जिसके मन में लालच की झाड़ियाँ उग आई,
वह परिवार के सुख को भला समझेगा क्या ?
जिसकी अक्ल स्वार्थ की तिजोरी में बंद हो,
वह भाइयों के प्यार को कभी समझेगा क्या ?
बातों के गड़े मुर्दे उखाड़ कर मिलेगा क्या,
आपस में बैर ही तो बढ़ेगा प्यार रहेगा क्या ?
बाप के सामने भी जो बेटा बोलने लग गया,
वह भाईयों और परिवार को समझेगा क्या ?
जो जिंदगी में दूसरों के ही दोष देखता रहा,
वह कभी अपने गिरेबान में भी झांकेगा क्या ?
जिसमें अहम् और घमंड का नशा भरा हो,
वह अपनी गलती को स्वीकार करेगा क्या ?
रिश्ते सारे खोखले हो रहें पैसों के लालच में,
बचपन में बाँट - बाँट खाते याद करोगे क्या ?
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