Friday, March 3, 2023

बस्तियाँ जलती रही

जमीन को खाली कराने  
सरकारी फरमान निकला 
पुलिस बल साथ लेकर 
अस डी एम खुद निकला 

भीड़ चिल्लाती रही 
बुलडोज़र घरों को रौंदता 
आगे बढ़ता रहा 
औरतें छाती पीटती रही 
शासन बस्ती उजाड़ता रहा 

माँ-बेटी दौड़ी अन्दर 
बंद कर लिया दरवाजा 
बचाने अपना घर 
बाहर किसी ने लगादी आग 
धूं-धूं कर जलने लगा घर 

लपटे ऊँची उठने लगी 
माँ-बेटी जलती रही अन्दर  
आकाश सारा हो गया लाल 
आर्तनाद सुनाई देता रहा बाहर

भीड़ अपनी आवाज से 
आकाश पाताल एक करती रही  
सरकार के कानों जूं तक नहीं रेंगी  
जमीन खाली कराने बस्तियाँ जलती रही। 






2 comments:

  1. आदरणीय सर, सादर प्रणाम। बहुत ही मर्मान्तक कविता है आपकी, पढ़ते हुए आंख नम हो गयी। सच तो यह है कि समाज में कू भी वर्ग इतना वंचित न हो कि उसे अपना एक घर भी नसीब न हो पर यह संवेदनहीन सत्ताधारियो के कानों में कहाँ जूँ रेंगती है, निरीह जनता की करुण पुकार ये कहाँ सुन पाए हैं और सुन भी लिया तो कब इनका हृदय पिघलता है। काश ऐसी व्यथा कथा और न सुनने को मिले, ऐसा अत्याचार टल जाए। पुनः प्रणाम आपको।मेरे दो ब्लॉग हैं, कृपया आ कर अपना आशीष दीजिये।

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  2. आभार आपका। निमंत्रण के लिए धन्यवाद।

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