बला है, कहर है, आफत है यह जवानी,
चेहरे पर चार चाँद लगा देती है जवानी,
पैगाम - ए - मोहब्बत की बहारें लाती है,
उम्मीदों की कलियां खिला देती जवानी।
मुस्कराना और झेंपना सिखाती जवानी,
इश्क़े - इजहार करना सिखाती जवानी,
हौसलों की उड़ाने सफलता चूमती है,
जब लक्ष्य पर निशाना साधती है जवानी।
एक तो थोड़ी जिन्दगी फिर यह जवानी,
देखते ही देखते फिसल जाती है जवानी,
कातिल अदाएँ जब भी क़यामत ढाती है,
मर मिटने को तैयार हो जाती है जवानी।
बहते दरिया सी अल्हड होती है जवानी,
मौजो की रवानी नादान होती है जवानी,
दिल की हसरतें दिल में ही रह जाती है,
बुढ़ापे का हाथ थमा चली जाती जवानी।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(१६-१२ -२०२१) को
'पूर्णचंद्र का अंतिम प्रहर '(चर्चा अंक-४२८०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
नमस्ते अनीता जी। धन्यवाद आपका
Deleteवाह!!
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और शानदार सृजन
आभार आपका।
ReplyDeleteधन्यवाद मनीषा।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना भागीरथ जी, बहुत ही खूब
ReplyDeleteधन्यवाद अलकनन्दा जी।
Deleteजिंदगी के हर मोड़ को पिरोती सार्थक रचना।
ReplyDeleteबधाई।
धन्यवाद पम्मी सिंह 'तृप्ति' जी।
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