Sunday, November 3, 2024

मेरा जीवन तन्हा रह गया

कितना मोहक था वो समय 
जो हमने साथ-साथ बिताया,
हाथों में हाथ डाल कर 
क़दमों से कदम मिलाया।  

सारी दुनिया को भूल कर 
हम खो जाते थे सपनों में,
प्यार सदा परवान चढ़ा 
एक दूजे की बाहों में। 

नशीली थी तुम्हारीआँखें 
देख कर पगला जाता मैं,
तुम्हारे कन्धों पर सिर रख
सुध - बुध भूल जाता मैं। 

कितना मदभरा था समय 
जब चांदनी रातें होती थी, 
मेरी गोदी में सिर रख 
तुम आँखें मूंद सो जाती थी। 

मस्त जीवन था हमारा 
आज सब सपना बन गया 
तुम बिछुड़ गई सर-ऐ-राह 
मेरा जीवन तन्हा रह गया। 

 











Friday, October 18, 2024

एक नशा

मैंने सोचा था तुम्हारे 
रिटायरमेंट के बाद 
हम दोनों घर में 
आराम से बैठ कर 
करेंगे ढेर सारी बातें। 

मन की, तन की 
प्यार की, तकरार की 
बहारों की, सितारों की 
बादलों की, मौसम की 
रौशनी की, चांदनी की। 

मगर शराबी को 
जब तलक मयखाने के  
जामों के टकराने की 
खनक सुनाई नहीं देती 
तब तलक उसे 
चैन नहीं मिलता। 

ठीक उसी तरह
तुम को भी जब तलक 
मील की मशीनों की 
आवाज सुनाई नहीं देती 
तुम्हें भी चैन नहीं मिलता। 

Wednesday, October 2, 2024

बिना हमसफ़र जीवन

बिना हमसफ़र जीवन, सूना- सूना लगता है 
जीने का नाटक भी, कितना झूठा लगता है। 

जीवन है तो सहना और रहना भी पड़ता है 
बिन हमराही तन्हाई को, सहना भी पड़ता है। 

याद आते हैं वो लम्हे, जो साथ-साथ गुजरे थे 
उन लम्हों में जाने कितने, इंद्रधनुष उभरे थे।  

अगर तुम आओ, तो लगाऊं बाहों का बंधन 
झूम उठे तन-मन मेरा, और सांस बने चंदन। 




Saturday, September 28, 2024

चौखट

जुल्म  सह  कर भी  जो सदा चुप रहे  
ऐसी  बेबसी भी फिर किस काम की। 

जिंदगी भर दुःखों को अकेला सहता रहे 
रिश्तों की बैसाखी फिर किस काम की।

ग़मों में  डूब  कर जो जीवन  जीता रहे 
यादों की जुगाली फिर किस काम की। 

बुढ़ापे में माता - पिता संग जो नहीं रहे 
ऐसी औलाद भी  फिर  किस काम की। 

जीवन में हमसफ़र का जो साथ न रहे 
तन्हा जिंदगी भी  फिर किस काम की। 


Wednesday, September 4, 2024

तुम्हें भेजूंगा लिख कर

गंगा के कलकल स्वर को  
कानों में भर कर 

हिमालय की सुंदरता को  
आँखों में सजा कर 

रजनीगंधा की महक को 
साँसों में भर कर 

प्यारी मदहोशी यादों को 
दिल में संजो कर 

भेजूंगा एक कविता को 
तुम्हें लिख कर। 



Tuesday, August 20, 2024

मुझे रुला कर क्या पाओगे ?

तन्हाई का जीवन मेरा 
केवल यादों का सम्बल 
बंधा हुवा हूँ बंधन में 
इसे मिटा कर 
क्या पाओगे 

जीर्ण-जर्जर मेरी काया
धूमिल हुई जीवन आशा  
व्यथाएँ देती दस्तक
अब दर्द देकर
क्या पाओगे

सपने सारे बिखरे मेरे
आलिंगन भी रूठ गए
देखा मैंने प्रेम सभी का 
और दिखा कर 
क्या पाओगे 

सम्बोधन की सीमा टूटी 
प्यार की बुनियाद रूठी 
चौखट हाहाकार करती 
बेघर कर 
क्या पाओगे

हँस कर जीवन जीने का 
मैंने एक संकल्प लिया
अंतर की पीड़ा सहता 
मुझे रुला कर 
क्या पाओगे ?




Saturday, August 10, 2024

यह वक्त है

यह वक्त है 
खुली आँखों से 
वक्त को देखने का 
यह स्वीकार करने का 
कि 
हमने हमारी बातों 
और 
कामों को मनवाने में 
व्यर्थ ही समय गंवाया 

यदि अभी भी 
और जानना हो 
जाओ 
और 
पूछों बांग्ला देश में 
हिन्दुओं से 
कि 
उनका क्या अंजाम हुआ 
जुल्म किया है 
शैतानों ने 

क्या भूल गए 
कश्मीर को 
घाव अभी भरा नहीं है 

हमारा जनबल है अभी 
लेकिन 
हमने मजबूती से नहीं पकड़ा है 
एक-दूजे का हाथ 
एक अच्छे दिन की तरफ 
जाने के लिए 

यह गीत 
सुना जाना चाहिए 
आँखों में एक सपना 
अब 
ज्वाला बनना चाहिए।