कोलकाता
बड़ा शहर है,
सोच कर
यहाँ बस गया,
बस गया,
उम्र थी कच्ची।
अब
बुढ़ापे में
समझ आया,
गांव की
जमीन थी अच्छी।
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उम्र हुई,
बचपन के
दोस्तों से मिले।
किसे सुनाए
जीवन के
शिकवे
और गिले।
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बेर, कैरिया
तरबूज, काकड़ी
सब के संग
गुजरा है बचपन,
मिटटी
से जुड़ा ही
समझ सकता है
इनका रसीलापन।
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पौधे की भाषा
केवल मिटटी
समझती है,
प्रतीक्षा की आहट
केवल चौखट
समझती है।
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Very Nice Post...
ReplyDeleteWelcome to my new post