मेरा मन तो आज भी
उस बचपन को जीना चाहता है,
माँ के पल्लू के पीछे
एक बार फिर से छिपना चाहता है।
बेपरवाह हो कर
भोलेपन से मिलना चाहता है,
मासूमियत भरी मस्ती में
फिर से लौट जाना चाहता है।
चंचल चपल हो कर
फ़िक्र को धूंए में उड़ाना चाहता है,
बचपन के साथियों के संग
फिर नादानियाँ करना चाहता है।
मासूमियत भरा दिल लेकर
जी भर दौड़ लगाना चाहता है,
छुपे दोस्तों को ढूँढ कर
फिर से खिलखिलाना चाहता है।
बचपन की गलियों में
एक बार फिर खेलना चाहता है
बरखा के बहते पानी में
कागज की नाव चलना चाहता है।
भोली सी शैतानियों संग
मीठी मुस्कानों को जीना चाहता है,
बचपन की खुशियों भरे
झोले को फिर से ढूंढना चाहता है।
सच बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति... मन तो आज भी
ReplyDeleteउस बचपन को जीना चाहता है.. मन को छूते भाव।
सादर
स्वागत आपका।
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