Wednesday, April 21, 2021

कितना अच्छा लगता है

संध्या के समय 
गीता भवन के घाट पर 
नौका में बैठ कर 
नदी में बहती 
सुनहली-रुपहली 
मछलियों को देखते हुए 
आटे की गोलियाँ डालना
कितनाअच्छा लगता है ? 

गंगा की निर्मल लहरों को 
एक टक देखना 
और देखते-देखते 
स्वयं उनमें खो जाना 
कुछ देर के लिए ही सही 
मगर कितना अच्छा लगता है ?  


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

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