नदियों के किनारे
कभी होते थे तीर्थ
जहाँ ऋषि - मुनि
करते थे तपस्या
नदियों के किनारे
बसते थे गांव
जहाँ गूंजता था
मछुवारों का आलाप
नदियों के घाटों पर
बहते थे घी के दीये
जहाँ गूंजते थे आरतियों
ऋचाओं के मधुर स्वर
आज मिटने लगी है
नदियों की अस्मिता
भरने लगी है कारखानों
के अपशिष्ट पदार्थों से
गिरने लगे हैं
सीवरों के गंदे नाले
हो रहा है रंगी-पुती
मूर्तियों का विसर्जन
अगर धरती पर
हवा और पानी ही
दूषित हो गया तो
जीवन बचेगा कैसे ?
हम सब को मिल कर
प्रयास करना होगा
हर हाल में नदियों को
प्रदूषण मुक्त करना होगा।
सार्थक सन्देश
ReplyDeleteस्वागत।
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