भातो लेकर चाली गौरड़ी
गीगो गोदी मांय,
झाड़को तो करी मस्करी
काँटो गड्ग्यो पांव,
सबसूं प्यारो लागै
म्हाने म्हारो गांव।
जबर जमानो अबकी हुयो
भरग्या कोठी ठांव,
मेड़ी ऊपर बैठ्यो कागळो
बोले कांव - कांव,
सबसूं प्यारो लागै
म्हाने म्हारो गांव।
फौज स्यूं रिटायर बाबो
बैठ्यो पोळी मांय,
आया गया ने कोथ सुनावै
दे मूंछ्या पर ताव,
सबसूं प्यारो लागै
म्हाने म्हारो गांव।
टाबर खेळ लुकमींचणी
घर री बाखळ मांय,
मोर-मोरनी छतरी ताणै
बड़-पीपल री छांव,
सबसूं प्यारो लागै
म्हाने म्हारो गांव।
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ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२२-१०-२०२१) को
'शून्य का अर्थ'(चर्चा अंक-४२२५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपका आभर अनीता जी।
Deleteबहुत सुंदर राजस्थानी मिट्टी की सौंधी खुशबू समेटे फुकरी कविता।
ReplyDeleteस्वागत आपका।
Deleteफुकरी कविता किसे कहते हैं ? यदि आप बताये तो मुझे ख़ुशी होगी।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी।
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