Tuesday, June 28, 2022

हार तो मानवता की ही होगी।


क्या रूस यह 
समझ रहा है कि यूक्रेन  के 
कुछ शहरों पर अधिकार होने से 
वह विश्व विजयी बन जाएगा ?

क्या रूस यह 
समझ रहा है कि यूक्रेन में 
जनसंहार से शांति का लक्ष्य
प्राप्त हो जाएगा ?

रूस के शासक का 
यह जुनून, उन्माद आज 
मानवता के लिए बहुत बड़ा 
खतरा बन गया है।

यूक्रेन में चारों तरफ 
चीख-पुकार मची हुई है 
दिन-रात रूसी मिसाइलों से 
रॉकेट दागे जा रहें हैं। 

गोलो की बमबारी में 
ज़िंदा लाशें जल रही है 
लाखों लोग बेघर हो गये 
सैंकड़ों बच्चे मर गये हैं। 

हर तरफ विध्वंस 
का मंजर दिख रहा है 
जलती इमारते, घरों में 
सिसकियां, आँखों में डर है। 

शहर पूरी तरह से 
वीरान और खंडहर हो रहें हैं 
सड़कों पर सायरन और  
हवा में बारूद की गंध है। 

देखा जाय तो 
युद्ध किसी समस्या का 
समाधान नहीं है। 

वार्ता की मेज पर 
बैठ कर हर समस्या का 
समाधान निकाला जा सकता है। 

इस युद्ध का भी 
एक दिन अन्त जरूर होगा 
जीत चाहे किसी की भी हो 
हार तो मानवता की ही होगी। 







 




नदियों को प्रदूषण मुक्त करना होगा

नदियों के किनारे
कभी होते थे तीर्थ 
जहाँ ऋषि - मुनि 
करते थे तपस्या 

नदियों के किनारे 
बसते थे गांव 
जहाँ गूंजता था
मछुवारों का आलाप 

नदियों के घाटों पर 
बहते थे घी के दीये 
जहाँ गूंजते थे आरतियों 
ऋचाओं के मधुर स्वर 

आज मिटने लगी है 
नदियों की अस्मिता 
भरने लगी है कारखानों 
के अपशिष्ट पदार्थों से 

गिरने लगे हैं 
सीवरों के गंदे नाले 
हो रहा है रंगी-पुती
मूर्तियों का विसर्जन 

अगर धरती पर 
हवा और पानी ही 
दूषित हो गया तो 
जीवन बचेगा कैसे ?

हम सब को मिल कर  
प्रयास करना होगा 
हर हाल में नदियों को 
प्रदूषण मुक्त करना होगा।  



 


Monday, June 27, 2022

तुम्हारा मेरे पास आना

तुम्हारा मेरे पास आना 
गंगा किनारे ठंडी हवा 
का झोंका है 

तुम्हारा मेरे पास आना 
सावन की बरखा की 
पहली फुंहार है 

तुम्हारा मेरे पास आना 
सूखे ठूँठ में कोपलें  
फूटना है 

तुम्हारा मेरे पास आना 
गहन अन्धकार में 
ज्योतिपुंज है 

तुम्हारी यादों संग 
मेरे पास उड़ने लगते हैं 
गीतों के कुछ बोल 

जिनकी गुनगुनाहटों में 
झांक जाती हो तुम 
निभाने अपना कोल। 

Wednesday, June 22, 2022

बोलो क्या करूँ ?

 तुम मुझे बिना कहे, अमरलोक चली गई।
मैं यहाँ अकेला रह गया, बोलो क्या करूँ ?
                                 
                                       जब तक साथ थी, अरमान मचलते थे।  
                                      अब तो सूना जीवन है,  बोलो क्या करूँ ?
                                     
तुम्हारी बातें, तुम्हारी हँसी, याद आती है। 
नहीं निकलती दिल से,  बोलो क्या करूँ ?
                                           
                                           रातों में तनहा बैठा, तुम्हें याद करता हूँ। 
                                           उजाड़ गया मेरा चमन, बोलो क्या करूँ ?
      
कैसे बुझाऊँ मैं,  बिछोह की आग को। 
दिल बात नहीं मानता,  बोलो क्या करूँ ?

                                          साथ जीने-मरने का वादा  किया था तुमने।   
                                         तुम तोड़ गई अपना वादा,  बोलो क्या करूँ ? 


 
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )






मैं कविता ही लिखता रहूँ

तन्हाई के दिनों में
हमसफ़र का काम
कविता करती है।

ठंडी रातों में
गर्माहट का काम
कविता करती है। 

दुःखों के सागर में
पतवार का काम
कविता करती है। 

किसी की यादों को
गुदगुदाने का काम
कविता करती है। 

डगमगाते कदमों को
सहारा  देने का काम
कविता करती है। 

बहते आँसुओं को
पोंछने का काम
कविता करती है। 

निराशा की धुंध में
आशा का संचार
कविता करती है। 

सोते हुए को
जगाने का काम
कविता करती है। 

मैं चाहता हूँ
जीवन के अवसान तक
कविता लिखता रहूँ।


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )



Wednesday, June 15, 2022

चार मुक्तक

मेरे गांव की चहल -पहल गुमसुम बैठी है, 
पनघट के पांवों की पायल उदास बैठी है,
गांवों में स्वार्थ  का एक ऐसा दौर चला है, 
भाई से भाई की  बोली रूठ कर बैठी है। 

