Saturday, September 28, 2024

चौखट

जुल्म  सह  कर भी  जो सदा चुप रहे  
ऐसी  बेबसी भी फिर किस काम की। 

जिंदगी  भर जो दुःखों  को सहता रहे 
रिश्तों की बैसाखी फिर किस काम की।

ग़मों में  डूब  कर जो जीवन  जीता रहे 
यादों की जुगाली फिर किस काम की। 

बुढ़ापे में माता - पिता संग जो नहीं रहे 
ऐसी औलाद भी  फिर  किस काम की। 

जीवन में हमसफ़र का जो साथ न रहे 
तन्हा जिंदगी भी  फिर किस काम की। 


No comments:

Post a Comment