Thursday, December 31, 2020

किसान रो दर्द ( राजस्थानी कविता )

अबके सावण जोरा बरस्यो
भरगी सगळी ताल-तलैया 
हबोळा खावण लाग्या खेत। 

घोटा-पोटा बाजरी अर 
लड़ालूम मोठ-गुंवार देख 
सरजू के गाला पर छागी लाली। 

सोच्यो अबकै साहुकार को 
कर्ज उतर ज्यासी 
झमकुड़ी रा हाथ पीला हुज्यासी 
जे संजोग बैठसी तो गंगा जी 
भी न्हाय आस्या। 

पण हुणी न कुण टाल सकै 
एक रात उमटी काळी कळायण 
बरस्यो सेंजोरा म्है 
पड़्या मोकळा ओला 
करदी एक रात मांय फसल चौपट। 

खुशियाँ सारी हुगी मिटियामेट
घिघियातो सरजू, भूखो-तीसो 
देखतो रियो दिन भर खेत ने
पण नहीं दिख्यो कोई रास्तो। 

भूखे मरण की नौबत आगी 
ऊपर स्यूं साहूकार को डर 
घर में बैठी जुवान बेटी 
सरजू हिम्मत हरग्यो।

दूसरे दिन गांव मांय 
जोरो हेल्लो सुणाई दियो 
सरजू खेत मायं 
खेजड़ी री डाल माथै  
लटक्योड़ौ दिखाई दियो। 


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