Thursday, July 25, 2019

मैं कैसे सो जाऊं

कभी भी चली आती है, उसकी यादें
वापिस जाती नहीं, मैं कैसे सो जाऊं।

सितारे रात भर जगते, मेरा साथ देने
वो जागते रहते हैं, मैं कैसे सो जाऊं।

मेरी पलकों में छाई, यादों की बदली
छलकती है यादें,  मैं कैसे सो जाऊं।

बहुत याद आते हैं, साथ बिताऐ लम्हें
आँखें राह देखती है, मैं कैसे सो जाऊं।

सपने में देखा, वह बदल रही है करवटे
उसे नींद नहीं आती, मैं कैसे सो जाऊं।

पचास वर्ष का, संग-सफर था हमारा
तन्हाई में याद आए, मैं कैसे सो जाऊं।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। ) 

मेरा प्रेम-पत्र

मैं चाहता हूँ तुम्हें
एक बार फिर से लिखूँ 
खुशबु और प्यार भरा
एक प्रेम-पत्र

तुम गली के मोड़ पर
फिर से खड़ी हो कर 
करो इन्तजार डाकिये का
लेने मेरा प्रेम-पत्र

बंद कर दरवाजा
फिर पढ़ो चुपके-चुपके
मेरा प्रेम-पत्र

तकिये पर सिर रख
चौंको किसी आहट पर
पढ़ते हए मेरा प्रेम-पत्र

पसीने से तर-बतर
झूमते तन-मन से
बार-बार पढ़ो 
तुम मेरा प्रेम-पत्र

मेरे प्यार का
तुम्हें एक बार फिर से
अहसास दिलाएगा
मेरा यह प्रेम-पत्र।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। ) 

Monday, July 15, 2019

कागज की कश्ती

अब नहीं रहा
बच्चों का बचपन
हमारे जमाने जैसा  

अब डेढ़ बरस में
प्लेग्रुप और ढाई में तो
स्कूल चले जाते हैं बच्चे। 

बँट चुका है
उनका बचपन अब
स्कूल और क्रैच में। 

सुबह जाते हैं स्कूल
शाम ढले मम्मी संग
आते हैं क्रैच से। 

दोस्तों की शैतानियाँ 
मेडम की बातें
अपनी हरकतें अब वो 
नहीं कहते मम्मी से। 

अब उनका बचपन
न तो मुस्कराता और
नहीं इठलाता है

खो गई है उनकी
मासूमियत भरी मस्ती
अब पानी में नहीं तैरती
उनकी कागज की कश्ती।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )