पत्थर वाली पाटी पर हम बारहखड़ियाँ लिखते थे
छुट्टी की बेला में सब खड़े होकर पहाड़े बोलते थे
सारे साथी बिछुड़ गये मिलना अब मुश्किल होगा
अब भी गांव के खेतो में अलगोजा तो बजता होगा।
मेरे सपने में आकर गांव आज भी मुझे बुलाता है
सारी सारी रात गांव की गलियों में मुझे घूमाता है
गांव का कोई साथी मुझको भी याद करता होगा
अब भी गांव के खेतो में अलगोजा तो बजता होगा।
होली पर चंग की धाप आज भी खूब लगती होगी
छोटी काकी ब्याव में आज भी खूब नाचती होगी
झूमझूम बादल गांव में आज भी खूब बरसता होगा
अब भी गांव के खेतो में अलगोजा तो बजता होगा।
गुवाड़ में चिलम की बैठक आज भी जमती होगी
गौधूली बेला मंदिर में झालर आज भी बजती होगी
गांव का खेत आज भी चौमासा में लहराता होगा
अब भी गांव के खेतो में अलगोजा तो बजता होगा।
वाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर,हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १४ जनवरी २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।