बचपन में मैने
पिताजी के सामने
खड़े हो कर
कभी बात नहीं की ।
कुछ कहना होता
तो माँ के आँचल के पीछे
खड़े हो कर कह देता।
बड़े होने पर भी
यही हाल रहा
सिर झुका कर
बात सुन लेता
जो कुछ कहते
बस हाँ भर लेता।
पिताजी से
आँख मिला कर
बात करने की तो
कभी हिम्मत भी नहीं हुई।
लेकिन आज जब मैं
पिता की भूमिका में आया
तो देखता हूँ कि सब कुछ
बदल गया है।
जिस पिता ने
पुरी ईमारत का
बोझ उठा कर रखा
आज वह नीवं में दबा
पत्थर मात्र रह गया है।
अपने जीवन में जो
पूरी दुनियां से लड़ा
और सदा जीता
आज वह अपने बेटों के सामने
बुजदिल बन कर रह गया है।
अपने बेटों द्वारा
किये गए अपमान से
आज उसकी आँखें
नम हो गई है।
आज उसकी
उम्मीदों का मौसम
पतझड़ में बदल गया है
सारे सुनहरे ख्वाब
मुंगेरी के सपने बन
ढह गये हैं।
अपने आप को
रोने से रोक रहा है
मगर उसके जबड़े
कसते चले जा रहे हैं।
मान लिया सब पिता
एक जैसे नहीं होते
मगर
सभी पिता अंततः
पिता तो होते ही हैं।
उनका का भी
एक सम्मान होता है
एक अस्तित्व होता है
एक स्वाभिमान होता है।
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