बर्फीली वादियां
बारूद से
दहल गई।
पर्यटकों की
किलकारियाँ
चीखों में बदल गईं।
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आतंकवाद के
कहर में
मानवता काँप उठी,
डल झील में
चिनार की
पत्तियाँ कहरा उठी।
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हँसता हुवा जीवन
सिसकियों में
डूब गया,
मांग का सिंदूर
एक पल में
लूट गया ।
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फूलों की घाटी
आज काँटे सी
चुभ रही,
बारूदी गंध आज
पोर-पोर में
टीस रही ।
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