Monday, July 29, 2024

पहचान

गांव में था 
पहचान थी 
सदा नाम से 
जाना जाता मैं 

गांव से निकला 
बह गया धारा में 
धारा से नदी 
नदी से समद्र 
समा गया मैं 

अफ़सोस 
अब महानगर में हूँ 
यहाँ होकर भी 
नहीं हूँ मैं 

अब नाम से नहीं 
मकान नम्बर से 
जाना जाता हूँ मैं 

वापिस 
कैसे जाऊँ वहाँ 
जहॉं पैदा हुआ मैं। 



6 comments:

  1. महानगरों में मकान न. ही पहचान होती है...
    वापसी शायद इतनी मुश्किल भी नहीं
    अपनी जन्मभूमि अपना इंतजार करती है ।
    बहुत सुंदर सृजन।

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    1. सुधा जी, बच्चे जो शहरों में जन्में और बड़े हुए, वो क्या अब हमारे साथ जाकर गांवों में रहेंगे ? अब तो गांव सपना ही रह गया है।

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  2. नदी कभी नहीं लौटती! इंसान नदी हो गया आजकल! कोई वापस नही आता!! 🙏

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    1. बच्चे जो विदेशों में पढ़ने गए, अब तो वो भी वहां के हो गए। किस का इन्तजार करें ?

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  3. बह चला जो दूर बहुत दूर धारा में वह वापस कभी नहीं आता ,,,, शहरी हवा में डूबकर याद बनकर रह जाता है बचपन का गांव। .. बहुत सुन्दर

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  4. कविता जी गावों की वो गालियाँ, दोस्तों के साथ वो खेलना, खेतों में रमझोल मचाना। सब यादें हैं और यादें ही बन कर रह गई।

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