Wednesday, October 20, 2021

सबसूं प्यारो लागै, म्हाने म्हारो गांव ( राजस्थानी कविता )

भातो लेकर चाली गौरड़ी  
गीगो गोदी मांय, 
झाड़को तो करी मस्करी 
काँटो गड्ग्यो पांव,  
सबसूं प्यारो लागै 
म्हाने म्हारो गांव। 

जबर जमानो अबकी हुयो   
भरग्या कोठी ठांव,  
मेड़ी ऊपर बैठ्यो कागळो 
बोले कांव - कांव, 
सबसूं प्यारो लागै 
म्हाने म्हारो गांव। 

फौज स्यूं रिटायर बाबो 
बैठ्यो पोळी मांय, 
आया गया ने कोथ सुनावै 
दे मूंछ्या पर ताव, 
सबसूं प्यारो लागै 
म्हाने म्हारो गांव। 

टाबर खेळ लुकमींचणी
घर री बाखळ मांय, 
मोर-मोरनी छतरी ताणै 
बड़-पीपल री छांव, 
सबसूं प्यारो लागै 
म्हाने म्हारो गांव।