पूर्णिमा की उस रात चाँद अमृत रसा था, 
चांदी सी किरणों संग सोना भी बरसा था, 
तारों भरी रात स्वागत करने को आई थी, 
सूरज भी उसे देखने सारी रात तरसा था। 

नेता की गाड़ी को हर कोई राह देता है,
धरती की क्या बात, अम्बर राह देता है,
बुरा-भला कुछ भी करे,सौ खून माफ़ है,                                                                                    
जरुरत पड़े तो,सागर भी गवाही देता है। 

खुले आम घूम रहें, सडकों पर व्यभिचारी,
नहीं धरा, नहीं गर्भ में, सुरक्षित अब नारी, 
आँखें बंद कानून की, क्या करे अब नारी,
युग - युगांतर से सदा, लुटती रही है नारी।









Tuesday, June 14, 2022

मुझको याद सताये

आसमान में बिजुरी चमके 
गरजे बादल घोर,
याद तुम्हारी मुझे सताऐ 
तड़पे करती शोर। 

कामदेव धरती पर आया 
खींची पुष्प कमान, 
चारों ओर बसंत लहराया 
यादें हुई जवान। 

रिमझिम कर बरखा आई 
नील गगन को घेरा,
विरही गीत चातक ने गाया   
उदास हुवा मन मेरा। 

धानी चुनरियाँ धरा ने ओढ़ी
खिलने लगे पलाश,
कुहू तान कोकिल ने छेड़ी 
करती मुझे उदास। 

डाल - डाल पर झूले डाले 
सखियाँ कजरी गाये,
मोर-पपीहा छम छम नाचे 
मुझको याद सताये। 


Monday, June 13, 2022

आपसी शौहार्द और भाईचारा

नूपुर शर्मा ने 
पैगम्बर के बारे में  
कुरान में लिखी 
बात क्या कह दी 
भड़क उठे शोले 
चमचमाने लगी तलवारें 
रास्ते हो गए जाम 
फेंके जाने लगे पत्थर
जलने लगी गाड़ियां 
केंसिल हो गई ट्रेनें 
बंद हो गए हाइवे। 

दंगों की चपेट में आये 
राहगीर और आमजन
एम्बुलेंस में लेटे बीमार 
घायल हुए पुलिस कर्मी 
देश की जली सम्पति। 

उठने लगा शोर 
नूपुर शर्मा को 
पार्टी प्रवक्ता से हटाओ 
उसे पार्टी से निकालो 
उसे गिरफ्तार करो
उसका गला काट दो 
उसकी जीभ काट दो 
उसे फांसी की सजा दो। 

चारों ओर से 
मिलने लगी धमकियाँ 
देखते ही देखते 
खत्म हो गया आपसी 
शौहार्द और भाईचारा। 


Sunday, June 12, 2022

खिड़की पर खड़ी इन्तजार करती मेरी माँ।

शाम चार बजते ही रास्ते में देखती रहती माँ 
स्कूल से आने वाले बच्चों में ढूंढती रहती माँ 
जब तक मैं नहीं दिख जाता  खड़ी रहती माँ  
खिड़की पर खड़ी इन्तजार करती मेरी माँ। 

मेरे कपड़े सीधे कर बिस्तर निचे दबाती माँ 
मेरी किताबों को ठीक से थैले में सजाती माँ 
मेरे टिफिन बॉक्स में अचार- पूड़ी रखती माँ
खिड़की पर खड़ी इन्तजार करती मेरी माँ। 

रोज रात को सोते समय कहानी सुनाती माँ 
मेरे सोने पर प्यार से बालो को सहलाती माँ 
सुबह लौरी गाकर मुझे नींद से  जगाती माँ 
खिड़की पर खड़ी इन्तजार करती मेरी माँ। 

मेरे बीमार पड़ने पर देवता को मनाती माँ 
छींक आने पर रात-रात जागती रहती माँ 
मेरी सिसकी-हिचकी सुन दौड़ी आती माँ 
खिड़की पर खड़ी इन्तजार करती मेरी माँ।

मेरे सुख - दुःख का सदा ध्यान रखती माँ 
हर समय  अपनी बाहें  फैलाये रखती माँ 
मुझे अपने पास देख सदा मुस्कराती  माँ
खिड़की पर खड़ी इन्तजार करती मेरी माँ।  





 


Friday, June 10, 2022

अब प्यार की कस्ती सजा

बचपन सारा रीत गया 
यौवन साथ छोड़ गया
जीवन साथी संग बैठ कर 
अब प्यार की कस्ती सजा। 

ऑफिस कुर्सी छोड़ कर 
घर के सिंहासन पर बैठ 
लॉन में मधुर संगीत सुन 
अब दिल के शौक सजा। 

चुनौतियों का बीता दौर 
उपलब्धियों को याद कर
चाय की चुस्कियों के संग 
अब जीत का सेहरा सजा।

मन के झरोखे खोल कर 
बीते दिनों को याद कर 
नेह की शबनम चुरा कर 
अब अधूरे ख्वाब सजा। 

मधुमय है जीवन बेला 
मस्ती से मन को बहला
साँझ की शीतल हवा संग 
अब चैन की बंसी बजा।  

देश-विदेश भ्रमण कर
अरमानों को पूरा कर
चांदनी में संग बैठ कर 
अब जीवन में रंग सजा। 

हमसफ़र से बातें कर 
हसीन लम्हें याद कर 
प्रीत को फिर से गुदगुदा 
अब विजय उत्सव सजा।