Monday, April 25, 2022

हमने शमा को जल-जल पिघलते देखा है

हम छत पर खुले आकाश नीचे सोते थे,
हमने तारों भरी रात का नजारा देखा है।
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हम छुप कर प्यार भरे खत लिखते थे,
हमने उनमें विरह के दर्द को देखा है।
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हम बड़ों के सामने कभी बोलते नहीं थे,
हमने घूंघट की टिचकारी को सुना है।
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हम समद्र के किनारे नगें पांव घूमेते थे,
हमने सागर की लहरों का संगीत सुना है।
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हम एक दूजे की सांसों में समा जाते थे,
हमने रातरानी में गंध को समाते देखा है।
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हम मिलने के इन्तजार में बेताब रहते थे,
हमने शमा को जल-जल पिघलते देखा है


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