Saturday, November 30, 2024

बसंत का गीत

मैंने आज धीरे से कहा 
बसंत अब आ जाओ 
और यह सुनते ही ---
रात रागिनी मुस्कुराने लगी 
कलियाँ खिलखिलाने लगी 
गेहूं की बालियां झूमने लगी 
हरियाली चहुँ ओर छाने लगी 
आम्र मंजरियाँ फूटने लगी 
कोयल कुहू कुहू करने लगी 
मंद सुगंध समीर बहने लगी 
अलि प्रीत का राग गाने लगी 
बागों में तितलियाँ उड़ने लगी 
मैं प्रेम गीत गुनगुनाने लगी 
प्रीत सांवरिया से मिलने लगी। 

    

No comments:

Post a Comment