Saturday, March 29, 2025

रति के आँचल में बसंत मचलने लगा

वसंतोत्सव पर यौवन बहकने लगा  
तन हर्षित मन  पुलकित होने लगा 
मलय  पवन धरा पर इठलाने लगी    
शहदिली रातों का दीप जलने लगा। 

मौसम का मिजाज भी बदलने लगा 
जंगल में गुलमोहर भी दहकने लगा
तन दहकने और सांसे महकने लगी 
प्रेयसी पर मिलन उन्माद छाने लगा। 

बन-बाग़न में अमुआ भी बौराने लगा 
फूलों की गंध से चमन महकने लगा 
प्रिया को प्रियतम की याद आने लगी 
अंग-अंग अगन से अनंग जलने लगा। 

बागो में भंवरा कलियों से मिलने लगा 
चिरैया के नाच पर चिरौटा झूमने लगा 
बागो में कोयल कुहू- कुहू बोलने लगी 
रति के आँचल में बसंत मचलने लगा। 








No comments:

Post a Comment