Thursday, September 18, 2025

कश्मीर की वादियाँ

बर्फीली वादियां 
बारूद से 
दहल गई।  

पर्यटकों की 
किलकारियाँ
चीखों में बदल गईं।

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आतंकवाद के 
कहर में 
मानवता काँप उठी,

डल झील में  
चिनार की 
पत्तियाँ कहरा उठी।

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हँसता हुवा जीवन 
सिसकियों में
डूब गया,

मांग का सिंदूर 
एक पल में 
लूट गया ।

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फूलों की घाटी
आज काँटे सी
चुभ रही,

बारूदी गंध आज 
पोर-पोर में 
टीस रही । 

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