शाम चार बजते ही रास्ते में देखती रहती माँ
स्कूल से आने वाले बच्चों में ढूंढती रहती माँ
जब तक मैं नहीं दिख जाता खड़ी रहती माँ
खिड़की पर खड़ी इन्तजार करती मेरी माँ।
मेरे कपड़े सीधे कर बिस्तर निचे दबाती माँ
मेरी किताबों को ठीक से थैले में सजाती माँ
मेरे टिफिन बॉक्स में अचार- पूड़ी रखती माँ
खिड़की पर खड़ी इन्तजार करती मेरी माँ।
रोज रात को सोते समय कहानी सुनाती माँ
मेरे सोने पर प्यार से बालो को सहलाती माँ
सुबह लौरी गाकर मुझे नींद से जगाती माँ
खिड़की पर खड़ी इन्तजार करती मेरी माँ।
मेरे बीमार पड़ने पर देवता को मनाती माँ
छींक आने पर रात-रात जागती रहती माँ
मेरी सिसकी-हिचकी सुन दौड़ी आती माँ
खिड़की पर खड़ी इन्तजार करती मेरी माँ।
मेरे सुख - दुःख का सदा ध्यान रखती माँ
हर समय अपनी बाहें फैलाये रखती माँ
मुझे अपने पास देख सदा मुस्कराती माँ
खिड़की पर खड़ी इन्तजार करती मेरी माँ।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१३-०६-२०२२ ) को
'एक लेखक की व्यथा ' (चर्चा अंक-४४६०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जी। स्वागत आपका।
Deleteबहुत सुन्दर ! पहले माँ खिड़की पर खड़े हो कर हमारा इंतज़ार करती थी. अब उसके जाने के बाद उसकी यादें यही काम करती हैं.
ReplyDeleteसुंदर सरल सहज और सच्ची भावनाएं।
ReplyDeleteसुंदर।
बहुत खूबसूरत भावपूर्ण पंक्तियां
ReplyDeleteवाह…बहुत खूब
ReplyDeleteसभी माँएं एक सी ही होती हैं, ममतामयी🙏
ReplyDeleteयह मेरा भोगा हुवा जीवन है। मेरे बड़े होने और ऑफिस से वापिस आने तक, जब तक माँ रही, सदा खिड़की पर मेरा इन्तजार करती रही। मैं ऑफिस से आ कर, सबसे पहले माँ के पास बैठता, फिर अपने कमरे में जाता।
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