अँधियारी सूनी रातों में
जब याद तुम्हारी आती है,
स्मृतियाँ बनती सहारा
प्यार से थपकी देती है।
तुम्हारी विरह व्यथा को
मैं हर पल भोग रहा हूँ,
ओझल होती प्रतीक्षा में
अश्रु धारा बहा रहा हूँ।
भूले - भटके ख़ुशी कोई
जब जीवन राग छेड़ती है,
तभी तुम्हारी यादें आकर
आँखों से ढुलक जाती है।
हँसना, खिलाना, मुस्काना
सब कुछ तुम्हारे संग गया,
विरह की अग्नि जलने लगी
प्रेम तुम्हारा शाप बन गया।
भावपूर्ण ,मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति सर।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।