सरगोशियाँ करने को हवाएं आती है,
खुद बैठ कर परिवार तोड़ जाती है।
जो अपने रिश्तों को निभा सकते नहीं
वो दूसरों को रिश्ता निभाने देते नहीं।
किसी का परिवार टूटता है टूटता रहे,
वो तो अपना स्वार्थ साधने में लगे रहे।
अपने ही जब तोड़ने लगे तो क्या करें,
अपनों की शिकायत भी किससे करें।
दिल में रहने वाले ही दिल तोड़ देते हैं,
भरोसे की आस्था को झकझोर देते हैं।
मैं आँखों के अश्क खुद पोंछ लेता हूँ
चुप रह कर सिसकियाँ रोक लेता हूँ।
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