शान्तम् सुखाय
Saturday, July 9, 2022
गांव की गळ्या (राजस्थानी कविता )
गांव की गळ्या
पतळी अर संकड़ी हुया करती
पण बे जोड़ती एक दूजा ने
ले जाती गुवाड़ मांय
नाडी कानी अर खेता मांय
गळी मुड़ ज्याती कोई न
कोई के आंगणा कानी
जठै खेलता मिलता बायळा
अर खावण ने मिळ ज्याती
राबड़ी अर रोटी।
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