जवानी बीत गई
बुढ़ापा आ गया है अब।
कजरारी आँखों पर
चश्मा लग गया है अब,
काले घुँघराले बाल
सफ़ेद होने लगे हैं अब।
जवानी बीत गई
बुढ़ापा आ गया है अब।
कानों से कम सुनाई देता
दांत टूटने लगे हैं अब,
बढ़ते घुटनों के दर्द से
नींद हराम होने लगी है अब।
जवानी बीत गई
बुढ़ापा आ गया है अब।
रोबिली मस्ती भरी चाल
डगमगाने लगी है अब,
मुस्कराहट भरे गालों पर
झुर्रियां पड़ने लगी है अब।
जवानी बीत गई
बुढ़ापा आ गया है अब।
धुरी पर रहा जीवन
हाशिये पर आ गया है अब,
हमसफ़र बिछुड़ गए
बीते पल याद आते हैं अब।
जवानी बीत गई
बुढ़ापा आ गया है अब।
नहीं बनाओ दूरियाँ
नजदीकियाँ बनाओ अब,
कब थम जाए जीवन सांसे
भरोसा नहीं है अब।
जवानी बीत गई
बुढ़ापा आ गया है अब।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१०-१२ -२०२१) को
'सुनो सैनिक'(चर्चा अंक -४२७४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
स्वागत आपका।
Deleteधुरी पर रहा जीवन
Deleteहाशिये पर आ गया है अब।
सच है, बिल्कुल सौ प्रतिशत!--ब्रजेंद्रनाथ
सुंदर सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद आपका।
Deleteनहीं बनाओ दूरियाँ
ReplyDeleteनजदीकियाँ बनाओ अब,
कब थम जाए जीवन सांसे
भरोसा नहीं है अब।
सच,कब थम जाएं सांसें पता नहीं... बेहतरीन अभिव्यक्ति,सादर 🙏
धन्यवाद कामिनी जी। आभार आपका।
Deleteसमय अचंभित करता हर पल
ReplyDeleteजीवन सशंकित रहता पल-पल
उम्र धुरी है नियति चक्र की
अनवरत,अविराम बहता कल-कल।
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सुंदर अभिव्यक्ति
सादर।
धन्यवाद स्वेता जी। स्वागत आपका।
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteस्वागत आपका अनुराधा जी।
ReplyDeleteशाश्वत सा उद्बोधन ।
ReplyDeleteहृदय स्पर्शी सृजन।