वसंतोत्सव पर यौवन बहकने लगा
तन हर्षित मन पुलकित होने लगा
मलय पवन धरा पर इठलाने लगी
शहदिली रातों का दीप जलने लगा।
मौसम का मिजाज भी बदलने लगा
जंगल में गुलमोहर भी दहकने लगा
तन दहकने और सांसे महकने लगी
प्रेयसी पर मिलन उन्माद छाने लगा।
बन-बाग़न में अमुआ भी बौराने लगा
फूलों की गंध से चमन महकने लगा
प्रिया को प्रियतम की याद आने लगी
अंग-अंग अगन से अनंग जलने लगा।
बागो में भंवरा कलियों से मिलने लगा
चिरैया के नाच पर चिरौटा झूमने लगा
बागो में कोयल कुहू- कुहू बोलने लगी
रति के आँचल में बसंत मचलने लगा।
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