फागुन आया मीत न आई
बसन्त रह गया सपनों में,
तस्वीर उसकी टँगी हुई है
यादों की चार सलाखों में।
बिन सजनी जिया न लागे
फाग का रंग न चढ़े मन में,
तन की पीड़ा और बढ़ गई
इस मौसम की पुरवाई में।
कौन मलेगा रंग गालों पर
कौन भरेगा अब बाँहों में
हंसी - ठिठोली रीती सारी
बैरंग हुवा मन फागुन में।
हमजोली की चंचल नजरें
अब नहीं टकरेगी होली में,
रंग गुलाल उड़ेगा चहुँ दिसि
पर मजा न होगा होली में।
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