिद आएंगे,   
        बिजली के संग गरजेंगे, अम्बर में छायेंगे,  
                 प्यास बुझेगी धरती की, अमृत बरसाएंगे, 
                            सावन के मेघा आए, बरसात लाएंगे। 

बागों में सावन के झूले, फिर से डालेंगे, 
          फूल खिलेंगे बागों में, पपीहारा गायेंगे, 
                  प्यास बुझेगी चातक की, मयूर नाचेंगे,  
                          सावन के मेघा आए, बरसात लाएंगे। 

इन्द्रधनुष के सातों रंग, अम्बर में छाएंगे, 
        चमचमाते जुगनू, रातों में  दीप जलाएंगे, 
                हल चलेंगे खेतों में, नव अंकुर निकलेंगे,
                           सावन के मेघा आए, बरसात लाएंगे। 

बच्चे नाचेंगे पानी में, किलकारी मारेंगे,
        टर्र - टर्राते मेंढक, पोखर में उछलेंगे, 
                  ताल-तलैया, बावड़ी, सब भर जाएंगे, 
                         सावन के मेघा आए, बरसात लाएंगे। 


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )


Saturday, April 27, 2019

यह अहसास कराउंगा

सब कुछ सुनना
और कुछ नहीं बोलना
सब कुछ देखना
और कुछ नहीं देखना
यह है मृत्यु का पर्याय
मैं ऐसा जीवन नहीं जीऊंगा
मैं अभी ज़िंदा हूँ
यह अहसास कराउंगा

किसी नापसंद बात पर
मेरा चौंक जाना
या कुछ अनसुनी बात पर
मेरा नाराज होना
यह है जीवन का पर्याय
मेरे अंदर अभी जीवन है
यह अहसास कराउंगा।

NO

इतिहास बनना

मेरी साधना की अवधि
अब पूरी हो रही है

मैं पल-पल
बढ़ता जा रहा हूँ
इतिहास बनने की ओर

मैं बाँचा तो जाऊंगा
इतिहास बनने के बाद भी
लेकिन जी नहीं पाऊंगा

मैं अपना इतिहास बनना
अब रोक नहीं पाऊंगा

मेरी साधना की अवधि
अब पूरी हो रही है।

NO 

Saturday, April 6, 2019

ठगिनी बयार

बसंत आया मन हर्षाया
प्रकृति करे सोलह सिंगार,
धानी चुनरिया ओढ़े धरती
मद्धम - मद्धम बहे बहार। 

बागों में अमुआ बौराया
झूम उठी सरसों कचनार,
महुआ का भी तन गदराया
लाया बसंत अनन्त बहार। 

 पायल थिरके चुनर लहरे 
मचली फागुन की फगुआर,
कुहू -कुहू बोले कोयलियाँ 
बागों में छाई बसंत बहार। 

तन गदराया मन अकुलाया 
प्रकृति करे प्रणय मनुहार,
मधुकर चूमे कलियों को
ठगिनी बहने लगी बयार।


 ( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )