तुम मुझे बिना कहे, अमरलोक चली गई।
मैं यहाँ अकेला रह गया, बोलो क्या करूँ ?
जब तक साथ थी, अरमान मचलते थे।
अब तो सूना जीवन है, बोलो क्या करूँ ?
तुम्हारी बातें, तुम्हारी हँसी, याद आती है।
नहीं निकलती दिल से, बोलो क्या करूँ ?
रातों में तनहा बैठा, तुम्हें याद करता हूँ।
उजाड़ गया मेरा चमन, बोलो क्या करूँ ?
उजाड़ गया मेरा चमन, बोलो क्या करूँ ?
कैसे बुझाऊँ मैं, बिछोह की आग को।
दिल बात नहीं मानता, बोलो क्या करूँ ?
साथ जीने-मरने का वादा किया था तुमने।
तुम तोड़ गई अपना वादा, बोलो क्या करूँ ?
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23.6.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4469 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग
बहुत ही भावपूर्ण मर्मस्पर्शी सृजन ।
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