Thursday, September 18, 2025

कश्मीर की वादियाँ

बर्फीली वादियां 
बारूद से 
दहल गई।  

पर्यटकों की 
किलकारियाँ
चीखों में बदल गईं।

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आतंकवाद के 
कहर में 
मानवता काँप उठी,

डल झील में  
चिनार की 
पत्तियाँ कहरा उठी।

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हँसता हुवा जीवन 
सिसकियों में
डूब गया,

मांग का सिंदूर 
एक पल में 
लूट गया ।

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फूलों की घाटी
आज काँटे सी
चुभ रही,

बारूदी गंध आज 
पोर-पोर में 
टीस रही । 

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Saturday, September 13, 2025

बंजारा जीवन

कोलकाता 
बड़ा शहर है, 
सोच कर 
यहाँ बस गया, 
उम्र थी कच्ची। 

अब 
बुढ़ापे में 
समझ आया, 
गांव की 
जमीं थी अच्छी।  

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उम्र हुई, 
बचपन के 
दोस्तों से मिले।

किसे सुनाए 
जीवन के 
शिकवे और गिले। 

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बेर, कैरिया 
तरबूज, काकड़ी 
सब के संग 
गुजरा है बचपन,

मिटटी 
से जुड़ा ही 
समझ सकता है 
इनका रसीलापन। 
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पौधे की भाषा 
केवल मिटटी 
समझती है,

प्रतीक्षा की आहट 
केवल चौखट 
समझती है। 

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मौसम की 
मनमानी पर 
हम जीते हैं, 

सवेरा 
घर भर सुहाना 
और शाम ढले 
छाया से रीते हैं।
 














Tuesday, September 2, 2025

अब जीवन में ख़ुशी नहीं

आँगन सुना,चौबारा सुना 
बिना तुम्हारे यह घर सुना, 
मन सूना और आँखें सूनी 
मेरा  जीवन  दर्पण सूना। 

जब से तुम बिछुड़ी मुझसे 
दर्द मेरा हमराज बन गया, 
सपनों का संसार खो गया 
सुख सारा नीलाम हो गया। 

कुम्हला गये अरमान मेरे 
जीवन सारा पतझड़ बना,
बिना तुम्हारे मेरा  जीवन 
वीरान एक खँडहर बना।

अब तो केवल स्मृती बची 
फिर मिलने कीआस नहीं,
आँखों में हैं अविरल अश्रु 
अब जीवन में ख़ुशी नहीं।